प्रस्तावना – भारतवर्ष, विविध त्योहारों का देश है तभी तो भारतवासी अपने जीवन के उत्पीड़न, शोक, चिन्ता तथा दुख को भुलाकर गाते मुस्कुराते हुए नए-नए त्योहार मनाते हैं। जहाँ तक हिन्दू-पर्वो त्योहारों की बात आती है, तो यह कहना गलत न होगा कि हिन्दुओं के त्योहार अन्य सभी जातियों व साम्प्रदायों से कहीं अधिक विविधता लिए हुए हैं। इन त्योहारों में दीपावली एक प्रमुख त्योहार है। दीपावली हमारे देश की सांस्कृतिक एवं राष्ट्रीय धरोहर का प्रतीक है। अनेक महापुरुषों की सुखद स्मृतियाँ सँजोये हुए यह त्योहार भारतीय जनमानस को अनुप्रेरित करता है।
दीपावली मनाने की तिथि
दीपावली का शाब्दिक अर्थ है-दीपों की पंक्ति अथवा दीपों का त्योहार। यह ज्ञान के प्रकाश का पर्व है तथा स्वच्छता एवं पावनता का उत्सव है। दीपावली का त्योहार प्रत्येक हिन्दू, चाहे वह धनी हो या निर्धन, शिक्षित हो या समान रूप से पूर्ण खुशी एवं उल्लास के साथ मानता है।
दीपावली का पर्व प्रत्येक वर्ष कार्तिक मास की अमावस्या को असंख्य दीपों की जगमगाहट में उल्लासपूर्वक मनाया जाता है। यह पर्व तन-मन, घर-बाहर, देश-नगर सभी स्थानों को प्रकाशमय देता है। यह त्योहार अनगिनत बल्बों, मोमबत्तियों, दीपों, कंडीलों, झालरों के प्रकाश से अमावस्या के घोर अन्धकार को भी पूर्णिमा में परिवर्तित कर देता है। यह इस बात का प्रमाण है कि यदि मनुष्य के हृदय में खुशी हो तो वहाँ अन्धकार के लिए कोई स्थान नहीं होता। घरों, चौराहों, दुकानों, बाजारों, सरोवरों आदि अनेक स्थानों पर ये दीपक असंख्य तारों की भाँति टिमटिमाते हुए बहुत ही खूबसूरत लगते हैं। इसीलिए तो दीपावली के त्योहार को ‘आलोक पर्व’ भी कहते हैं।
दीपावली का त्योहार पूरे पाँच दिनों तक चलता है। यह त्योहार कार्तिक कृष्ण उपदेशी से लेकर कार्तिक शुक्ल द्वितीय तक मनाया जाता हैं। कार्तिक कृष्ण की भयोदशी को ‘धनतेरस’ कहते हैं। माना जाता है कि इस दिन भगवान श्री कृष्ण ने किसी राक्षस का वध किया था। इस दिन नए वर्तन तथा सोना चाँदी खरीदना बहुत शुभ माना जाता है। धनतेरस के अगले दिन ‘छोटी दीपावली’ आती है। इस दिन भगवान श्री राम, लक्ष्मण व सीता अयोध्या के मुख्य द्वार तक आ गए थे, किन्तु अयोध्या में उन्होंने प्रवेश नहीं किया था इसीलिए प्रत्येक हिन्दू परिवार अपने घर के मुख्य द्वार पर दीया जलाकर यह दर्शाता है कि भगवान अभी नगर के बाहर है तो उन्हें वहाँ भी प्रकाश मिलना चाहिए। अगले दिन बड़ी दीपावली होती है तथा इसके अगले दिल गोवर्धन पूजा होती है। इस दिन भगवान श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी कनकी (सबसे छोटी) ऊँगली पर उठाकर ब्रजवासियों को वर्षा से बचाया था। गोवर्धन के अगले दिन भाई दूज आता है। इस दिन बहने अपने भाई को तिलक करती हैं तथा उसकी लम्बी उम्र की कामना करती हैं।
दीपावली मनाने के कारण
दीपों का पर्व दीपावली किसी न किसी रूप में भारत की लगभग सभी जातियाँ मनाती हैं। इस उत्सव के साथ अनेक पौराणिक एवं दन्तकथाएँ जुड़ी हैं। ऐसा माना जाता है कि धर्मराज युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ की समाप्ति इसी दिन हुई थी। इसी दिन अयोध्या के राजा रामचन्द्र जी रावण को मारकर और चौदह वर्ष का वनवास काटकर लक्ष्मण तथा सीता सहित अयोध्या लौटे थे। उन्हीं के आगमन की खुशी से अयोध्यावासियों ने घर-घर दीप जलाकर प्रभु का स्वागत किया था तथा अपनी खुशी भी प्रकट की थी। घर-घर मिठाईयाँ तथा उपहार बाँटे गए थे। तभी से परम्परास्वरूप यह त्योहार आनन्द, उल्लास तथा विजय के प्रतीक के रूप में मनाया जाने लगा।
जैन धर्म के अनुयायी मानते हैं कि इसी दिन जैन धर्म के प्रवर्त्तक तथा चौबीसवें तीर्थकर भगवान महावीर स्वामी को निर्वाण प्राप्त हुआ था। इसी दिन सिक्खों के छठे गुरु हरगोविन्द सिंह जी 40 दिन नजरबन्द रहने के पश्चात् अमृतसर पधारे थे। आर्यसमाज के प्रवर्तक स्वामी दयानन्द सरस्वती को भी इसी दिन निर्वाण प्राप्त हुआ था। स्वामी रामतीर्थ ने इसी महान दिन अपनी नश्वर देह का परित्याग कर दिया था। पौराणिक गाथाओं के अनुसार सागर मन्थन होने पर इसी दिन लक्ष्मी माँ का आविर्भाव हुआ था। इस देवी की पूजा अर्चना करते हुए यह त्योहार आर्थिक सम्पन्नता का प्रतीक बन चुका है। व्यापारीगण इस दिन को अति पवित्र मानते हैं। वे इस दिन लक्ष्मी की प्रतिमा का पूजन करते हैं तथा पूजन के व्यापार से ही नए वहीखाते का शुभारम्भ करते हैं। सारी रात्रि लक्ष्मी पूजन होता है। लक्ष्मी पूजन को लक्ष्य करके लक्ष्मी लोक का पाठ भी किया जाता है। लोग रात भर लक्ष्मी के आगमन की प्रतीक्षा में अपने घर खुले रखते हैं।
ऋतु परिवर्तन तथा स्वच्छता की दृष्टि से भी यह त्योहार अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। वर्षाऋतु की समाप्ति अपने प्रभाव के रूप में अनगिनत विषैले कीटाणु, मच्छर मक्खी, खटमल आदि छोड़ जाती हैं। इनसे अनेक प्रकार के रोग फैलने की आशंका बनी रहती है जिस कारण लोग दीपावली से पूर्व अपने घरों, दुकानों, ऑफिसों आदि में लिपाई-पुताई करवाते हैं। सारा कूड़ा करकट बाहर निकालकर घरों को माँ लक्ष्मी के आगमन के लिए एकदम साफ-सुथरा कर देते हैं क्योंकि लोगों की ऐसी मान्यता है कि लक्ष्मी साफ घर में ही प्रवेश करती है।
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दीपावली मनाने की विधि
इस दिन लोग सुबह सबेरे ही घरों की सफाई कर उसे खूब सजाते हैं। घरों में विभिन्न पकवानों की खुशबू आती है। गलियों तथा बाजारों की शोभा देखते ही बनती है। हलवाईयों की दुकाने विशेष आकर्षण का केन्द्र होती है क्योंकि इस दिन सभी लोग मिठाईयाँ खरीदते हैं तथा अपने सगे-सम्बन्धियों तथा मित्रों आदि में वितरित करते हैं। सभी नए कपड़े पहनते हैं, बच्चे नए-नए खिलौने खरीदते हैं। पटाखे, फुलझड़ियाँ, अनारबम, हवाइयाँ, चकरी आदि छुड़ाकर अपनी खुशी प्रकट करते हैं। हर तरफ रोशनी, खुशी तथा उमंग का वातावरण होता है। संध्या समय सभी गणेश लक्ष्मी का पूजन करते हैं तथा एक दूसरे को दीपावली की मुबारकबाद देते हैं। प्रत्येक कोना रोशनी की जगमगाहट से नहाया होता है, अर्थात् अन्धेरे के लिए कोई स्थान नहीं होता।
जुए की कुप्रया
कुछ गलत लोग इस दिन जुआ खेलकर इस त्योहार की पवित्रता को भंग कर देते हैं। इन लोगों का मत होता है कि इस दिन जुआ खेलना अच्छा शगुन होता है, जो जुए में जीतता है, उस पर पूरे साल माँ लक्ष्मी मेहरबान रहती है। परन्तु होता इसके विपरीत है तथा अनेक घर बरवाद हो जाते हैं। जुआ खेलने के साथ-साथ कुछ लोग शराब भी पीते हैं वस्तुतः मदिरापान तथा घुत-क्रीड़ा द्वारा इस त्यौहार को मलिन होने से बचाना हम सबका कर्त्तव्य है।
उपसंहार- दीपावली हर्ष एवं उल्लास का पर्व है। यह उत्सव वास्तव में वीर-पूजा एवं वीर-विजय का स्मृति चिह्न है। इसे अज्ञान की अपेक्षा ज्ञान का प्रतीक माना जाता है। दीपक अमावस्या का अन्धकार हरता है। रावण की कुबुद्धि के अन्धकार को श्रीराम जी की भक्ति के ज्ञान ने दूर किया था। इसी प्रकार भारतवासियों को भी अपने देश से अज्ञान व अन्धकार को दूर कर ज्ञान के प्रकाश से सर्वत्र प्रसन्नता तथा ऐश्वर्य लाना चाहिए।