ब्रिटिश राजा के पद
सरकार में राजा (या रानी) की वास्तविक भूमिका सिद्धान्त में क्राउन की सब शक्तियों का प्रयोग राजा करता है। पर क्योंकि राजा संसद के प्रति उत्तरदायी है। इसलिए उसके कार्यों पर मन्त्री जो कि कॉमन सभा के प्रति उत्तरदायी होते हैं, पुनः प्रतिहस्ताक्षर करते हैं। नाँस्की के अनुसार, राजा को मन्त्रियों की सलाह पर ही प्रत्येक काम करना है। आज राजा राज्य तो करता है परन्तु शासन नहीं उसके पास वास्तविक शक्ति नहीं है और न ही उसका कोई उत्तरदायित्व है। इंग्लैण्ड की एक पुरानी कहावत है कि ‘राजा कोई गलती नहीं कर सकता।”
पुराने समय में जब राजा निरंकुश था तथा उसे ईश्वर का प्रतिनिधि कहा जाता था तब, वह जो काम करता था उसे ठीक कहा जाता था, उससे कोई भी प्रश्न नहीं कर सकता था, न ही वह किसी के प्रति उत्तरदायी था। आज, जबकि राजा से उसकी सारी शक्तियाँ छीन ली गई हैं तब भी उसके बारे में यह कहावत है कि राजा कोई गलती नहीं कर सकता। यह कहावत आज भी ठीक बैठती है, क्योंकि आज जब वो कोई कार्य ही नहीं करता तो वह गलती कैसे करेगा ? मन्त्री जो कार्य करता है, यह उत्तरदायी भी है। डायसी ने तो यहाँ तक कहा है कि यदि राज्य अपने प्रधानमन्त्री को गोली मार दे तो भी उसके विरुद्ध कानूनी कार्यवाही नहीं की जा सकती है।
राजा की वास्तविक स्थिति को जानने के लिए हमें उसकी शक्तियों तथा उसके प्रभाव में अन्तर स्थापित करना होगा, क्योंकि अगर वह वास्तविक शक्तियों का प्रयोग नहीं करता तो भी उसका प्रभाव बना हुआ है। राज्य का वह नाममात्र का शासक है फिर भी जैसे बेजहॉट का कहना है कि राजा को अभी भी तीन महत्वपूर्ण अधिकार प्राप्त हैं- परामर्श देने का अधिकार, प्रोत्साहन देने का अधिकार और चेतावनी देने का अधिकार उनके शब्दों में “एक बुद्धिमान राजा | को इससे अधिक अधिकारों की आवश्यकता भी नहीं।” राजा, राज्य का अध्यक्ष है। सभा के सारे काम उसी के नाम से किये जाते हैं।
राजा तथा मन्त्री के पारस्परिक सम्बन्धों के बारे में हमारा ज्ञान पर्याप्त तो नहीं फिर भी साम्राज्ञी विक्टोरिया सम्राट जार्ज पंचम के प्रभावशाली शासन के बारे में कौन अनभिज्ञ है। देखने में राजा काफी प्रभावित करता है। शानदार महलों में रहता है तथा विशेष समारोहों के अवसर पर राजसी वस्त्र तथा मुकुट धारण करता है। वह मण्डल का अध्यक्ष है तथा सारे साम्राज्य से राजभक्ति तथा सम्मान प्राप्त कर लेता है। युद्ध के समय लोग राजा के लिए लड़ते हैं। पद ग्रहण करते समय क्या प्रधानमन्त्री राजा के हाथ का चुम्बन करता है। समाज में भी उसका पहले की तरह सम्मान होता है, परन्तु सार्वजनिक मामलों पर अब उसका नियन्त्रण नहीं रह गया। फिर भी प्रभाव कई बार सार्वजनिक मामलों पर काफी होता है। राजतन्त्र को बेकार या अनावश्यक कहना ठीक नहीं है। आज भी उसका काफी महत्व है।
राजा की वास्तविक शक्तियाँ
सिद्धान्त में ही नहीं अपितु व्यवहार में भी राजा कई महत्त्वपूर्ण काम करता है। यह केवल “मिट्टी का माधो” या केवल शोभा की वस्तु नहीं है। जैसा कि विंस्टन चर्चिल ने एक बार कहा था, “ब्रिटेन की संवैधानिक प्रणाली के अधीन राजा को पूरी सूचना प्राप्त करने का अधिकार है तथा उसे अपनी सरकार को सलाह देने का असीमित अधिकार है।” जार्ज प्रथम से लेकर अब तक चाहे किसी राजा के मन्त्रिमण्डल की बैठकों में भाग नहीं लिया, फिर भी महत्वपूर्ण विषयों पर उसकी जानकारी कई अन्य मन्त्रियों से अधिक होती है। इसके अतिरिक्त कई ऐसे कार्य है जो राजा को स्वयं करने होते हैं। विदेशी राजदूतों का वह स्वागत करता है, यद्यपि उस समय एक मन्त्री भी उपस्थित होता है। संसद अधिवेशन का आरम्भ वह अपने अभिभाषण से ही करता है। यद्यपि उसकी अनुपस्थिति में लॉर्ड चान्सलर यह कार्य करता है। वह कॉमन सदन के स्पीकर के चुनाव को मान्यता देता है। कई बार संकट की परिस्थिति को दूर करने के लिए उसे सक्रिय भाग लेना पड़ता है। आमतौर पर तो द्विदलीय प्रणाली के कारण एक दल को बहुमत प्राप्त होता है और दूसरा दल अल्पमत वाला हो जाता है।
उस समय तो बहुमत प्राप्त दल के नेता को ही राजा प्रधानमन्त्री नियुक्त करता है। परन्तु ऐसी व्यवस्था में, जबकि किसी दल का स्पष्ट बहुमत नहीं होता या फिर अवधि से पहले ही प्रधानमंत्री त्यागपत्र दे देता है या उसकी आकस्मिक मृत्यु हो जाती है तो ऐसी परिस्थिति में राजा को अपनी इच्छानुसार प्रधानमन्त्री नियुक्त करना होता है। ऐसे समय वह अपनी वास्तविक शक्ति का प्रयोग करता है। इस प्रकार की असाधारण परिस्थिति में राजा महत्वपूर्ण काम करता है, यहाँ तक कि एक सरकार के गिरने तथा दूसरी के बनने के बीच के समय में सारी कार्यपालिका शक्तियाँ राजा के हाथ में आ जाती हैं। सन् 1931 में रैम्ब्रे मैक्डानल्ड को जिसने श्रमिक दलीय सरकार के नेता के रूप में त्यागपत्र दे दिया था, सम्राट ने राष्ट्रीय सरकार का प्रधानमंत्री नियुक्त किया। संवैधानिक संकट की परिस्थिति को दूर करने के लिए कई बार संसद को भी भंग किया जा सकता है। परन्तु ऐसा राजा केवल प्रधानमंत्री के कहने पर ही करता है। चाहे तो वह ऐसा करने से इन्कार भी कर सकता है। इन्कार करना उसके लिए स्वयं अपने पैर पर कुल्हाड़ी मारना है।
वास्तव में राजा का प्रभाव तथा उसके प्रधानमन्त्री से सम्बन्ध उसके अपने व्यक्तित्व पर निर्भर करता है। यह प्रधानमन्त्री के लिए सहायक भी बन सकता है और यदि प्रधानमन्त्री कमजोर है। तो उस पर शासन भी कर सकता है। अगर राजा एक दुर्बल व्यक्तित्व का हो और प्रधानमन्त्री प्रभावशाली व्यक्तित्व का हो तो राजा को नाममात्र शासक से अधिक नहीं कहा जायेगा।
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