प्रस्तावना – जनसंख्या असन्तुलन से तात्पर्य है देश में स्त्री तथा पुरुष एक बराबर संख्या में न होना। हमारे देश में भी यह असन्तुलन दिखाई पड़ रहा है। यहाँ लड़कों की संख्या लड़कियों से कहीं अधिक है। भ्रूणहत्या से तात्पर्य है ‘गर्भ में ही बच्चे को समाप्त करा देना।’ भ्रूण हत्या में बलि लड़कियों को ही चढ़ाया जा रहा है, जिसके पीछे हमारी दकियानूसी सोच है। आज विज्ञान के आविष्कारों ने मनुष्य को चाँद पर पहुँचा दिया है परन्तु लड़के लड़कियों के सम्बन्ध में हमारी सोच सदियों पुरानी है। आज भी सभी को बेटा ही चाहिए क्योंकि उसी से वंश का नाम आगे बढ़ता है। बेटी चाहे कल्पना चावला, किरण बेदी, इन्दिरा गाँधी जैसी महान ही क्यों न बन जाए, परन्तु लड़कों का मोह अभी भी वैसा ही है।
जनसंख्या के आँकड़े
जनसंख्या के आँकड़ों से यह साबित होता है कि हमारे देश में स्त्री पुरुष का सन्तुलन पूर्णतया बिगड़ चुका है। लगभग एक हजार पुरुषों के पीछे 933 स्त्रियाँ रह गई हैं तथा हर साल लड़कियों की संख्या कम ही हो रही है। 1901 की जनगणना के अनुसार अंग्रेजी शासन के समय प्रति एक हजार पुरुष के पीछे महिलाओं की संख्या 972 थी, जो 1911 में टकर 964 रह गई। 1921 में 955, 1931 में 950 एवं 1941 में 945 रह गई है। देश की स्वतन्त्रता के पश्चात् जब 1951 में जनगणना हुई थी, तब 945 स्त्रियाँ पाई गई। 1961 में 941, 1971 में 930, 1981 में 994, 1991 में 927 तथा 2001 में 933 हो गई। अब 2011 की जनगणना होने पर सही आँकड़ों का पता चलेगा हमारे देश में केवल केरल ही एकमात्र ऐसा राज्य है जहाँ स्त्रियों की संख्या पुरुषों से अधिक है।
जनगणना आयोग की ताजा रिपोर्ट के अनुसार हिन्दुओं में स्त्रियाँ कम हैं क्योंकि हिन्दू अधिक रूढ़िवादी हैं। हिन्दू धर्म में तो लड़की को माता-पिता के पैर छूना, विवाह के बाद माँ बाप का बेटी के घर का पानी पीना तक वर्जित माना जाता है। हों, ईसाई धर्म में जरूर प्रति हजार पुरुष के पीछे 1009 स्त्रियों हैं। मुस्लिम आबादी के नजरिए से देखे तो केरल, पांडिचेरी, तमिलनाडु तीन ऐसे राज्य हैं जहाँ 1000 पुरुष के पीछे क्रमशः 1097, 1010 तथा 1020 स्त्रियों हैं।
असन्तुलन का कारण
स्त्रियों की कम होती संख्या के पीछे मुख्यतया गर्भ में पल रहे बच्चे को कन्या जानकर उसका गर्भपात करा देना या फिर जन्म लेने के बाद उसके सही पालन पोषण न होने पर मौत हो जाना है। प्रत्येक वर्ष लगभग 50 हजार गर्भपात कन्या भ्रूण जानकर करा दिए जाते हैं। यह पाप दिन-ब-दिन बढ़ता ही जा रहा है। कन्या भ्रूण हत्या के पीछे लोगों का मत है कि आज के समय में लड़की को पालना आसान काम नहीं है। एक तो उसकी देखभाल अधिक करनी पड़ती है, फिर पढ़-लिख जाने पर भी उसकी शादी में ढेर सारा दहेज देना पड़ता है। उसके पश्चात् भी उन्हें जलाकर मार दिया जाता है।
लेकिन सोचने वाली बात यह है कि हमारे देश के संविधान में जीवन के अधिकार को मौलिक अधिकार माना गया है और लड़कियों से यह अधिकार उसके माँ-बाप स्वयं छीन रहे हैं। इसके अतिरिक्त यदि बेटियाँ नहीं होगी तो भाई की कलाई पर राखी कौन बांधेगा, बेटे की शादी कैसे होगी और सबसे महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि अगली पीढ़ी कहाँ से आएगी बेटी को जन्म लेने या पैदा होने के बाद उसके जीवन को सुरक्षित नहीं रखने का अर्थ है ‘अगली पीढ़ियों के जीवन के अधिकार का हनन’ सामान्यतः विज्ञान के आविष्कार और संसाधन मानवता के कल्याण के लिए है, लेकिन गर्भस्थ शिशु की लिंग सम्बन्धी जाँच का यह अनुसन्धान अत्यधिक घातक साबित हो रहा है।
विद्युत शक्ति का महत्त्व पर संक्षिप्त निबन्ध लिखिए।
सरकार का हस्तक्षेप
अल्ट्रासाउंड नामक तकनीक वास्तव में विकसित तो इसलिए की गई थी ताकि यह पता चल सके कि गर्भस्थ शिशु स्वस्थ है। या नहीं या फिर गर्म में बच्चे की स्थिति कैसी है ? इस तकनीक का उपयोग भारत में पहली बार 1975 के आस-पास हुआ था।
सरकार की ओर से इस सामाजिक बुराई को रोकने के लिए कानून बनाए गए हैं। ‘द प्रीनेटेल डायगनेस्टिक टेकनीक एक्ट 1994’ एवं ‘मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रिग्नेंसी एक्ट’ ऐसे ही कानूनों के अन्तर्गत आते हैं। इन कानूनों के अन्तर्गत गर्भ के बारे में किसी भी प्रकार भी जाँच कराने से पहले माँ की लिखित मंजूरी आवश्यक थी। दूसरे लिंग जाँच पर रोक लगा दी गई अर्थात् यदि जरूरत पड़ने पर ‘अल्ट्रासाउंड’ कराना पड़े तो उसके लिंग जाँच नहीं होगी, केवल शिशु की स्थिति के बारे में पता लगाया जाएगा। अल्ट्रासाउण्ड की जाँच करने वाले क्लिनिकों के बाहर यह लिखा जाना अनिवार्य हो गया है कि उनके यहाँ लिंग जाँच नहीं होती। ऐसा करना गैर कानूनी है। पहली बार दोषी पाए जाने वाले डॉक्टर पर दस हजार रुपए का जुर्माना हो सकता है तथा दूसरी वार दोषी पाए जाने पर डॉक्टर पर 50 हजार रुपए तक का जुर्माना तथा पाँच साल तक की कैद भी हो सकती है। परन्तु आज भी चोरी छिपे कुछ डॉक्टर यह अपराध कर रहे हैं तथा माता-पिता भी अपनी कन्याओं की हत्या करवा रहे हैं।
उपसंहार- बेटी को जन्म से पहले या बाद में भी मारना जघन्य अपराध है। ऐसे व्यक्ति कानून के साथ-साथ भगवान के भी दोषी हैं। सरकार की ओर से किए जाने वाले प्रयास तभी कारगर साबित हो सकते हैं जब हम सब भी लड़कियों को अपना मान माने न कि अपनी कमजोरी। इस दिशा में स्वयंसेवी संस्थाएँ, पत्रकार तथा विज्ञापन एजेंसियाँ भी अहम् भूमिका निभा सकती है। महिलाओं को अपने अधिकारों के प्रति जागरुक होना होगा क्योंकि अन्त में यही कहा जा सकता है कि बेटे को जन्म देने वाली भी स्त्री ही है, उसे गर्भपात के लिए प्रेरित करने वाली भी स्त्री ही है, तथा बेटी को मौत के घाट उतारने वाली भी स्त्री ही है। यदि इस समस्या की गम्भीरता को देखते हुए इसके समाधान खोजने की दिशा में अथक प्रयास किए जाए तो 2011 तथा 2021 की जनगणना के आँकड़ों की स्थिति भी 1911 तथा 1921 की जनगणना जैसी ही होगी।