भारतीय शिक्षा आयोग पर ( हन्टर आयोग)
कम्पनी के अधिकारी रह चुके ब्रिटिश सरकारी अधिकारियों ने वुड के आदेश पत्र में निर्देशित जनसाधारण की शिक्षा का प्रसार करने के लिए सक्रिय कदम नहीं उठाए। उनकी इसी हठधर्मी के कारण न केवल भारतवर्ष में वरन् इंग्लैण्ड में भी असंतोष की लहर फैल गई। सरकार की धार्मिक तटस्थता नीति तथा शिक्षा के क्षेत्र में सरकारी अधिकार बढ़ जाने के कारण ईसाई मिशनरियों के शिक्षा प्रसार कार्यक्रमों को बड़ा धक्का लगा तथा वे क्षुब्ध हो गए। ऐसी स्थिति में भारत में सहानुभूति रखने वाले इंग्लैण्ड के कुछ व्यक्तियों ने भारत में शिक्षा की सामान्य परिषद (General Council of Education in India) का गठन किया तथा उसके तत्वाधान में तत्कालीन भारतीय शिक्षा नीति के विरुद्ध आंदोलन प्रारम्भ कर दिया। उनके इस आंदोलन में मिशनरियों ने काफी सहायता की। सन् 1880 में लार्ड रिपन (Lord Ripan) को भारत के नए गवर्नर जनरल के रूप में मनोनीत किया गया तब इस परिषद के सदस्यों ने उनसे भेंट करके उसके अंग्रेज शिक्षा अधिकारियों की अनुदार शिक्षा नीति से अवगत कराया तथा भारतीय शिक्षा की जाँच करके उसके विकास का मार्ग प्रशस्त करने का अनुरोध किया।
यहाँ यह स्मरणीय है कि सन् 1870 में इंग्लैण्ड में लिवरल मन्त्रिमण्डल के द्वारा अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा अधिनियम पारित किया जा चुका था तथा इसमें लार्ड रिपन का योगदान उल्लेखनीय था। यही कारण था कि उदार शिक्षाविज्ञ लार्ड रिपन के वायसराय बनकर भारत आने पर बहुत ही आशाविद थे। लार्ड रिपन ने परिषदों के सदस्यों की इस इच्छा को पूरा करने का आश्वासन दिया तथा भारत पहुँचने के कुछ समय उपरान्त ही 3 फरवरी सन् 1882 को भारतीय शिक्षा आयोग (Indian Education Commission) की नयुिक्ति की इस आयोग के अध्यक्ष गवर्नर जनरल की कार्यकारिणी के सदस्य सर विलियम हंटर (Sir William Hunter) थे जिनके नाम पर इस आयोग को इंटर आयोग भी कहा जाता है तथा यह इसी नाम से अधिक प्रचलित है। इस आयोग में अध्यक्ष के अतिरिक्त
बीस सदस्य तथा एक सचिव भी था जिनमें से सात भारतीय थे। इस आयोग के द्वारा प्रस्तुत प्रतिवेदन वह दूसरा प्रमुख प्रयास था जिसमें भारतीय शिक्षा नीति का पुनर्निरीक्षण व स्पष्टीकरण विस्तार से किया गया था। इस आयोग का मुख्य कार्य भारत में प्राथमिक शिक्षा की वर्तमान स्थिति तथा इसके विस्तार व उप्रति के उपायों की जाँच करना था।
“The principle object of the enquiry of the commission should be the present state of elementary education throughout the Empire and the means. by which this can every where be extended and improved.”
आयोग ने सम्पूर्ण देश का सर्वेक्षण करके, शिक्षाविदों से विचार करके तथा शिक्षा सम्बन्धी राजकीय दस्तावेजों का अध्ययन करके मार्च 1883 में अपने विस्तृत प्रतिवेदन सरकार के समक्ष प्रस्तुत किया। आयोग की प्रमुख सिफारिशें निम्नवत् थीं।
1. देशी शिक्षा को प्रोत्साहन
प्राचीन भारतीय शिक्षा के सम्बन्ध में आयोग ने कहा है कि “यद्यपि देशी शिक्षा संस्थायें तुलनात्मक रूप में निकृष्ट हैं फिर भी उन्हें प्रोत्साहित करने का प्रयास किये जाने चाहिए। कठिन स्पर्धा के बावजूद वे विद्यमान हैं जो उनकी जीवंतता व प्रचलन का द्योतक है।”
2.प्राथमिक शिक्षा
प्राथमिक शिक्षा के उद्देश्य प्रशासन व वित व्यवस्था के सम्बन्ध में आयोग ने संस्तुति की कि देश की वर्तमान परिस्थितियों में यह वांछनीय होगा कि जनसाधारण की प्रारम्भिक शिक्षा, विस्तार, सुधार को शिक्षा प्रणाली का वह अंग घोषित किया जाये जिसके लिए राज्य के प्रयास अधिक विस्तृत स्तर पर किये जाने चाहिए।
आयोग ने यह भी कहा कि प्राथमिक शिक्षा को सम्पूर्ण जनसंख्या प्रणाली का वह अंग घोषित किया जाये जिसका शिक्षा के लिए रखे गये स्थानीय कोष पर लगभग पूर्ण अधिकार तथा प्रान्तीय राजस्व पर एक बड़ा अधिकार है। आयोग ने कहा कि “इसके (जनशिक्षा विभाग के प्रयासों का परिणाम जनशिक्षा को अधिक विस्तृत एवं प्रचलित बनाना, शिक्षण में व्यक्तिगत उद्यम को प्रोत्साहित करना, देशी स्कूलों को उपयुक्त मान्यता देना तथा उच्च कक्षाओं के शिक्षण के साथ जनशिक्षा की प्रगति अधिक गति से करना होना चाहिए।”
3.माध्यमिक शिक्षा
माध्यमिक शिक्षा के सम्बन्ध में आयोग ने सिफारिश की कि “उन सभी जिलों में जहाँ जनहित की दृष्टि से आवश्यक हो, तथा जहाँ के निवासी हाईस्कूल खोलने के लायक प्रगतिशील अथवा धनी न हों, ऐसे जिलों में कम से कम एक मॉडल हाई स्कूल सहायता अनुदान प्रणाली के अंतर्गत स्थापित किया जाना चाहिए।” आयोग ने यह भी कहा कि हाई स्कूलों की उच्च कक्षाओं में दो भाग होने चाहिए. एक विश्वविद्यालयों की प्रवेश परीक्षा के लिए तथा दूसरा, अधिक व्यावहारिक प्रकृति का जो नवयुवकों को व्यापारिक अथवा असाहित्यिक क्षेत्रों के लिए तैयार करें।
4. उच्च शिक्षा
उच्च शिक्षा के सम्बंध में हंटर आयोग ने संस्तुति देते हुए कहा कि “प्रत्येक कॉलेज को दिए जाने वाले अनुदान की दर का निर्धारण उसके शिक्षकों की संख्या, रख रखाव पर होने वाला व्यय, संस्था की कार्यकुशलता तथा स्थानीय आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर किया जाना चाहिए।”
5. नारी शिक्षा
लड़कियों की शिक्षा के सम्बन्ध में आयोग का विचार था कि ऐसा देखा गया है कि स्त्रियों की शिक्षा अभी भी अत्यंत पिछड़ी है तथा इसे हर संभव ढंग से आगे बढ़ाना होगा। अतः बालिका विद्यालयों तथा साथ-साथ बालकों के विद्यालयों की सहायता हेतु प्रत्येक प्रकार के जनकोष स्थानीय नगरपालिका व प्रान्तीय कोषों से समान अनुपात में धन लिया जाना चाहिए।
6 .सरकार तथा मिशनरियों की भूमिका
शैक्षिक प्रयासों में सरकार तथा मिशनरियों की भूमिका क्या होनी चाहिए, इस प्रश्न पर भी आयोग ने विचार किया तथा कहा कि उन्हें (मिशनरी संस्थाओं) राज्य के सामान्य निरीक्षण के अंतर्गत अपने स्वतंत्र पाठ्यक्रम चलाने की अनुमति होनी चाहिए। जहाँ तक सम्भव हो तथा आवश्यकता हो, ऐसी संस्थाओं को व्यक्तिगत प्रयासों के लिए आवश्यक सभी प्रकार का प्रोत्साहन तथा सहायता दी जानी चाहिए।
7. धार्मिक शिक्षा
धार्मिक शिक्षा के सम्बन्ध में आयोग ने कहा कि राज्य की घोषित उदासीनता के अनुरूप राज्य के द्वारा संचालित शिक्षा संस्थाओं में धार्मिक शिक्षा नहीं दी जा सकती। हन्टर आयोग के द्वारा प्रस्तुत किये गये अधिकांश सुझाव स्वीकार कर लिये गये तथा तदनुसार शिक्षा की व्यवस्था की जाने लगी। प्राथमिक शिक्षा को स्थानीय निकायों को दे दिया गया। माध्यमिक शिक्षा में गैर सरकारी प्रयासों को प्रोत्साहित किया जाने लगा। बीसवीं शताब्दी के प्रारम्भ .. तक भारतीय शिक्षा हन्टर आयोग के द्वारा दी गई संस्तुतियों के अनुरूप चलती रही।
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