देश में शिक्षा विस्तार के परिणामस्वरूप भारतीय समाज में स्त्रियों की स्थिति में क्या सुधार आया है?

भारत में शिक्षा के प्रभाव

देश में शिक्षा के विस्तार के परिणामस्वरूप भारतीय समाज में निम्नलिखित प्रभाव दृष्टिगोचर होते हैं –

(1) शिक्षा के फलस्वरूप महिलाओं के स्तर में बुनियादी बदलाव –

भारत सरकार की राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 के मुताबिक महिलाओं के स्तर में बुनियादी बदलाव लाने के लिए शिक्षा का इस्तेमाल एक औजार के रूप में किया जाएगा। शिक्षा के क्षेत्र में महिलाओं की स्थिति का आकलन करें तो पता चलता है कि 1991 की 39.19 फीसदी महिला साक्षरता दर बढ़कर 2011 में 65.46 फीसदी तक पहुंच गई हैं। इन्हीं वर्षों में प्राइमरी स्तर पर लड़कियों का नामांकन (प्रति लाख) 41 से 50 हो गया है।

(2) शिक्षा के फलस्वरूप महिलाओं का द्वितीय स्थान से प्रथम स्थान की ओर अग्रसर होना –

महिलाओं को समाज व परिवार में हमेशा द्वितीय श्रेणी का स्थान दिया गया है। जबकि महिला व पुरुष में केवल शारीरिक रचना के अन्तर के सिवाय बाकी सब शक्तियां समान है। महिला का उतना ही महत्व है जितना पुरुष का, बिना महिला के अस्तित्व के इस संसार रूपी गाड़ी का चलना मुश्किल है। इसके उपरान्त भी पुरुषों ने उसे हमेशा द्वितीय स्थान पर माना है। यह भेदभाव महिलाओं के विकास पर रोक लगा देता है। समाज या परिवार के मुख्य कार्यों में निर्णय लेने का अधिकार पुरुषों को प्राप्त है, महिलाओं को सहयोगी न मानकर उसे अनुगामिनी का स्थान दिया गया है। लेकिन आज महिलाएं शिक्षित होकर अपने अधिकार को प्राप्त करने के लिए प्रयासरत हैं।

(3) शिक्षा से स्त्री-पुरुषों में परस्पर सम्यक मानवीय सम्मान की भावना का विकसित होना

स्त्री-पुरुषों में परस्पर मानवीय सम्मान की भावना विकसित करने के लिए शिक्षा अति आवश्यक है। इसके लिए विशेषकर इन चार बातों का ध्यान रखना होगा –

  • (1) हर क्षेत्र के विकास कार्यों में स्त्रियों की भागीदारी बढ़ानी होगी।
  • (2) स्त्रियों को आर्थिक स्वतन्त्रता प्राप्त करानी होगी।
  • (3) स्त्रियों की स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार एवं परिवार नियोजन का प्रसार करना होगा।
  • (4) महिलाओं की प्रगति की राह आसान बनाने के लिए शिक्षण-प्रशिक्षण के अवसर बढ़ाने होंगे।

(4) महिला साक्षरता दर में हुई वृद्धि ने सामाजिक रूप से अलाभन्वित और दूसरे वर्गों के बीच फासले को घटाया

सामाजिक रूप से अलाभान्वित वर्गों में अनुसूचित जाति और जनजाति की लड़कियां व महिलाएं ज्यादा लाभान्वित हुई है। शिक्षा ग्रहण करने के लिए लड़कियां एक शहर से दूसरे शहर में जाती हैं और एक ही होस्टल में साथ-साथ रहती है जिससे उनके बीच फासले व दूरियां कम हुई हैं। अब समाज से ऊँच-नीच थ छुआछूत की भावना कम हुई है।

(5) पर्दा प्रथा में कमी आना

आधुनिक शिक्षित समाज में इस रिवाज को अधिक मान्यता नहीं दी जा रही है। पर्दा प्रथा से महिलाओं के विकास में बाधा पहुंचती है। जिससे उनका जीवन अधिक शोषित होता है और ये शिक्षा से भी वंचित होती हैं। साथ ही वे कुस्वास्थ्य की शिकार होती है और गरीब बनी रहती हैं। गरीब तो सभी समस्याओं की जननी है ही।

(6) शिक्षित महिलाओं का बेहतर समाजीकरण

शिक्षा के द्वारा ही व्यक्ति को समाज के मूल्यों, मानदण्डों, नियमों, कानूनों, आदर्शों आदि का ज्ञान कराया जाता है। समाज द्वारा निर्धारित एवं स्वीकृत नियमों का पालन करने से समाज में नियन्त्रण, एकता एवं समरूपता ‘बनी रहती हैं।

(7) नैतिक गुणों का विकास

शिक्षा महिलाओं में नैतिक गुणों, जैसे सहयोग, सहिष्णुता, दया, दमानदारी आदि का विकास करती हैं। शिक्षा का एक कार्य चरित्र निर्माण भी है। भौतिक गुणों से युक्त व्यक्ति ही निष्ठावान एवं कर्तव्यपरायण होता है। ऐसे व्यक्ति ही समाज में व्यवस्था, एकता एवं संगठन बनाए रखने में योगदान देते हैं।

(8) शिक्षा के द्वारा महिलाओं को सभ्य व सुसंस्कृत बनाने में योगदान –

शिक्षा का कार्य मानव को सभ्य एवं सुसंस्कृत प्राणी बनाना है। शिक्षा ही मानव को पशु स्तर से ऊंचा उठाकर श्रेष्ठ मानव बनाती है। असभ्य व्यक्ति पशु के समान है। वह उचित अनुचित में भेद नहीं कर सकता।

(9) सामाजिक परिवर्तन के घटक के रूप में शिक्षा

शिक्षा के माध्यम से सामाजिक परिवर्तन से सम्बन्धित दो प्रमुख बातें हैं

  • (i) नवीन विचारों का प्रचार- शिक्षा द्वारा सामाजिक परिवर्तन की दृष्टि से ऐसे विचारों का प्रचार किया गया जिन्होंने परिवर्तन के अनुकूल पर्यावरण बनाने में योगदान दिया।
  • (ii) नवीन विचारों का सात्मीकरण नवीन विचारों तथा प्रविधियों की उपयोगिता उस समय अधिक होती है जब उनका महिलाओं द्वारा सात्मीकरण किया जा चुका होता है। यदि हम चाहते हैं कि हमारी विकास योजनाएं सफल हों और देश इच्छित लक्ष्यों की दिशा में आगे बढ़े, तो हमें शिक्षा को समाज के उद्देश्यों और आवश्यकताओं के अनुरूप ढालना होगा।

(10) शिक्षा का स्तर सुधरने से बाल विवाह में कमी आना –

भारतीय कानून लड़की की शादी की उम्र कम से कम 18 वर्ष रखी गई है, फिर भी आज कई स्थानों पर बाल विवाह की परम्परा प्रचलित है, जैसे राजस्थान के राजपूत परिवारों में इससे जहां एक ओर लड़कियों का विकास तो रुकता है, वहीं दूसरी ओर शारीरिक पूर्ण विकसित न होने के कारण गर्भावस्था के दौरान उनकी मृत्यु हो जाने का भय भी बना रहता है। गांधी जी ने ‘यंग इंडिया’ में लिखा है कि बाल-विवाह की प्रथा नैतिक व भौतिक बीमारी है। ये हमारे नैतिक व भौतिक पतन की द्योतक है। ये रिवाज हमें भगवान व स्वराज दोनों को पाने से वंचित कर देते हैं।

(11) शिक्षा के फलस्वरूप दहेज प्रथा से राहत

भारतीय समाज में दहेज प्रथा विष की तरह फैल रही है और समाज को मृत प्रायः कर दिया है। अगर समाज का आधा वर्ग महिलाएं इस रिवाज से पीड़ित हैं, तो समाज का विकास होना असम्भव है। ससुराल द्वारा अधिक तंग करने पर शिक्षित लड़कियां विद्रोह करके तलाक लेकर अलग रहने लगती है लेकिन अनपढ़ लड़कियां आत्महत्या करके ही इस समस्या से छुटकारा पाती हैं।

(12) शिक्षा से महिलाओं का बेहतर बौद्धिक विकास

आज की शिक्षा तर्क व विज्ञान पर आधारित है। वह मानव मस्तिष्क का विकास करती है। ज्ञान के द्वार खोलती हैं। मनुष्य को चिन्तनशील बनाती है। बुद्धिमान एवं ज्ञानवान व्यक्ति से यह अपेक्षा की जाती है कि वह उचित अनुचित में भेद करें और समाज सम्मत व्यवहार करे। शिक्षा व्यक्ति में सद्गुणों का विकास करती है। ज्ञान सामाजिक प्रगति एवं नियन्त्रण दोनों के लिए आवश्यक है।

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(13) शिक्षा के माध्यम से सामाजिक अनुकूलन में सहयोग

शिक्षा का कार्य व्यक्ति को परिस्थितियों के साथ अनुकूल करने में सहयोग प्रदान करना है। मनुष्य को अपने जीवन काल में अनेक नवीन परिस्थितियों एवं संकटों का सामना करना पड़ता है।

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