बोदां के सम्प्रभुता सिद्धान्त कोकर के अनुसार, “सम्प्रभुता का सिद्धान्त राजनीतिक चिन्तन के क्षेत्र में बोदा का सबसे बड़ा और विशिष्ट योगदान है।” यद्यपि मैक्सी के अनुसार, “वह इस सिद्धान्त का प्रवर्तक नहीं था तथापि वह पहला व्यक्ति था जिसने सम्प्रभुता सम्बन्धी धारणा को विधिशास्त्रीय ढंग से प्रस्तुत किया और उसे राजनीतिशास्त्र का एक महत्त्वपूर्ण और अभिन्न अंग बना दिया है।”
सम्प्रभुता की परिभाषा – सम्प्रभुता की परिभाषा करते हुए बोदों का कथन है कि “वह नागरिकों तथा प्रजाजनों पर सर्वोच्च सत्ता है जो कानून द्वारा प्रतिबन्धित नहीं है।” उसके अनुसार सम्प्रभुता ही वह विभाजक रेखा है जो राज्य को अन्य समुदायों से अलग करती है। सम्प्रभुता का प्रयोग करके राज्य अपने नागरिकों के लिए किसी भी प्रकार का कानून बना सकता है; अपने क्षेत्र में कैसी भी व्यवस्था कर सकता है और अपने नागरिकों को मनचाहा आदेश दे सकता है। अतः सम्प्रभुता के प्रयोग में वह किसी प्रकार के कानूनों से बंधा हुआ नहीं है अर्थात् वह सर्वोच्च है।
सम्प्रभुता सिद्धान्त की मुख्य विशेषताएँ
1.सम्प्रभुता एक सर्वोच्च शक्ति है
इसका तात्पर्य यह है कि सम्प्रभुता राज्य की एक ऐसी शक्ति हैं जो सर्वोच्च शासक द्वारा प्रयुक्त की जाती है तथा जिसे जनता के जीवन, स्वतंत्रता और सम्पत्ति पर सम्पूर्ण अधिकार प्राप्त है। यह सम्प्रभु शक्ति ही सभी विधियों की जननी है। यह शक्ति सभी को आदेश देती है लेकिन किसी से आदेश प्राप्त नहीं करती है। युद्ध और पान्ति सभी इसकी परिधि में आते हैं तथा सभी व्यक्ति समूह, संगठन आदि बिना किसी अपवाद के इसके अधिकार क्षेत्र में सम्मिलित होते हैं। दूसरे शब्दों में- बोदां के अनुसार सर्वोच्चता ही सम्प्रभुता है।
2. सम्प्रभुता एक निरपेक्ष एवं स्थायी शक्ति है
बोदां कहता है कि- “सम्प्रभुता एक राज्य में शासन करने की निरपेक्ष एवं स्थायी शक्ति है।” इसका तात्पर्य यह है कि अगर सम्प्रभुता किसी निश्चित काल के लिए सम्प्रभु को प्रदान की जाती है तो उसे वास्तविक सम्प्रभु नहीं माना जा सकता अर्थात् सम्प्रभुता का प्रत्यायोजन (Delegation) नहीं किया जा सकता और यदि उसे प्रत्यायोजित किया जाता है तो वह बिना किसी शर्त और मर्यादा के होना चाहिए। आगे वह कहता है कि जिस प्रकार अमानत को रखने वाला स्वामी नहीं होता है, उसी प्रकार दूसरे से कुछ समय के लिए सम्प्रभु शक्ति प्राप्त करने वाला सर्वोच्च शासक नहीं हो सकता। दूसरे शब्दों मैं, बोदां के अनुसार सम्प्रभु की दूसरी विशेषता उसका स्थायित्व और निरन्तरता है।
3. सम्प्रभुता सभी वैधानिक बन्धनों से मुक्त है
बोदों के अनुसार सम्प्रभुता सभी प्रकार के वैज्ञानिक प्रतिबन्धों, कानूनों और मर्यादाओं से मुक्त है क्योंकि सम्प्रभु स्वयं कानून का स्रोत है। वह सर्वोच्च शक्ति का प्रयोग करने का अधिकारी है और इसलिए वह स्वयं उन कानूनों से नियंत्रित नहीं होता है जिसे उसने अपनी जनता के लिए बनाया है। दूसरे शब्दों में “सम्प्रभु का आदेश ही कानून होता है और इसलिए वह किसी कानून के अधीन नहीं वरन् ऊपर होता है। दूसरे शब्दों में, वह सभी विधियों से निर्बन्ध होता है।
4. सम्प्रभुता सभी नागरिकों एवं प्रजाजनों पर राज्य का शासनाधिकार है बोदा के अनुसार
“सम्प्रभुता राज्य का एक ऐसा शासनाधिकार है जो नागरिकों (स्वतंत्र व्यक्ति) एवं प्रजाजना (नागरिकताविहीन दासों तथा विदेशियों) पर समान रूप से लागू होता है तथा उनके अधिकारों और कार्यों को समान रूप से प्रभावित करता है। इस दृष्टि से वह कोई भेदभाव नहीं करता है। वह सभी को समान रूप से आदेश देता है और उसका पालन करवाता है तथा आदेश का उल्लंघन करने वाले को दण्डित करता है।
सम्प्रभुता की सीमाएँ
सम्प्रभुता समाज की संविधान सम्बन्धी मौलिक मान्यताओं से सीमित है
सम्प्रभुता पर दूसरी सीमा का वर्णन करते हुए बोबा कहता है कि प्रत्येक देश में संविधान सम्बन्धी कुछ ऐसे नियम होते हैं जिन्हें राजा तोड़ नहीं सकता। इन नियमों का चरित्र मौलिक होता है और जिनको बनाये रखना समाज के बुनियादी ढांचे को बनाये रखने के लिए आवश्यक होता है।
सम्प्रभुता व्यक्तिगत सम्पत्ति से सीमित है
सम्प्रभुता पर तीसरी सीमा व्यक्तिगत सम्पत्ति से सम्बन्धित है। वह कहता है कि सम्प्रभु किसी व्यक्ति से उसकी स्वीकृति के बिना उसकी सम्पत्ति नहीं छीन सकता। सम्प्रभु को बिना जनप्रतिनिधि सभाओं की राय के कर लगाने का अधिकार भी नहीं है क्योंकि बोदों व्यक्तिगत सम्पत्ति को पवित्र मानता है, अतः उसका अपहरण नहीं किया जा सकता। सम्पत्ति परिवार के अस्तित्व का एक अनिवार्य आधार है और इसलिए उस पर परिवार का अन्तिम अधिकार है।
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सम्प्रभुता पारिवारिक जीवन से सीमित है
सम्प्रभुता पर चौथी सीमा पारिवारिक जीवन की है। बोदां सम्पत्ति की तरह एक व्यक्ति के पारिवारिक जीवन की वैयक्तिकता को आवश्यक ही नहीं, पवित्र भी मानता है। अतः वह सम्प्रभु को उसमें हस्तक्षेप करके उसकी वैयक्तिक पवित्रता को नष्ट करने का अधिकार प्रदान नहीं करता है। वह कहता है, “सम्प्रभु को व्यक्ति के पारिवारिक जीवन में किसी प्रकार का हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं है।”
सम्प्रभुता नैतिक और धार्मिक मान्यताओं में सीमित है
सम्प्रभुता पर पाँचवीं सीमा नैतिक और धार्मिक मान्यताओं से सम्बन्धित है। बोदद्यं सम्प्रभुता को एक समाज की नैतिक और धार्मिक मान्यताओं से भी सीमित मानता है। अतः वह सम्प्रभु को इनमें हस्तक्षेप करने का अधिकार प्रदान नहीं करता है। यद्यपि वह मानता है कि सम्प्रभु राज्य का नागरिकों और प्रजाजनों पर शासन करने का अधिकार है तथापि वह यह भी प्रतिपादित करता है कि यह अधिकार जनता की नैतिक और धार्मिक मान्यताओं से सीमित है। उसके अनुसार सम्प्रभु को अपने कार का प्रयोग इनके अनुरूप ही करना चाहिए इनके विरुद्ध नहीं।