चन्द्रगुप्त तथा लिच्छवी के बीच क्या सम्बन्ध थे?

0
26

चन्द्रगुप्त तथा लिच्छवी के सम्बन्ध – चन्द्रगुप्त प्रथम के शासनकाल की सबसे 1 महत्वपूर्ण घटना है लिच्छवियों से वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित करना। लिच्छवि उस समय उत्तरी बिहार की प्रमुख राजनैतिक शक्ति थे। उनसे वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित कर गुप्त शासक ने शक्ति और प्रतिष्ठा हासिल की। गुप्त राजा ने लिच्छवि राजकुमारी से विवाह किया, जिससे समुद्रगुप्त पैदा हुआ। इस वैवाहिक सम्बन्ध का प्रमाण चन्द्रगुप्त कुमारदेवी प्रकार के सिक्कों से मिलता है जिन पर एक तरफ चन्द्रगुप्त के विवाह और मगध पर लिच्छवियों के शासन से सम्बद्ध अनेक विवादास्पद प्रश्न उठाए गए हैं। कौमुदीमहोत्सव नाटक के आधार पर जायसवाल का मानना था कि लिच्छवियों की मदद से गुप्तों ने मगध के किसी क्षत्रिय राजा को परास्त कर पाटलिपुत्र पर अधिकार किया। कौमुदीमहोत्सव नाटक में वर्णित चण्डसेन (चन्द्रसेन) की तुलना चन्द्रगुप्त प्रथम से की गई है। जायसवाल का यह मत अधिकांश विद्वानों को स्वीकार्य नहीं है। स्मिथ महोदय का विचार था कि लिच्छवि पाटलिपुत्र के शासक थे और गुप्त लिच्छवि वैवाहिक सम्बन्ध के परिणामस्वरूप गुप्त संग क शासक बने। डॉ. अल्तेकर के अनुसार इस विवाह के परिणामस्वरूप गुप्त एवं लिच्छवि राज्य हो संयुक्त हो गए। इस विवाह के कारण पाटलिपुत्र पर भी गुप्तों का आधिपत्य स्थापित हो गया, जहाँ लिच्छवि कुषाणों के अधीनस्थ शासक के रूप में शासन करते थे। एलन की धारणा है कि चन्द्रगुप्त ने सर्वप्रथम वैशाली पर अधिकार किया जो लिच्छवियों के अधीन थी और सन्धि की शर्तों के अनुसार कुमारदेवी का विवाह चन्द्रगुप्त से हुआ। इससे लिच्छवियों की प्रतिष्ठा बड़ी कुमारदेवी रानी और राज्य

साम्राज्य विस्तार

गुप्त राज्य की सीमा का चन्द्रगुप्त प्रथम ने काफी विस्तार किया। पौराणिक साक्ष्यों के आधार पर यह अनुमान व्यक्त किया जाता है कि बिहार और उत्तर प्रदेश के अधिकांश भागों पर चन्द्रगुप्त का अधिकार था। अनेक विद्वानों का मानना है कि वायु पुराण में गुप्तों के राज्य से सम्बद्ध जिन क्षेत्रों का उल्लेख है- अनुगंगा (गंगा के तट), प्रयाग, साकेत और मगध-वह वस्तुतः चन्द्रगुप्त के राज्य की सीमा बताता है। चन्द्रगुप्त का कोई अभिलेख नहीं है जिससे उसके राज्य की सीमा निर्धारित की जा सके, परन्तु समुद्रगुप्त की प्रयाग प्रशस्ति में कोसम या इलाहाबाद से लेकर पूर्व में गंगा तक की विजय का उल्लेख है। इससे अनुमान लगता है कि चन्द्रगुप्त ने इस क्षेत्र के माघवंशी शासकों को परास्त कर इस क्षेत्र पर अधिकार कर लिया। प्रयाग प्रशस्ति में समुद्रगुप्त द्वारा पद्मावती, मथुरा, अहिच्छत्र, श्रावस्ती और कौशाम्बी की विजय का उल्लेख हुआ है।

कुषाणों के भारत में शासन पर एक लघु निबन्ध लिखिए।

इससे स्पष्ट होता है कि समुद्रगुप्त का पैतृक राज्य पश्चिम में उत्तर प्रदेश के मध्य तक था। पूर्व में उसका निकटतम पड़ोसी पश्चिम बंगाल का चन्द्र था। इससे बंगाल पर चन्द्रगुप्त के आधिपत्य की पुष्टि नहीं होती। मगध के उत्तर में किसी राज्य का उल्लेख नहीं है और नेपाल को सीमावर्ती राज्य बताया गया है। दक्षिण के राज्य समुद्रगुप्त के समय अधीन हुए थे। पी. एल. गुप्त ने बंगाल पर भी चन्द्रगुप्त का अधिकार माना हैं, परन्तु प्रो. गोयल के अनुसार चन्द्रगुप्त के साम्राज्य में समस्त बिहार, पूर्वी उत्तर प्रदेश एवं उसके निकटवर्ती क्षेत्र-मगध, वैशाली, वत्स और कोशल सम्मिलित थे।

गुप्त संवत् का प्रारम्भ

गुप्त संवत् का प्रारम्भ चन्द्रगुप्त प्रथम न सम्भवतः 319-20 ई. में किया था। यद्यपि अनेक विद्वान इसका श्रेय चन्द्रगुप्त द्वितीय को देते हैं। फ्लीट महोदय गुप्त संवत् का संस्थापक चन्द्रगुप्त प्रथम को ही मानते हैं। अलबरूनी के इस विवरण से कि शक और गुप्त संवत में 241 वर्षों का अन्तर था, इसकी पुष्टि होती है। अपने जीवन के अन्तिम चरण में चन्द्रगुप्त प्रथम ने समुद्रगुप्त को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त कर स्वयं सन्यास ले लिया। प्रयाग प्रशस्ति एरण और ऋद्धपुर-अभिलेखों से इस घटना की पुष्टि होती है। चन्द्रगुप्त ने नवोदित गुप्त राज्य को राजनैतिक सम्मान दिलाया, जिस पर समुद्रगुप्त ने एक विशाल साम्राज्य स्थापित किया।

    LEAVE A REPLY

    Please enter your comment!
    Please enter your name here