चन्द्रगुप्त द्वितीय के जीवन चरित्र – चन्द्रगुप्त द्वितीय, समुद्रगुप्त का कनिष्ठ पुत्र था। अपने बड़े भाई रामगुप्त की हत्या कर 380 ई. के लगभग यह गुप्त राजसिंहासन पर आसीन हुआ। उसने लगभग 414-15 ई. तक शासन किया। यह समुद्रगुप्त के पश्चात् गुप्तवंश का श्रेष्ठतम शासक माना जाता है। उसके समय में गुप्त साम्राज्य अपने विकास के शीर्षस्थल पर पहुँच गया। इसका दूसरा नाम देवराज अथवा देवगुप्त थी। शासक बनने के पश्चात् इसने ‘विक्रमादित्य’ की उपाधि भी धारण की चन्द्रगुप्त के शासनकाल का सबसे महत्वपूर्ण अभिलेख दिल्ली में स्थित मेहरौली तीह-स्वम्माभिलेख है।
चन्द्रगुप्त द्वितीय गुप्तवंश का ही नहीं अपितु प्राचीन भारत का महान शासक था। यह एक वीर योद्धा, साम्राज्य निर्माता, कुशल प्रशासक एवं सफल कूटनीतिज्ञ के रूप में विख्यात है। यह एक प्रजावत्सल शासक था, जो सदैव अपनी प्रजा के हित की कामना करता था। स्वयं वैष्णव होते हुए भी उसने धार्मिक सहिष्णुता की नीति अपनायी। चीनी यात्री फाह्यान चन्द्रगुप्त की उदार धार्मिक नीति एवं दानशीलता की प्रशंसा करता है। चन्द्रगुप्त ने मुद्रा व्यवस्था में भी परिवर्तन किया।
संगम युगीन प्रशासनिक व्यवस्था पर प्रकाश डालिये।
उसने चाँदी एवं ताँबे के सिक्के भी जारी किए। वह कला एवं साहित्य का प्रेमी एवं विद्वानों का आश्रयदाता था। उसका दरबार नवरत्नों से सुशोभित था, जिनमें सबसे विख्यात महाकवि कालिदास थे। इस समय आर्थिक प्रगति हुई एवं विभिन्न कलाओं का विकास हुआ। अगर गुप्तकाल भारतीय इतिहास का स्वर्णयुग था, तो वह काल वस्तुतः चन्द्रगुप्त द्वितीय का ही शासनकाल था।