ब्रिटेन में राजनीतिक दलों का विकास – यों तो ब्रिटेन में राजनीतिक गुटबन्दी का आभास बहुत पहले मिलता है जैसे पन्द्रहवीं शताब्दी के ‘लंकेट्रियन‘ और ‘पार्किस्ट‘ तथा सत्रहवीं शताब्दी के ‘कैवेलियर‘ और ‘राउन्ड हैड‘, किन्तु अठारहवीं शताब्दी से पूर्व ब्रिटेन में कोई विधिवत् राजनीतिक दल नहीं थे। 1688 ई० की रक्तहीन क्रान्ति ने राजनीतिक दलों के उद्भव का मार्ग प्रशस्त किया। क्रान्ति काल में देश दो विचारधाराओं में बंट गया- टोरी (Tories) और हिंग (Whigs)। जो लोग जेम्स और उसके पुत्र का समर्थन करने वाले थे वे टोरी (Tory) कहलाये। रक्तहीन क्रान्ति तथा हनोवर घराने का समर्थन करने वाले लोग डिग (Whig) कहलाये। यह वैचारिक द्वन्द्व कुछ वर्षों तक चलता रहा और ब्रिटेन में टोरी और हिग दो दल संघर्ष करते हुए आगे बढ़ते रहे। धीरे-धीरे दोनों दलों में संघर्ष इस विषय पर होने लगा कि संसद पर प्रभुत्व किसका रहे। लगभग 150 वर्षों तक संसद पर सत्ता किसी एक दल की आती रही और कभी दूसरे दल की। इस बीच में दल टोरी का नाम ‘अनुदार दल’ (Conservative Party) हो गया तथा हिग का नाम ‘उदाल दल’ (Liberal) हो गया। अभी तक ब्रिटेन की संसद के लिये प्रतिनिधि चुनने का अधिकार केवल सम्पन्न व्यक्तियों को ही था। परन्तु प्रगतिवादियों द्वारा चलाये गये वैचारिक आन्दोलनों के परिणामस्वरूप ब्रिटेन में श्रमिकों को भी मत देने का अधिकार प्रदान किया। श्रमिक वर्ग ने संगठित होकर एक नये राजनीति दल श्रमिक दल (Labour Party) का निर्माण किया गया। इस प्रकार कुछ वर्षों तक ब्रिटेन में तीन राजनीतिक दल रहे। धीरे-धीरे उदार दल के धनी व्यक्ति अनुदार दल के साथ तथा नीचे की श्रेणी के व्यक्ति श्रमिक दल के साथ मिल गये। फलस्वरूप ब्रिटेन की राजनीति में अब भी दो ब
प्रथम महायुद्ध के समय स्थिति बदली मजदूरों में जागृति फैली सिडनी रैम्जे मैकडॉनल्ड जैसे नेताओं ने श्रमिक आन्दोलनों को तीव्र किया। परिणामस्वरूप 192 के चुनाव में श्रमिक दल को 191 स्थान मिले। 1924 में श्रमिक दल की शक्ति इतनी बढ़ गई कि उदार दल की सहायता से सरकार बनाई। श्रमिक दल की शक्ति बढ़ती जा रही थी। वह एक सशक्त स्थायी राजनीतिक शक्ति बन गई थी। 1945 के आम चुनाव में तो एटली के नेतृत्व में उसने चर्चिल और उसकी पार्टी को भी पराजित कर दिया और श्रमिक दल की सरकार बनायी किन्तु 1951 से 1964 तक अनुदार दल का प्रभुत्व रहा। 1964-70 तक श्रमिक दल को बहुमत प्राप्त हुआ। 1970 में अनुदान दल के नेता एडवर्ड हीथ सत्तारूढ हुए। 1974 में पुनः श्रमिक दल की सरकार बनी। तत्पश्चात 1979, 1983 और 1987 के चुनावों में श्रीमती थैचर के नेतृत्व में अनुदार दल की सरकार का निर्माण हुआ।
इस प्रकार ब्रिटेन की राजनीति में धीरे-धीरे एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण परिवर्तन हो रहा था वह था उदार दल का लोप। 1945 के चुनाव में उदार दल को केवल 12 स्थान मिले और 1987 के चुनाव में उदार दल को 650 सदस्यीय कॉमन सभा में केवल 18 स्थान प्राप्त हुए। यद्यपि चुनाव अब भी आठ-दस राजनीतिक दल लड़ते हैं, परन्तु शासन की गेंद मुख्यतः अनुदार दल के पाले में पड़ती है और कभी श्रमिक दल के पाले में यह द्विबल पद्धति ब्रिटेन के संसदीय प्रजातंत्र के लिये एक वरदान है।
ब्रिटिश दल पद्धति की विशेषताएँ
ब्रिटेन की दल पद्धति में निम्नलिखित विशेषताएँ
(1 ) द्विदल पद्धति
ब्रिटेन में दल पद्धति की सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण विशेषता यह कि यहाँ द्विदल पद्धति है। जब से ब्रिटेन ने दल पद्धति का विकास हुआ है दो ही दल मुख्य राजनीतिक दल रहे हैं। पहले अनुदार दल और उदार दल दो मुख्य राजनीतिक दल थे। बीसवी शताब्दी के आरम्भ से श्रमिक दल विकसित होना शुरू हुआ तो जनता ने उदार दल को अस्वीकार कर दिया। गत 50-60 वर्षों से शासन सत्ता कभी श्रमिक दल और कभी अनुदार दल के हाथों में रहती है। जनता इतनी जागरूक और सचेत है कि उसने छोटे-छोटे दलों को बिल्कुल महत्त्व नहीं दिया है। इस प्रकार स्पष्ट है कि ब्रिटेन में द्विदल पद्धति चल रही है। यह पद्धति ब्रिटिश जनता की जागरूकता और खेल प्रवृत्ति की भावना की प्रतीक है। सालवेडर मैड्रियागा के अनुसार “द्विदल पद्धति ब्रिटिश जाति की उस मनोवृत्ति का परिणाम है, जो राजनीति को एक खेल मानती है और राजनीतिक जीवन को केवल खिलाड़ियों की दो टीमों के बीच संघर्ष।”
(2) विरोधी दल का सम्मान
ब्रिटेन में केवल शासकीय राजनीतिक दल ही नहीं, वरन् मुख्य विरोधी दल को भी सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है। विरोधी दल ‘हिज मैजस्टीज रॉयल अपोजिशन’ (His Majesty’s Royal Opposition) है ऑग के शब्दों “विरोधी दल ब्रिटिश संविधान का एक अनिवार्य अंग है।” विरोधी दल के नेता को एक मंत्री का वेतन और सुविधाएँ दी जाती हैं। विरोधी दल स्वयं अपना एक ‘छाया मंत्रीमण्डल’ बनाता है और उसके सदस्य बहुत सीमा तक मंत्रियों के समान कार्य करते हैं। सत्ताधारी दल भी विरोधी दल का सम्मान करता है। इसका अनुमान केवल इस बात से लगाया जा सकता है कि ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में जिन प्रतिष्ठित व्यक्तियों को लार्ड सभा का सदस्य मनोनीत किया जाता है उनके नाम की सिफारिश करने से पूर्व प्रधानमंत्री प्रायः विपक्ष के नेता से भी परामर्श करते हैं।
(3 ) दलों के सैद्धान्तिक आधार
ब्रिटेन के राजनीतिक दलों का संगठन सैद्धान्तिक आधार पर किया गया है। श्रमिक दल लोकतांत्रिक समाजवाद में विश्वास करता है। वह पूँजीवाद के विरुद्ध श्रमिकों को शोषण से मुक्त रखना चाहता है अनुदार दल रूढ़िवादी है। उसकी ज अतीत में हैं और वर परम्पराओं का सम्मान करता है। उदार दल भी सैद्धान्तिक रूप में दोनों दलों के बीच एक मध्यमार्गी बल है। इस प्रकार ब्रिटेन में राजनीतिक दलों का गठन सैद्धान्तिक और वैचारिक आधार पर हुआ है, न कि क्षेत्रीय, प्रांतीय भाषाई एवं साम्प्रदायिक आधार पर इस कारण ब्रिटिश दल पद्धति स्वस्थ नींव पर टिकी हुई है।
( 4 ) नेता का महत्त्व
ब्रिटेन के राजनीतिक दल नेता प्रधान है। चमकदार व्यक्तित्व के व्यक्ति ही नेता बनते हैं और दल पर छाये रहते हैं। सामान्यतः आम चुनाव दल के कार्यक्रमों के नाम पर नहीं, वरन् दल के नेताओं के नाम पर लड़े जाते हैं। ब्रिटेन के विगत आम चुनाव ‘चर्चित या एटली’ अथवा ‘हीथ या विल्सन’ अथवा ‘कैल्हन या मारग्रेट थैचर’ (1983) अथवा ‘थैचर या नील किलक’ (1987) के आधार पर लड़े गये, फलस्वरूप दलीय राजनीति में दलीय नेता को सर्वोच्च स्थान प्राप्त होता है। संसद सदस्य भी यह समझ लेते हैं कि उनकी विजय नेता के व्यक्तित्व के कारण हुई है। इसलिए स्वाभाविक है कि वे नेता को अधिक महत्त्व दें। परिणामस्वरूप नेता की पार्टी पर पकड़ बहुत अधिक मजबूत होती है।
(5) सुव्यवस्थित संगठन
ब्रिटेन के राजनीति दलों का गठन सुदृढ़ होता है। पिरामिड के आकार में नीचे से ऊपर तक सभी प्रमुख दलों की इकाइयाँ सुव्यवस्थिति रूप से निर्वाचित रहती हैं। दलों का संगठनात्मक ढाँचा मजबूत होता है। दलों की वास्तविक शक्ति उसके शीर्ष संगठन में निहित रहती है जहाँ से वह दलीय कार्यों का नियंत्रण और संचालन करता है। इस सुगठित रचना के कारण ब्रिटेन के राजनीतिक दलों में अनुशासन बना रहता है। अपने स्वार्थ के लिए लोग न तो के कारण ब्रिटेन के राजनीतिक दलों में अनुशासन बना रहता है। अपने स्वार्थ के लिये लोग न तो पार्टी छोड़ते हैं, न ही पार्टी तोड़ते हैं। इसके परिणमास्वरूप ब्रिटेन में राजनीतिक सत्ता का दलों के संदर्भ में केन्द्रीयकरण बढ़ा है।
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(b) निरन्तर सक्रियता
ब्रिटिश राजनीतिक दल देश की राजनीति में निरन्तर सक्रिय रहते हैं। अमेरिका में तो राजनीतिक दल केवल चुनाव से पूर्व ही जागते हैं और प्रत्याशियों का चुनाव करते हैं तथा निर्वाचन का अभियान चलाने हैं। उसके बाद सामान्यतः वे गहरी नींद में सो जाते हैं परन्तु ब्रिटेन में राजनीतिक दल निरन्तर सचेत व जागरुक बने रहते हैं। उनके अधिवेशन, सम्मेलन, सभाएँ और परिचर्चाएं आयोजित होती रहती हैं। राजनीतिक दल लोकमत के निर्माण में सदैव सक्रिय रहते हैं। वे जानते हैं कि शासन का कार्यकाल निश्चित नहीं है। मंत्रिमण्डल त्यागपत्र दे सकता है, उसके विरुद्ध अविश्वास का प्रस्ताव पास हो सकता है या कॉमन सभा मंग हो सकती है तथा कभी भी तीन सप्ताह के नोटिस पर चुनाव की घंटी बज सकती है। इसलिये शासकदल सत्ता बनाये रखने के लिये तथा विरोधी दल सरकार के पतन हेतु सदैव सक्रिय रहते हैं। इसलिये ब्रिटेन में राजनीतिक दलों की मशीन कभी बन्द नहीं होती। वे निरन्तर सक्रिय रहते हैं।
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