चीन के संविधान के राजनैतिक एवं संवैधानिक इतिहास – चीन में साम्यवादी क्रान्ति की सफल सम्पन्नता के फलस्वरूप 1 अक्टूबर 1949 के दिन देश को जनवादी गणराज्य घोषित किया गया। कुछ समय तक मार्क्स और लेनिन के सिद्धान्तों को निष्ठापूर्वक पालन करने के पश्चात् चीन ने उदारीकरण की प्रक्रिया अपनाई। आज यद्यपि चीन में साम्यवादी दल की सरकार है और विपक्ष का अभाव है, फिर भी वहाँ पाश्चात्य देशों की भाँति उदार अर्थव्यवस्था अपना ली गई है।
1949 से लेकर अब तक चीन में न केवल आर्थिक नीति में आमूल परिवर्तन हुए, वरन् राजनीति में भी उतार-चढ़ाव आए। आधुनिक चीन के संस्थापक माओ जे दाँग (माओ त्से तुंग) के जीवन काल में जिस कट्टरवादिता को अपनाया गया था, उसकी मृत्यु के पश्चात् राजनीति मैं भी कुछ उदारता आई।
चीन के जनवादी गणराज्य ने अब तक चार संविधान अपनाए हैं। वर्तमान संविधान का निर्माण 1982 में डैन जियाओ पिंग के मार्गदर्शन में किया गया। इस अध्याय में पृष्ठभूमि के तौर पर 1954, 1975 तथा 1978 के संविधानों का उल्लेख करने के पश्चात् वर्तमान संविधान और उस पर आधारित सरकार के प्रमुख लक्षणों की समीक्षा की गई है।
चीन का राजनीतिक एवं संवैधानिक इतिहास
1917 की वोल्शेविक क्रान्ति द्वारा विश्व में समाजवाद ने एक प्रमुख विचारधारा के रूप में व्यावहारिक स्वरूप ग्रहण कर लिया किन्तु जिन देशों ने इस विचारधारा को अपनाया वहाँ पहले से व्याप्त शासन प्रणाली को क्रान्ति द्वारा समाप्त किया गया और एक दल के प्रभुत्व के अन्तर्गत सर्वहारा वर्ग के अधिनायकवाद को स्थापित किया गया। चीन में भी 1949 में माओ-त्से-तुंग के नेतृत्व में हुए एक क्रान्ति के द्वारा जनवादी गणराज्य की स्थापना हुई।
तुलनात्मक शासन एवं राजनीति के भारतीय विद्यार्थियों के लिए चीन का अपना एक अलग से महत्व है। भारत के उत्तर में स्थित यह देश अब संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद् का एक स्थायी सदस्य बन गया है जिसकी गिनती विश्व की पाँच प्रमुख शक्तियों में होने लगी है। भारत की सभ्यता और संस्कृति की भाँति इसकी सभ्यता भी सबसे प्राचीन और धनी सभ्यताओं में से है।
इस देश पर विभिन्न युगों में विभिन्न वंशों द्वारा राज्य किया गया है जिनमें से प्रमुख वंश चिन, सुई, तांग, उत्तरी सुंग, दक्षिणी मुंग या मंगोल है। इन विभिन्न वंशों के सम्राटों के शासन काल मैं चीन की कीर्ति अपने चरम शिखर पर पहुँच गई थी। अन्तिम वंश मांचू वंश का साम्राज्य 1911 में समाप्त हो गया और इस वंश के साम्राज्य की समाप्ति से पहले ही यूरोप के अनेक व्यापारी चीन में अपने पैर जमाने लगे। प्रेट ब्रिटेन ने चीन में अफीम का व्यापार जोर-शोर से शुरू किया और जब चीन की सरकार ने इस पर रोक लगानी चाही तो ब्रिटेन और चीन के बीच युद्ध छिड़ गया। इस युद्ध में चीन को मुंह की खानी पड़ी और उसे ब्रेट ब्रिटेन को अनेक व्यापारिक सुविधाएं देनी पड़ी। आन्तरिक अशान्ति का बढ़ना स्वाभाविक था किन्तु प्राकृतिक प्रकोपों ने भी देश की फसलों को बर्बाद कर दिया। चारों ओर मुखमरी फैल गई। ब्रिटेन, फ्रांस और रूस ने धीरे-धीरे चीन के अनेक प्रदेशों पर कब्जा कर लिया। इस आर्थिक और राजनीतिक शोषण को देखकर चीन का पड़ोसी देश जापान भी पीछे न रहा और उसने फार्मोसा नामक टापू पर 1805 मे आधिपत्य जमा लिया। संक्षेप में, वह कहना गलत न होगा कि 20वीं शताब्दी के आरम्भ में संसार की साम्राज्यवादी और उपनिवेशवादी ताकतें चीन का खुलकर शोषण कर रही थी।
1931 और 1937 में जापान ने चीन पर आक्रमण कर दिया और उसके कुछ भूभाग पर अपना आधिपत्य जमा लिया। साम्यवादियों ने आपसी झगड़े को समाप्त कर जापान का डटकर मुकाबला किया।
1939 में द्वितीय विश्व युद्ध प्रारम्भ हो गया। चीन में साम्यवादी ने बड़े जोर-शोर से युद्ध में भाग लिया और जनता में अत्यधिक लोकप्रिय हो गए। 1945 में विश्व युद्ध समाप्त हो गए एवं च्यांग काई शेक ने साम्यवादियों के प्रति दुराभाव की नीति अपनाते हुए उन्हें एक बार फिर कुचलना चाहा किन्तु साम्यवादियों की लाल सेना पूरी तरह विकसित और संगठित हो चुकी थी। लगभग 10 लाख जवान प्रशिक्षण ले चुके थे। कुछ प्रमुख चीनवासियों ने च्यांग काई शेक और साम्यवादियों की सम्मिलित सरकार बनाने का प्रयत्न किया परन्तु वह विफल हो गए। फलस्वरूप 1946 में कोमिन्तांग और साम्यवादियों के बीच घमासान युद्ध प्रारम्भ हो गया। कोमिन्तांग में एकता का अभाव था और प्रशासन में भ्रष्टाचार दिन-प्रतिदिन बढ़ रहा था। सामान्य जनता की महानुभूति इनके साथ समाप्त हो गई। संक्षेप में, साम्यवादियों की बढ़ती हुई लोकप्रियता तथा चीन में आ रही साम्यवाद की लहर को कोमिन्तांग दल रोक न पाया च्यांग काई शेक साम्यवादियों को कुचलने की आशा अभी भी लिए बैठा था। अप्रैल, 1949 में उसने कहा था, “अगर कम्यूनिस्ट नैनकिंग (एक प्रसिद्ध शहर) लेने में सफल हो गए तो मै सन्-यात सेन के बुत के आगे खड़ा होकर आत्महत्या कर लूंगा।” च्यांग काई- शेक और उसके सहभागियों को लगातार साम्यवादियों के हाथों पराजय का मुंह देखना पड़ा जिसके फलस्वरूप 1949 में ही वह अपने समर्थकों के साथ भाग खड़ा हुआ और फार्मोसा चला गया और चीन की सम्पूर्ण मुख्य भूमि पर साम्यवादियों का एकाधिकार स्थापित हो गया। 1 अक्टूबर 1949 को चीन में जनवादी गणराज्य की स्थापना की घोषणा कर दी गई।
1949 का अंतरिम संविधान
चीन में जनवादी गणराज्य की स्थापना 1 अक्टूबर, 1949 को की गई थी, किन्तु अगले पाँच वर्षों तक वहाँ न तो कोई संविधान था और न ही कोई निर्वाचित विधानपालिका इन पाँच वर्षों में चीन पर वहाँ की जनवादी राजनीतिक परामर्शदात्री समिति ने शासन किया। समिति ने 60 अनुच्छेदों वाले एक सामान्य कार्यक्रम पर आधारित एक अन्तरिम संविधान को स्वीकार किया। इस समिति में विभिन्न राजनीतिक एवं सामाजिक संस्थाओं, उदार दलों, भौगोलिक क्षेत्रों तथा जनस्वातन्त्र्य सेना के 662 प्रतिनिधि थे। इस समिति द्वारा तैयार किए गये। सामान्य कार्यक्रम में शासन सत्ता की आन्तरिक तथा वैदेशिक नीति से सम्बन्धित सिद्धान्तों का उल्लेख या सामान्य कार्यक्रम माओ त्से-तुंग की पुस्तक ‘ऑन द पीपल्स डेमोक्रेटिक डिक्टेटरशिप तथा ‘आन न्यू डेमोक्रेसी’ में प्रतिपादित सिद्धान्तों का विस्तृत विवरण था।
1954 के संविधान के निर्माण होने तक राजनीतिक व्यवस्था 1949 के अन्तरिम संविधान के अन्तर्गत चलती रही जैसा कि पहले बताया जा चुका है कि 662 सदस्यों की जनवादी राजनीतिक परामर्शदात्री समिति देश का संविधान बनाने के लिए स्थापित की गई। देश के लिए कानूनों का निर्माण करने के लिए इस परामर्शदात्री समिति ने 56 सदस्यों की एक केन्द्रीय जन शासन समिति की स्थापना की।
फ्रांस तथा अमेरिकी सीनेट की तुलना कीजिए।
1954 का संविधान
नवम्बर 1952 में केन्द्रीय जनशासन समिति ने चीनी संविधान की रूपरेखा तैयार करने के लिए 33 व्यक्तियों की एक प्रारूप समिति नियुक्त की। इस समिति के सदस्य साम्यवादी दल के उच्चतम अधिकारी तथा दूसरी अन्य गैर दलीय संस्थाओं के प्रतिनिधि थे। संविधान की प्रथम रूपरेखा मार्च 1954 में एक संशोधित रूपरेखा को प्रकाशित करके जनता के समक्ष और अधिक विस्तृत रूप से विचार-विमर्श करने के लिए रख दिया गया। जनता के विचार-विमर्शो के आधार पर कुछ संशोधन एवं परिवर्तनों सहित 9 सितम्बर 1954 को केन्द्रीय जनशासन समिति ने संविधान की अन्तिम रूपरेखा को स्वीकार किया। इस प्रकार चीनी गणराज्य का संविधान एक लिखित प्रपत्र (Docoment) के रूप में 20 अक्टूबर 1954 को संसार के समक्ष आया। यह चीन का संविधान बहुत ही सरल चीनी भाषा में लिखा हुआ है। ताकि इसे चीन का साधारण नागरिक भी आसानी से समझ सके।
इस संविधान का मुख्य उद्देश्य देश में धीरे-धीरे समाजवाद की स्थापना करता था। यह संविधान चीन में जनवादी गणराज्य की स्थापना के पश्चात् चीनी जनक्रान्ति की राजनीतिक एवं आर्थिक उपलब्धियों की ओर संकेत करता था। इस संविधान के अन्तर्गत चीन ने सोवियतवाद का अन्धाधुन्ध अनुकरण न करके साम्यवाद को नये रूप में अपनाया, जिसे चीन में माओवाद के नाम से जाना जाता था। इस संविधान की अपनी कुछ प्रमुख विशेषताएँ थीं।