भूमिका की परिभाषा
श्री लिण्टन के अनुसार, “कार्य शब्द का प्रयोग किसी स्थिति से सम्बन्धित सांस्कृतिक प्रतिमान की समग्रता के लिए किया जाता है। इस प्रकार कार्य के अन्तर्गत हम उन सभी मनोवृत्तियों, मूल्यों तथा व्यवहारों को सम्मिलित करते हैं जिन्हें कि समाज एक स्थिति विशेष पर आसीन प्रत्येक एवं सभी व्यक्तियों के लिए निर्धारित करता है।”
श्री सार्जेण्ट के शब्दों में, “किसी व्यक्ति का कार्य सामाजिक व्यवहार का वह प्रतिमान अथवा प्ररूप है जो कि उसे एक परिस्थिति विशेष में अपने समूह के सदस्यों की माँगों एवं प्रत्याशाओं के अनुरूप प्रतीत होता है।”
श्री फिचर के अनुसार, “जब बहुत से अन्तःसम्बन्धित व्यवहार प्रतिमान एक सामाजिक प्रकार्य के चारों ओर एकत्रित हो जाते हैं तो उसी सम्मिलन को हम सामाजिक कार्य कहते हैं।” इसका तात्पर्य यह हुआ कि “स्थिति’ का एक “कार्य’ पक्ष भी होता है और एक ही कार्य के अन्तर्गत बहुत से अन्तःसम्बन्धित व्यवहार प्रतिमानों का समावेश होता है। जैसे पिता की “स्थिति’ को लीजिए। इस स्थिति का एक कार्य-पक्ष है और उसके अन्तर्गत बच्चों का पालन-पोषण, बच्चों की सुरक्षा, परिवार की देखरेख, बच्चों पर नियंत्रण आदि अनेक व्यवहार प्रतिमान आ जाते हैं। वे सभी व्यवहार प्रतिमान एक-दूसरे से सम्बन्धित हैं और वे सब एक साथ मिलकर पिता की स्थिति से सम्बन्धित “स्थिति’ का बोध कराते हैं। इसीलिए श्री फिचर ने बहुत से अन्तःसम्बन्धित व्यवहार प्रतिमानों के स्वरूप को “कार्य’ या भूमिका कहा है।
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