ब्रिटिश प्रधानमंत्री की शक्तियों, कार्यों और स्थिति की विवेचना कीजिये।

प्रधानमन्त्री की स्थिति

प्रधानमन्त्री की स्थिति- ब्रिटेन में प्रधानमन्त्री का पद संसार के सर्वाधिक शक्तिशाली राजनीतिक पदों में से एक है। केवल निरंकुश तानाशाही या साम्यवादी देशों के राजनीतिक सर्वोच्च नेताओं को छोड़कर ब्रिटिश प्रधानमन्त्री को संसर के किसी भी सर्वोच्च शासनाध्यक्ष के समकक्ष रखा जा सकता है। सम्राट तो ब्रिटेन का मात्र एक औपचारिक प्रधान है जबकि प्रधानमन्त्री राष्ट्र का सर्वेसर्वा है और राज्य की वास्तविक शक्तियों का प्रयोग करता है। प्रधानमन्त्री शासन का सर्वमान्य नेता मार्गदर्शक तथा मन्त्रिमण्डल में सर्वाधिक महत्वपूर्ण व्यक्ति होता है। 10, डाउनिंग स्ट्रीट, ब्रिटेन के प्रधानमन्त्री का शासकीय कार्यालय है। ग्लेडस्टन के शब्दों में- “प्रधानमन्त्री मन्त्रिमण्डल रूपी मेहराब की आधारशिला है।” रैम्बे म्योर ने कहा है- “मन्त्रिमण्डल राज्य रूपी जहाज का मंत्र है और प्रधानमन्त्री उस यंत्र का चालक है।” जैनिंग्स के अनुसार, प्रधानमन्त्री को सम्पूर्ण संविधान की आधारशिला कहना अधिक उपयुक्त होगा।

प्रधानमन्त्री पद का विकास

जब 1878 में ब्रिटेन ने बर्लिन संन्धि पर हस्ताक्षर किये तब पहली बार प्रधानमन्त्री नाम का उल्लेख किया गया। ब्रिटेन के प्रधानमन्त्री लाई बेकन्सफील्ड ने संघ पत्र पर हस्ताक्षर किये थे। उन्होंने अपने नाम के साथ हर मेजस्टी की ट्रेजरी का प्रथम लाई तथा इंग्लैण्ड का प्रधानमन्त्री लिखा था इसके बाद 1906 में राज्य के विभिन्न उत्सवों में प्रमुखता की सूची में प्रधानमन्त्रीको सम्राट रानी और वार्क के आर्कबिशप के बाद चौथे स्थान पर रखा गया। इस दिशा में सर्वाधिक महत्वपूर्ण पग 1937 में मिनिस्टर्स ऑफ क्राउन एक्ट में उठाया गया। इस अधिनियम में प्रथम बार प्रधानमनी के पद को वैधानिक मान्यता दी गई।

प्रधानमन्त्री की नियुक्ति

बहुमत दल का नेता

संविधान की औपचारिक भाषा के अनुसार प्रधानमन्त्री की नियुक्ति सम्राट करता है। परन्तु वस्तुस्थिति यह है कि नवनिर्वाचन के पश्चात संसद में बहुमत प्राप्त दल के नेता को सम्राट प्रधानमन्त्री बनने का निमन्त्रण देता है। दल का नेता कौन होगा, इस विषय में अधिक कठिनाई सम्राट को नहीं होती। निर्वाचन से पूर्व ही यह स्पष्ट हो जाता है कि दत्त का नेता कौन रहेगा।

सम्राट का स्वविवेक

ऐसी स्थिति तब स्पष्ट होती है जब संसद में किसी भी दल का स्पष्ट बहुमत न हो। 1916 और 1931 में ऐसा हुआ था। दोनों समय संयुक्त सरकारें बनी थीं और सम्राट को स्वविवेक से निर्णय लेना पड़ा था। 1916 में प्रधानमन्त्री एस्क्व के त्यागपत्र के पहात सम्राट ने बोनर लॉ को प्रधानमन्त्री पद के लिए आमंत्रित किया था। र्ती सभा के दूसर बड़े दल का नेता था तथा लॉयर्ड जार्ज का प्रधानमन्त्री उसी अवस्था में बनाया गया, जब लाँ ने इन्कार कर दिया। परन्तु 1931 में सम्राट ने वास्तव में स्वविवेक से कार्य किया। अल्पमत दल के नेता मेकडानाल्ड को प्रधानमन्त्री बनाया और सदन में बहुमत दिलाने के लिये सम्राट ने भी प्रयत्न किये। यदि नेता के निर्वाचन में कठिनाई हो अथवा संसद की अवधि से पूर्व ही किसी प्रधानमन्त्री को त्यागपत्र देना पड़े और जाने वाला प्रधानमन्त्री सम्राट को किसी एक व्यक्ति को प्रधानमन्त्री बनाने का विचार रखे तथा दल किसी अन्य व्यक्ति को नेता चुनना चाहे तो ऐसी स्थिति में, फिर से, सम्राट स्वविवेक का प्रयोग कर सकता है।

केवल कॉमन सभा से

अब यह परिपाटी बन गयी है कि प्रधानमन्त्री केवल कॉमन सभा से हो। 1923 में लार्ड कर्जन को अधिक लोकप्रिय और अनुभवी होने पर भी प्रधानमन्त्री इसलिये नहीं बनाया गया कि वह लार्ड सभा का सदस्य था। 1963 में जब लार्ड ह्यूम ने लाई सभा के त्यागपत्र देकर कॉमन सभा का उपचुनाव लड़ा और इस परिपाटी पर अन्तिम रूप से मोहर लगा दी कि प्रधानमन्त्री केवल कॉमन सभा में से ही हो सकता है।

प्रधानमन्त्री की शक्तियाँ और कार्य

प्रधानमन्त्री जैसा कि मेरियट ने कहा है ” देश का राजनीतिक शासक है।” इस राजनीतिक शासक की, जिसे लेखकों ने उस सूर्य के समान बताया है और जिसके चारों ओर नक्षत्र घूमते हैं, शक्तियों और महत्व का वर्णन और वास्तविक मूल्यांकन बहुत आवश्यक है। प्रधानमन्त्री को निम्नलिखित महत्वपूर्ण कार्यों और दायित्वों का निर्वहन करना पड़ता है

1.मन्त्रिमण्डल का निर्माण

अपनी नियुक्ति के बाद प्रधानमन्त्री सबसे पहले अपने मन्त्रिमण्डल का गठन करता है। सैद्धान्तिक रूप से मन्त्रियों की नियुक्ति ताज द्वारा होती है किन्तु व्यवहार में प्रधानमन्त्री अपने सहयोगियों को चुनने में पूर्ण स्वतन्त्र होता है। वह संसद के जिन सदस्यों की सूची बनाकर सम्राट के सम्मुख रखता है, सम्राट के लिये उसे स्वीकार करना आवश्यक है। अतः प्रधानमन्त्री ही मन्त्रिमण्डल का निर्माता है।

2. मन्त्रिमण्डल का संचालन

मन्त्रिमण्डल के निर्माण के समान कठिन कार्य मन्त्रिमण्डल का संचालन है । मन्त्रिमण्डल एक टीम के समान है और प्रधानमन्त्री उस टीम का कप्तान है। खेल में हार-जीत का श्रेय उसी पर रहता है। वही विभागों का बंटवारा करता है। वही विभिन्न विभागों की महत्वपूर्ण नीतियों के सम्बन्ध में अन्तिम स्वीकृति देता है। वही विभिन्न विभागों के मध्य समन्वय स्थापित करता है। राजबेरी के अनुसार ” वह प्रत्येक मन्त्री के विभाग का सहयोगी होता है और समस्त विभागों का अध्यक्ष भी वह प्रत्येक विभाग के सम्बन्ध में उत्सुक रहता है और इधर-उधर घूमता रहता है। वह मन्त्रिमण्डल रूपी संचालक मण्डल का मुखिया है।”

3. शासन का नेतृत्व और संचालन

प्रधानमन्त्री केवल मन्त्रिमण्डल का नेता ही नहीं वरन् सम्पूर्ण शासन का नेता है। शासन का नेता होने के नाते वस्तुतः वह सभी उन कार्यों का संचालन करता है जो ताज द्वारा किये या माने जाते हैं। निःसन्देह इन कार्यों के संचालन और सम्पादन में वह अपने सहयोगियों का विश्वास और सहयोग प्राप्त करके चलता है। अपने सहयोगियों के सहयोग से प्रधानमन्त्री सम्पूर्ण देश का शासन करता है। सभी महत्वपूर्ण नियुक्तियाँ प्रशासन सम्बन्धी नीतियाँ, युद्ध और शान्ति का निर्णय, विदेश नीति पर महत्वपूर्ण निर्णय आदि सभी प्रमुख बातों पर अन्तिम निर्णय उसी का रहता है। वह स्वयं, अन्य मन्त्रियों की तरह किसी महत्वपूर्ण विभाग का अध्यक्ष रहता है और उस विभाग का पूरा प्रशासन वह स्वयं करता है। शासन का नेता और मन्त्रिमण्डल का अध्यक्ष होने के नाते वित्तीय बजट के सम्बन्ध में भी अन्तिम रूप से उत्तरदायी वही है।

4. सम्राट को परामर्श

प्रधानमन्त्री वह कड़ी है जो संसद और सम्राट तथा मन्त्रिमण्डल और सम्राट को जोड़ती है। वह प्रधानमन्त्री होने के नाते संसद तथा मन्त्रिमण्डल के निर्णयों से सम्राट को अवगत कराता हैं। देश में चलने वाली विभिन्न राजनीतिक गतिविधियों के सम्बन्ध में भी वह समय-समय पर सम्राट को अवगत कराता है।

5. दल का नेता

प्रधानमन्त्री का अस्तित्व मूलतः इसी तथ्य पर निर्भर करता है कि यह संसद में बहुमत दल का नेता है। संसद में अपने दल के बहुमत तथा उसके बने रहने के विश्वास पर ही वह और उसका मन्त्रिमण्डल निःशंक हो कार्य करते है। विलसन के शब्दों में, “अपने दल की सहायता के बिना वह कुछ भी नहीं है।” परन्तु उसका दल भी उसका ऋणी होता है, क्योंकि आम चुनाव के मझधार से वही दल रूपी नौका को सफलतापूर्वक खेकर उसे पार लगाता है। यह एक सर्वविदित तथ्य है कि वर्तमान समय में आम चुनाव दल के नाम पर कम और उसके नेता के नाम पर ज्यादा लड़े जाते हैं।

6.संसद का नेता

प्रधानमन्त्री केवल अपने दल का नेता ही नहीं, बल्कि वह समूची संसद का नेता है। संसद में अपने दल का नेता होने के नाते जहाँ उसे सचेतक के माध्यम से अपनी पार्टी को अनुशासित बनाये रखना होता है, वहीं सदन का नेता होने के नाते उसे पूर्ण सदन में व्यवस्था व सदन की प्रतिष्ठा का भी ध्यान रखना होता है।

नागभट्ट प्रथम का इतिहास लिखिए।

7. देश का प्रतिनिधि

अन्तर्राष्ट्रीय उत्सवों और अन्तर्राष्ट्रीय महत्व के सभी कार्यक्रमों में प्रधानमन्त्री पूरे देश के प्रतीक के रूप में कार्य करता है। वह सम्पूर्ण देश के प्रति उत्तरदायी है। वह पूरे देश का नेता है। ऐसे अवसरों पर वह देश की सम्पूर्ण जनता की आवाज को प्रतिध्वनि करता है।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top