भौगोलिक पर्यावरण का मानव समाज पर प्रभावों की विवेचना कीजिए।

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भौगोलिक पर्यावरण का मानव समाज पर विशेष रूप से प्रभाव पड़ता है। इसका प्रमाण यह है कि विभिन्न भौगोलिक पर्यावरण में रहने वाले समाज में अनेक क्षेत्रों में विभिन्नता पाई जाती है कि इंग्लैण्ड का भौगोलिक पर्यावरण भारत के भौगोलिक पर्यावरण से भिन्न है। इसके परिणामस्वरूप दोनों देशों के निवासियों के रहन-सहन और सामाजिक तथा आर्थिक संगठन में भी भिन्नता है। भौगोलिक पर्यावरण के प्रभावों का विवरण निम्नलिखित है-

(अ) भौगोलिक पर्यावरण का प्रत्यक्ष प्रभाव

(1) जनसंख्या पर प्रभाव

जनसंख्या का घनत्व मुख्य रूप से भौगोलिक पारिस्थितियों की अनुकूलता और प्रतिकूलता पर निर्भर करता है। जिस भौगोलिक पर्यावरण की पोषण शक्ति मनुष्य के अधिक अनुकूल है, यहाँ लोग रहना कम पसन्द करते हैं, अतः वहाँ जनसंख्या का घनत्व कम होता है; परन्तु नदियों के मैदानों में, जहाँ सिंचाई के पर्याप्त साधन होते हैं तथा भूमि समतल होती है, जनसंख्या का घनत्व अधिक होता है। घनत्व का आशय प्रति वर्ग किमी से जाने वाली जनसंख्या से होता है। उदाहरण के लिए भारत में गंगा, यमुना व कावेरी नदियों को घाटियों में देश के अन्य भागों से कहीं अधिक जनसंख्या का घनत्व है, जबकि राजस्थान, दया पर्वतीय प्रदेशों में जनसंख्या का घनत्व सबसे कम है।

(2) मकानों की बनावट पर प्रभाव

भौगोलिक पर्यावरण मनुष्य के निवास प मकानों पर प्रभाव डालता है। मकानों के निर्माण में जिस सामग्री की आवश्यकता होती है तथ जैसा उसका स्वरूप होता है, वह सभी भौगोलिक पर्यावरण के प्रभाव के कारण होता है। मैदानी प्रदेश में गारा-मिट्टी अधिक मात्रा में उपलब्ध हो जाती है, अतः यहाँ मिट्टी और ईंटों के मकान बनाए जाते हैं। पर्वतीय प्रदेशों में पत्थर और लकड़ी की प्रचुरता होती है, वहाँ मकान पत्थर और लकड़ी के ही बनाए जाते हैं।

(3) खान-पान पर प्रभाव

भोजन का पर्यावरण से घनिष्ठ सम्बन्ध है। जिस क्षेत्र में जो खाद्य सामग्री अधिक उपलब्ध होती है उस क्षेत्र का मुख्य भोजन वही खाद्य सामग्री होती है। उदाहरण के लिए बंगाल में मछली और चावल पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध होते हैं, अतः वहाँ के निवासियों का यह प्रमुख भोजन है। उत्तर प्रदेश और पंजाब में गेहूं की पैदावार अधिक होती है. अतः इन प्रदेशों में गेहूँ सर्वसाधारण का प्रधान भोजन है। मांस उत्तेजक और उष्ण प्रधान होता है, अतः इसका प्रयोग पर्वतीय व ठण्डे प्रदेशों में अधिक किया जाता है। एस्कीमों केवल मांस हो खाते हैं क्योंकि टुण्ड्रा में बर्फ के कारण कोई वनस्पति उत्पन्न ही नहीं होती। शीतप्रधान देशों में गर्म देशों की अपेक्षा शराब का अधिक प्रयोग किया जाता है।

(4) शारीरिक लक्षणों पर प्रभाव

व्यक्ति का रंग, कद तथा आकृति भी पर्याप्त सीमा तक भौगोलिक पर्यावरण इस निर्धारित होती है। अन्य शब्दों में, मनुष्य का काला, गोरा, लम्बा, ठिगना आदि होना भौगोलिक परिस्थितियों के कारण है। जहाँ जितनी अधिक गर्मी पड़ती है, वहाँ के निवासियों का रंग उतना ही काला होता है। शीतप्रधान देशों के निवासियों का रंग गोरा होता है।

(5) यातायात व आवागमन के साधनों पर प्रभाव

भौगोलिक पर्यावरण पर यातायात व आवागमन के साधनों का भी प्रभाव पड़ता है। मैदानों में आवागमन के साधन सड़क, रेल आदि होते हैं, परन्तु पर्वतीय प्रदेशों में ऐसा सम्भव नहीं है। जिन प्रदेशों में बड़ी नदियाँ हैं, वहीं नौकाओं और स्टीमरों द्वारा आवागमन होता है।

(ब) भौगोलिक पर्यावरण पर अप्रत्यक्ष प्रभाव

भौगोलिक पर्यावरण व्यक्ति एवं समाज के जीवन को अप्रत्यक्ष रूप से भी प्रभावित करता है। भौगोलिक पर्यावरण के अप्रत्यक्ष प्रभावों का संक्षिप्त विवरण निम्नवत है-

(1) आर्थिक संगठन पर प्रभाव-

आर्थिक संगठन पर भौगोलिक पर्यावरण का विशेष रूप से प्रभाव पड़ता है। आर्थिक संगठन के दो पहलू मुख्य रूप से प्रभावित होते हैं- (क) सम्पत्ति और (ख) उद्योग-धन्धे यकल का यह कहना पूर्णतया सत्य है कि किसी समाज सम्पत्ति का निर्धारण भौगोलिक पर्यावरण द्वारा होता है। जिन देशों में पर्याप्त मात्रा में खनिज हो तथा अन्य साधन उपलब्ध होते हैं, वहाँ सम्पत्ति स्वाभाविक रूप से अधिक होती है। अमेरिका, रूस तथा सऊदी अरब, आदि देश इसके प्रमुख उदाहरण है।

(2) राजनीतिक संगठन पर प्रभाव

भौगोलिक पर्यावरण मनुष्य के राजनीतिक संगठन को भी प्रभावित करता है। जिस प्रदेश की भूमि, जलवायु तथा परिस्थितियाँ ऐसी होंगी, जिनसे जनता सुखी रह सके, तो उस देश का राजनीतिक संगठन स्थिर होगा, लेकिन जहाँ की जनता को भरण-पोषण और जीवन-यापन के ही साधन नहीं प्राप्त होंगे, यहाँ की राजनीतिक अवस्था सदा अस्थिर एवं अव्यवस्थित रहेगी। इस कारण ही सर्वप्रथम गंगा, यमुना, दजला, फरात, नील आदि के मैदानों में राज्यों की स्थापना हुई। पर्वतीय तथा रेगिस्तानी प्रदेशों में यातायात तथा संचार साधनों की व्यवस्था करना कठिन होता है, अतः यहाँ राजनीतिक संगठनों का अभ्युदय सरलता से नहीं होता। इस कारण ही अफगानिस्तान, अल्बेनिया, मैकेडेनिया तथा स्कॉटलैण्ड आदि राज्यों की स्थापना पर्याप्त काल के पश्चात् हुई।

(3) धर्म का प्रभाव

समस्त धार्मिक विश्वास भौगोलिक पर्यावरण से प्रभावित होते हैं। सी० एफ० कैरी के शब्दों में, “किसी समाज में लोगों का धर्म अधिकांश रूप से पृथ्वी पर उनकी स्थिति तथा उन दृश्यों एवं उन प्राकृतिक घटनाओं पर आधारित होता है, जिनमें उनका जीवन बीतता है और जिनके वे आदी होते हैं।” भारत एक प्रकृति-प्रधान देश है, अतः यहाँ वर्षा, पृथ्वी, गंगा, यमुना, वृक्ष आदि की पूजा की जाती है। कृषि प्रधान देश होने के कारण यहाँ इन्द्र अर्थात् वर्षा के देवता की पूजा का विशेष महत्व होता है।।

(4) स्वास्थ्य पर प्रभाव

मानव स्वास्थ्य बहुत कुछ भौगोलिक वातावरण पर निर्भर करता है। हटिंगटन के शब्दों में, “स्वास्थ्य और शक्ति को नियंत्रित करने के लिए हवा में नमी की मात्रा महत्वपूर्ण कारकों में से एक है। ”

(5) प्रजातियों पर प्रभाव

प्रजातियों में विभा दृष्टिगोचर होती है उसका मूल कारण भौगोलिक पर्यावरण है। विभिन्न भौगोलिक परिस्थितियाँ विभिन्न प्रजातियों को जन्म देती है जिससे उनके रीति-रिवाज, खान-पान तथा साहित्य आदि में विभिन्नता पायी जाती है।

द्वितीयक समूह से आप क्या समझते हैं? इनकी विशेषताओं, महत्व एवं कार्यो का उल्लेख कीजिए।

(6) संस्कृति पर प्रभाव (2004)

ओडम का कथन है कि, “संस्कृति तथा भूगोल अपृथक्कनीय हैं। भौगोलिकवादियों के मतानुसार संस्कृति का मुख्य आधार भौगोलिक पर्यावरण है। मैदानों तथा नदियों के किनारे कृषि-संस्कृति का विकास हुआ तथा जिन स्थानों में खनिज पदार्थ उपलब्ध होते थे, वहाँ औद्योगिक संस्कृति तीव्रता से विकसित हुई। परन्तु यह आवश्यक नहीं कि संस्कृति का पूर्णतया निर्धारण भौगोलिक पर्यावरण द्वारा ही होता हो। यदि विश्व की विभिन्न संस्कृतियों का अध्ययन करें तो ज्ञात होगा कि समान भौगोलिक पर्यावरण में विभिन्न संस्कृतियाँ फूलती-फलती रही हैं। दूसरे, संस्कृति भौगोलिक पर्यावरण की अपेक्षा मानव विचारों पर अधिक आश्रित है। यातायात तथा आवागमन के साधनों ने भी भौगोलिक पर्यावरण के प्रभाव को कम कर दिया है।

भौगोलिक पर्यावरण के मानव समाज पर पड़ने वाले प्रभावों के कारण ही अरस्तू, प्लेटो, मॉण्टेस्क्यू, रेट्जेल, बुनहेस, हटिंगटन, डेक्सर, लीप्ले, लेमार्क इत्यादि अनेक विद्वानों ने भौगोलिक निश्चयवाद (निर्धारणवाद) का सिद्धान्त प्रतिपादित किया है। इस सिद्धान्त के अनुसार भौगोलिक पर्यावरण हमारे सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक व शारीरिक पक्ष को प्रभावित करता है।

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