Sociology

सामाजिक स्तरीकरण का अर्थ, परिभाषा एवं आवश्यकता पर प्रकाश डालिए।

सामाजिक स्तरीकरण का अर्थ एवं परिभाषा – सामाजिक स्तरीकरण वह सामाजिक व्यवस्था है जिसके अन्तर्गत समाज के विभिन्न समूहों को क्रमशः उच्च से निम्न तक की स्थिति, पद या स्थान प्राप्त होते हैं और उसी के अनुसार एक समूह विशेष कुछ विशेषाधिकारों अथवा निर्योग्यताओं का भी हकदार होता है। दूसरे शब्दों में हम कह सकते …

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मार्क्सवादी परिप्रेक्ष्य की व्याख्या कीजिए।

मार्क्सवादी परिप्रेक्ष्य – भारतीय समाजशास्त्र को अमूल्य योगदान प्रदान करने वाले दुर्जटि प्रसाद मुखर्जी को लोग प्यार से डी.पी. के नाम से पुकारते थे। मुखर्जी नियोजन (Planing) में विश्वास करते थे। ये वर्ग और विशेषाधिकारों के विरुद्ध थे। ये समस्त ज्ञान की एकता और अनुभव के एकीकरण में विश्वास करते थे। भारतीय समाज को समझाने …

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मूल्यों का महत्व अथवा प्रकार्य की व्याख्या कीजिए।

मूल्यों का महत्व अथवा प्रकार्य को स्पष्ट करते हुए मुखर्जी ने कहा कि किसी भी सामाजिक विज्ञान को मूल्यों से अलग करके नही समझा जा सकता है। मूल्यों के महत्त्व एवं प्रकार्य को निम्न क्षेत्रों में समझा जा सकता है- (1) सामाजिक व्यवस्था तथा संतुलन में सहायक सामाजिक जीवन का निर्माण अनेक पक्षों से होता …

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वर्गों का उदय की विवेचना कीजिए।

वर्गों का उदय – मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है परन्तु मार्क्स के अनुसार मनुष्य एक वर्गप्राणी है। मार्क्स का कथन है कि किसी भी युग में जीविका उपार्जन की प्राप्ति के विभिन्न साधनों के कारण मनुष्य पृथक- पृथक् वर्गों में विभाजित हो जाते हैं। वर्ग का जन्म उत्पादन के नवीन तरीकों के आधार पर होता …

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दुर्खीम का धर्म पर विचार कीजिए।

दुर्खीम का धर्म पर विचार – दुर्खीम ने धर्म के स्वरूप एवं प्रकृति की उन सभी परिभाषाओं का खण्डन किया है जिसमें यह बताया गया है कि ईश्वर या आलौकिक शक्ति में विश्वास ही धर्म है। दुखों का मानना है कि आलौकिक शक्ति का विचार धर्म के इतिहास में बाद की घटना है। ईश्वरीय या …

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अधिसंरचना की व्याख्या कीजिए।

अधिसंरचना – मार्क्स की कृतियों में सामाजिक संरचना के सम्बन्ध में जो विचार व्यक्त किया गया है, उसके अध्ययन से यह पता चलता है कि मार्क्स ने सम्पूर्ण सामाजिक संरचना को दो भागों में विभाजित करके उनके बारे में विश्लेषण किया है। समाज के सम्पूर्ण ढाँचे के ऊपरी भाग को उन्होंने ‘अधिसंरचना’ कहा है जबकि …

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पूँजीवाद के विकास में प्रोटेस्टेड धर्म की व्याख्या कीजिए।

पूँजीवाद के विकास में प्रोटेस्टेड धर्म – वेबर ने विश्व के प्रमुख धर्मों का व्यापक अध्ययन करके धर्म की समाजशास्त्रीय व्याख्या करने का प्रयास किया है। वेबर ने अपने ग्रन्थों में धर्म और आर्थिक व सामाजिक घटनाओं के सम्बन्ध का उल्लेख किया है। वेबर के धार्मिक विचारों या धर्म के समाजशास्त्र की व्याख्या उसके प्रसिद्ध …

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सत्ता की अवधारणा की व्याख्या कीजिए।

सत्ता की अवधारणा – मैक्स वेबर के अनुसार समाज में सत्ता विशेष रूप से आर्थिक आधारों पर आधारित होती है। यद्यपि आर्थिक आधार सत्ता के निर्धारण में एक मात्र कारक नही कहा जा सकता। आर्थिक जीवन में यह सहज ही स्पष्ट है कि एक ओर मालिक वर्ग उत्पादन के साधनों और मजदूरों की सेवाओं पर …

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मध्य क्षेत्रीय सिद्धान्त (मर्टन) की व्याख्या कीजिए।

मध्य क्षेत्रीय सिद्धान्त (मर्टन) – मध्य अभिसीमा के सिद्धान्त न तो छोटे-मोटे अध्ययनों या शोध कार्यों के आधार पर निकाले गये सादे व सरल निष्कर्ष है और न ही बहुत विस्तृत पैमाने में समस्त व्यवस्थित प्रवासों द्वारा प्रतिपादित समन्वित व पारित सिद्धान्त ही है, अपितु इन दोनों के बीच की स्थिति है। इस सिद्धान्त के …

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अनुसूचित जनजातियों का अर्थ एवं परिभाषा बताते हुए इसकी समस्याओं पर प्रकाश डालिए।

अनुसूचित जनजातियों का अर्थ – अनुसूचित जनजातियों से अभिप्राय उन व्यक्तियों से है जो आधुनिक सभ्यता से दूर पर्वतों अथवा जंगलों आदि में निवास करते हैं। इनका अपना एक पृथक् रहन-सहन, धर्म एवं व्यवसाय होता है। इन व्यक्तियों को अपने परम्परागत निषेधों का पालन भी करना पड़ता है। जनजातियों को अदिम समाज, आदिवासी एवं वन्य …

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