डच युद्ध (1672-1678 ) का संक्षिप्त मूल्यांकन कीजिए।

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डच युद्ध (1672-1678 ) – फ्रांस के विरुद्ध जो त्रिगुट बना था उसमें सबसे महत्वपूर्ण भूमिका हालैण्ड की थी जिसे लुई जैसा महत्वांकाक्षी व्यक्ति कभी भूल नहीं सकता था। अतः अफसर देखकर लुई ‘ने हालैण्ड के विरुद्ध आक्रमण कर दिया यह युद्ध सन् 1672-1678 ई. तक चला। प्रसिद्ध सेनापति कान्दे तथा ट्यूरेन की अध्यक्षता में सुशिक्षित एवं शक्तिशाली सेना हालैण्ड पर आक्रमण कर दिया और जल्द ही लारेन के प्रान्तों पर अधिकार करते हुए सेना एम्सटरडम के समृद्धिशाली प्रान्त तक पहुँच गई। और हत्सोत्साहित डचों ने ही विट की हत्या कर सम्पूर्ण सैनिक संचालन व देश रक्षा का भार विलियम के हाथों में आया।

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फ्रान्सीसी सेना के निरन्तर प्रगति को रोकने के लिए विलियम ने समुद्री बांध के जल को खुलवा कर समस्त देश को जलप्लावित कर दिया। जिससे फ्रांन्सीसी सेना बिना विजय किए वापस लौटना पड़ा। चतुर कूटनीतिज्ञ राजकुमार ने तुरन्त ही लुई के विरुद्ध एक शक्तिशाली यूरोपीय गुट का निर्माण किया।

इस गुट में आस्ट्रिया, स्पेन, ब्रेन्टेलबर्ग, डेनमार्क, इंग्लैण्ड सम्मिलित हुए। यह युद्ध अगामी कुछ वर्षों तक चली। फ्रेन्च की सेना ने कई स्थानों में प्राप्त की। लड़ते-लड़ते दोनों पक्षों के थकने के कारण 1678 ई. में दोनों पक्षों ने युद्ध समाप्त कर दिया और निमवेजिन की सन्धि कर ली।

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