छात्र असन्तोष पर संक्षिप्त निबन्ध लिखिए।

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प्रस्तावना – विन्रमता, आस्था, लगन, परिश्रम, सम्मान, कर्तव्यपरायणता जैसे गुण, जो कभी एक विद्यार्थी के आभूषण माने जाते थे, असन्तोष, अविनय, विक्षोभ, बदले की भावना में परिवर्तित हो चुके हैं। छात्र असन्तोष आज किसी एक देश की सीमा में न रहकर विश्वव्यापी समस्या बन चुका है। आधुनिक संचार साधनों के आविष्कारों से विभिन्न देशों में घटित घटनाएँ दूसरे स्थानों पर शीघ्रता से पहुँच जाती है और इन घटनाओं में आज की सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण घटना छात्र असन्तोष ही विश्वव्यापी समस्या है।

छात्र असन्तोष का स्वरूप

छात्र असन्तोष की विश्वव्यापी अभिव्यक्ति दंगा-फसाद, साथियों तथा शिक्षकों के साथ मारपीट, नारेबाजी, जूलूस, चाकू बाजी, विरोध सभाओं, हड़ताल, गोलीबारी, बंद आदि के रूप में सामने आ रही है। किन्तु ये सभी आन्दोलन तथा हिंसात्मक प्रवृत्तियों अकारण ही नहीं होते हैं, अपितु आज के युवा वर्ग, विशेषकर छात्रों को भिन्न-भिन्न समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है।

छात्र असन्तोष का कारण

विश्व के अलग-अलग देशों में छात्र असन्तोष के कारण भी अलग-अलग हैं। भारतवर्ष में इसके कुछ प्रमुख कारण इस प्रकार हैं-

1.प्रवेश की समस्या

आधुनिक छात्र की समस्याएँ शिक्षण संस्थाओं में प्रवेश लेने के समय से ही प्रारम्भ हो जाती है। जिन शिक्षण संस्थानों के स्कूल, कॉलेज में प्रवेश के लिए नियमानुसार प्रवेश सूची तैयार की जाती है, वहाँ सभी इच्छुक छात्रों को प्रवेश नहीं मिल पाता। इसके स्थान पर कम योग्यवान किन्तु धनी छात्रों को पैसे या फिर जान-पहचान के बल पर प्रवेश आसानी से मिल जाता है। ऐसे में प्रवेश पाने में असमर्थ कुठित छात्र प्रदर्शनों द्वारा अपना असन्तोष प्रकट करते हैं।

2. रहन-सहन की समस्याएं

रहने की समस्या का सामना सबसे अधिक बाहर से आकर पढ़ने वाले विद्यार्थियों को करना पड़ता है। अधिकतर कॉलेज में या तो छात्रावास है ही नहीं, या फिर बहुत कम है। ऐसे में भी छात्रों को इधर उधर रहकर गुजारा करना पड़ता है। छात्रावास में रहने पर भी तेजतर्रार छात्र सीधे-सरल छोटे शहरों के छात्रों का शोषण करते हैं। इस आन्तरिक विद्रोह का परिणाम भी छात्र आन्दोलनों में ही होता है।

3. किसे सम्बन्धित समस्याएं

आज कितनी ही शिक्षण संस्थाओं में जातिवाद, धन-बल या किसी और कारणवश अयोग्य तथा भ्रष्ट शिक्षकों की नियुक्ति हो जाती है, जो छात्रों की समस्याओं को समझने या सुलझाने के स्थान पर अपने ही स्वायों में लिप्त रहते हैं। ऐसे शिक्षक छात्रों का सही मार्गदर्शन नहीं कर पाते तथा न ही छात्रों की शैक्षिक जिज्ञासाओं को शान्त कर पाते हैं। कभी-कभी ऐसे शिक्षक राजनीतिक खेल खेलते हुए छात्रों को अन्य आदर्श शिक्षकों के खिलाफ भड़काते हैं, तो कभी ट्यूशन पढ़ने को विवश करते हैं तथा ऐसा न करने पर उनका शोषण करते हैं। ऐसे में कुछ जागरुक छात्र आन्दोलनों द्वारा अपना विद्रोह प्रकट करते हैं।

4. छात्रसंघों का निर्माण

वैसे तो छात्र संघों के निर्माण का उद्देश्य छात्रों की समस्याओं का समाधान होता है किन्तु आज अधिकतर छात्र संघों का स्वरूप बहुत विकृत हो चुका है और ये अपने आप में एक समस्या बन चुके हैं। आज छात्र संघों के दादा-किस्म के छात्र अपने स्वार्थों के लिए भोले-भाले छात्रों का दुरुपयोग करते हैं तथा जरा-जरा सी बात पर हड़ताल तथा तोड़-फोड़ पर उतर आते हैं। ऐसे छात्र पढ़ने नहीं केवल मौज मस्ती करने तथा दादागिरी करने ही कॉलेजों में आते हैं। ये हर साल फेल होते हैं और हर साल दोबारा आ जाते हैं।

5. दूषित शिक्षा प्रणाली

छात्र असन्तोष का एक मुख्य कारण दूषित शिक्षा प्रणाली तथा उद्देश्यहीन शिक्षा है। वर्ष भर अध्ययन करने वाले तथा केवल कुछ दिन पढ़कर परीक्षा देने वाले विद्यार्थियों का मूल्यांकन एक ही तरीके से किया जाता है। कभी-कभी शिक्षक भी प्रश्न-पत्र को दृष्टि में रखकर केवल कुछ पाठ्यक्रम ही पढ़ाते हैं, जिससे छात्रों का पूर्ण बौद्धिक विकास नहीं हो पाता है। ऐसे अपूर्ण ज्ञान वाले छात्र आगे जाकर जीवन में सफल नहीं हो पाते हैं। आज का छात्र शिक्षा तो पा रहा है, लेकिन वह शिक्षा उसका सर्वागीण विकास नहीं कर पा रही है। माता-पिता लड़कों को तो यह सोचकर पढ़ाते हैं कि आगे जाकर अच्छी नौकरी मिल जाएगी तथा लड़कियों को अच्छा ससुराल मिल जाएगा। धनी वर्ग के अनेक छात्र-छात्राओं का तो कोई उद्देश्य ही नहीं है, वे तो बस डिग्री हासिल करने के लिए कॉलेज में दाखिला लेते हैं तथा अपने पैसे के बल पर कमजोर तथा सीधे-सादे छात्रों का शोषण करते हैं। कभी-कभी सीधे छात्र भी आन्दोलनों द्वारा अपना गुस्सा प्रकट करते हैं ।

6. बेकारी की समस्या-

जब शिक्षा ही इतनी अपूर्ण होगी, तो बेकारी की समस्या तो फैलेगी ही। आज से तीन चार दशक पूर्व तक शिक्षित व्यक्ति को आसानी से रोजगार मिल जाता था, परन्तु आज हमारे देश में शिक्षित बेरोजगारी की संख्या अशिक्षित बेरोजगारों से अधिक है। ऐसी स्थिति में युवा वर्ग के मध्य कुंठा होना तो स्वभाविक ही है तथा यह कुंठा वे अनेक हड़तालों या आन्दोलनों के रूप में प्रदर्शित करते हैं।

7. आरक्षरण की नीति

आरक्षण नीति भी छात्र असन्तोष का एक मुख्य कारण है। आरक्षण नीति का प्रारम्भ दलित वर्ग के उत्थान तथा सामाजिक न्याय की भावना से हुआ था, किन्तु अब यह सामाजिक अन्याय बन चुका है। आज शिक्षण संस्थाओं में प्रवेश लेने, नौकरी पाने, सभी जगह आरक्षण है ऐसे में योग्य छात्र ऊँची जाति के कारण बेरोजगार घूम रहे हैं तथा अयोग्य परन्तु नीची जाति के युवा ऊँचे पदों पर आसीन हैं। यह कुंठा भी आन्दोलनों तथा जान-माल की हानि के रूप में ही सामने आती है।

8. राजनैतिक दलों का हस्तक्षेप

आज छात्रों को पतन की ओर ले जाने में राजनैतिक दल भी अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। आज प्रत्येक राजनीतिक दल की कोई न कोई छात्र शाखा अवश्य ही है, जिसके माध्यम से हर दिन शिक्षण संस्थाओं में हंगामा होता ही रहता है। अलग-अलग दलों के छात्र चुनावों में बढ़-चढ़कर अपने प्रत्याशियों का समर्थन करते हैं तथा अनैतिक तरीके अपनाते हैं। इस प्रकार राजनैतिक हस्तक्षेप भी असन्तोष की भावना पैदा कर हिंसा भड़काता है।

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छात्र असन्तोष का समाधान

उपरोक्त तो मात्र कुछ ही कारण थे इसके अतिरिक्त भी न जाने कितने ही कारण है जो छात्र असन्तोष पैदा करते हैं। • किन्तु यह कोई ऐसी समस्या नहीं है, जिसका समाधान न निकल सके।

छात्रों को पुस्तकालयों में सही शिक्षण सामग्री उपलब्ध कराई जानी चाहिए। शिक्षकों की ओर से छात्रों की प्रत्येक जिज्ञासा को शान्त किया जाना चाहिए। शिक्षकों की नियुक्ति योग्यता के आधार पर होनी चाहिए। छात्रावासों की समुचित व्यवस्था तथा आरक्षण का आधार जाति न होकर आर्थिक होना चाहिए। इसके अतिरिक्त शिक्षा ऐसी हो, जो छात्रों का चहुंमुखी विकास हो सके, साथ ही वे रोजगार पा सकें। इसके अतिरिक्त शिक्षण संस्थाओं में राजनीतिक दलों का हस्तक्षेप तो बिल्कुल भी नहीं होना चाहिए। छात्रों को भड़काने वाली संस्थाओं के प्रति कड़ा रुख अपनाया जाना चाहिए।

उपसंहार – इस प्रकार उपरोक्त विवेचन से यह बात स्पष्ट है कि शिक्षण संस्थाओं के आन्तरिक प्रशासन से सम्बद्ध समस्याओं को सुलझाने का सच्चे मन से प्रयास किया जाए तो छात्र असन्तोष की समस्या का अन्त हो सकता है तथा भारतवर्ष की पहचान ‘विनम्र छात्र पुनः वापस लौट सकता है। आज के विद्यार्थी ही कल के जिम्मेदार नागरिक बन सकते हैं तथा तभी हमारा राष्ट्र पूर्ण प्रगति तथा विकास की राह पर अग्रसर हो सकता है।

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