Political Science

भाषण की स्वतन्त्रता का अधिकार।

भाषण की स्वतन्त्रता का अधिकार- भारत के सभी नागरिकों को विचार करने, भाषण देने और अपने तथा अन्य व्यक्तियों के विचारों के प्रचार की स्वतन्त्रता प्राप्त है। प्रेस भी विचारों के प्रचार का एक साधन होने के कारण इसी में प्रेस की स्वतन्त्रता भी शामिल है। मूल संविधान में विचार और अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता का क्षेत्र बहुत व्यापक था और अपमान लेख तथा वचन, न्यायालय अपमान, शिष्टाचार या सदाचार पर आघात और राज्य की सुरक्षा के हित में ही इसे सीमित किया जा सकता था। ‘रमेश थापर बनाम मदास राज्य’ के विवाद में सर्वोच्च न्यायालय ने अपनी व्याख्या में कहा है कि “अपराध के लिए उत्तेजित करने और सार्वजनिक व्यवस्था भंग करने के कामों को उपर्युक्त व्यवस्था के अन्तर्गत प्रतिबन्धित नहीं किया जा सकता।”

अतः संविधान के ‘प्रथम संशोधन अधिनियम, 1951’ द्वारा विचार और अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता को और सीमित कर दिया गया और अब राज्य जिन आधारों पर विचार और अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता पर युक्तियुक्त, प्रतिबन्ध लगा सकता है, वे इस प्रकार हैं- राज्य की सुरक्षा, विदेशी राज्यों से मित्रतापूर्ण सम्बन्ध, सार्वजनिक व्यवस्था, शिष्टाचार या सदाचार, न्यायालय अपमान, मानहानि या अपराध के लिए उत्तेजित करना। 1963 के 16वें संशोधन द्वारा स्वतन्त्रता पर एक और प्रतिबन्ध लगा दिया गया है।

गृहस्थ आश्रम सभी आश्रमों में सर्वश्रेष्ठ है।” टिप्पणी कीजिए।

अब यदि कोई व्यक्ति भारत राज्य से उसके किसी भाग को अलग करवाने का प्रचार करे, तो राज्य के द्वारा उसकी विचार और अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता को सीमित क्रिया जा सकता है।

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