चन्देलों के प्रारम्भिक इतिहास के बारे में आप क्या जानते

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चन्देलों के प्रारम्भिक इतिहास – चन्देल वंश की स्थापना 831 ई. में नन्नुक नामक व्यक्ति द्वारा की गयी थी। इस वंश के प्रारम्भिक शासक गुर्जर प्रतिहार नरेशों के सामन्त थे लेकिन प्रतिहार सत्ता के कमजोर होने के साथ-साथ चन्देल शासक अपनी शक्ति बढ़ाते गये प्रारम्भिक शासकों वाकपति, जयशक्ति, विजयशक्ति के बाद 905 ई. में हर्ष नामक व्यक्ति के हाथों में इस वंश की बागडोर आ गयी जिसने परमभट्टारक की उपाधि धारण की और अपने आपको प्रतिहारों से स्वतन्त्र शासक घोषित किया और प्रतिहारों से कालिंजर भी छीन लिया तथा उसने कलचुरि परमार एवं उड़ीसा से युद्ध किये चन्देलों के सर्वाधिक प्रतापी राजा धंगदेव एवं गंडदेव थे।

भंग ने प्रतिहारों से पूर्ण स्वतन्त्रता प्राप्त की तथा वरार, लंका, काँची और कौशल के राजाओं को पराजित किया। गंड का पुत्र विद्याधर भी एक पराक्रमी शासक था। चन्देल वंश का अन्तिम महान शासक परमर्दिदेव अथवा परिमल था। जब पृथ्वीराज चौहान ने परमर्दि पर आक्रमण किया तब उसके वीर सेनानायकों आल्हा एवं ऊदल ने भयंकर संघर्ष किया परन्तु वह पराजित हुआ।

पृथ्वीराज तृतीय (चामान) की विजय पर प्रकाश डालिए।

1200 ई. में उसने (परमर्दि ) कुतुबुद्दीन ऐबक के कालिंजर विजय को रोकने का असफल प्रयास किया। एवल ने कालिंजर पर अधिकार कर लिया। यद्यपि चन्देलों की शक्ति नष्ट हो गयी तथापि वे अलाउद्दीन खिलजी के समय तक राजनैतिक शक्ति के रूप में विद्यमान रहे।

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