ब्रह्मचर्य आश्रम के विषय में आप क्या जानते हैं? ब्रह्मचर्य आश्रम का महत्व बताइए।

ब्रह्मचर्य आश्रम (25-50 वर्ष तक) – ब्रह्मचर्य शब्द का तात्पर्य है ब्रह्मचारी। मनुष्य के जीवन का प्रथम काल जो प्रारम्भ से प्राय: 25 वर्ष तक का होता था, उसे ब्रह्मचर्य आश्रम में ही बिताना पड़ता था। इसे जीवन का प्रथम सोपान माना जाता है। ब्रह्मचर्य आश्रम, नियम के पालन एवं अनुशासन के लिए महत्वपूर्ण माना गया था। इस आश्रम में ही विद्यार्थी वेदाध्ययन करता था। वह हर प्रकार की शिक्षा-दीक्षा इसी आश्रम में प्राप्त करता था। जिस प्रकार माता अपने बच्चे को 9 मास तक गर्भ में रखकर उसका शारीरिक विकास करती है, उसी प्रकार ब्रह्मचर्य जीवन में बालक अपने गुरु के समीप रहकर अपना शारीरिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक विकास करता था।

इस आश्रम में ब्रह्मचारी को कठोर परिश्रम द्वारा जीवन बिताना पड़ता था। वह भिक्षा माँग कर भोजन करता था। भिक्षा वृत्ति का विधान इसलिए किया गया था ताकि बालक के अन्दर नम्रता एवं उदारता के गुणों का विकास किया जा सके। ब्रह्मचारी अपने गुरु की सेवा पूरे तन-मन से करता था, उसका कर्त्तव्य था कि वह गुरु के समीप रहें और उनके आदेशों का पालन करें। गुरु बालकों को अपने पुत्र के समान मानता था, छात्र गुरु को अपने पिता के समान मानते थे। ब्रह्मचारी को नैतिकता, स्वच्छता तथा सदाचरण की शिक्षा सबसे पहले गुरु से प्राप्त होती थी।

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यहाँ वह समूल में सम-भाव से जीवन यापन के लिए प्रशिक्षित होता था। आश्रम में छात्र को माता-पिता, देवता, राजा के प्रति श्रद्धा का भाव जागृत किया जाता था। यहाँ वह विषयों से दूर रहता था। इस आश्रम में बालक गुरु के साथ ही उसी के आश्रम में रहता था और वह पूरी तरह गुरु पर ही निर्भर होता था।

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