प्रस्तावना – हिन्दुओं द्वारा मनाए जाने वाले त्योहारों का किसी-न-किसी रूप में कोई विशेष महत्त्व अवश्य है। इन पर्वों से हमें जीवन में उत्साह के साथ-साथ आनन्द प्राप्ति भी होती है। हम इन त्योहारों से परस्पर प्रेम तथा भाई चारे की भावना ग्रहण कर अपने जीवन- रथ को प्रगति के पथ पर आगे बढ़ाते हैं। हिन्दुओं के प्रमुख धार्मिक त्योहारों में होली, रक्षाबन्धन, दीपावली, जन्माष्टमी की भाँति विजयदशमी (दशहरा) भी अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। भारतीय शौर्य पर्व : दशहरा हिन्दुओं का पुनीत, सांस्कृतिक एवं धार्मिक पर्व है। यह ग्रीष्म ऋतु का अन्त करके विजय का शंखनाद करता हुआ प्रतिवर्ष अक्टूबर मास में आता है।
विजयदशमी से अभिप्राय
विजयदशमी अथवा दशहरा दश + हरा शब्दों के मेल से बना है। क्षत्रिय श्रीराम भगवान ने राक्षस रावण के दस सिरों का हरण किया था, इसलिए यह दशहरा कहलाया गया। रावण के दस सिर दस प्रकार के पापों को प्रमाणित करते हैं। कुछ लोग दसों इन्द्रियाँ, पाँच ज्ञानेन्द्रियों-चक्षु, धाण, नासिका, रसना, त्वचा एवं पाँच कर्मेन्द्रियाँ-मुख, हस्त, पैर, आनन्देन्द्रिया व शीचेन्द्रिय को मारने अर्थात् वश में करने के संकेत स्वरूप इस त्योहार को मनाते हैं। यह त्योहार अधर्म पर धर्म एवं असत्य पर सत्य की विजय का प्रतीक है इसलिए इसे ‘विजयदशमी’ कहा जाता है। रामचन्द्र जी सत्य एवं धर्म के प्रतीक हैं तो रावण असत्य एवं अधर्म का प्रतीक है।
दशहरा मनाने का काल
दशहरा शरद् ऋतु के आश्विन मास के शुक्ल पक्ष में दशमी को मनाया जाता है। इस समय खरीफ की फसल की कटाई करके किसान ‘रवी’ की फसल की बुवाई की तैयारी करने लगते हैं। अपने मन की खुशी को प्रकट करने के लिए वे इस त्योहार को बढ़ चढ़कर मनाते हैं। इस अवसर पर कहीं दुर्गा पूजा होती है तो कहीं भगवान राम की आराधना की जाती है। अतः दशहरा ‘दुर्गा पूजा’ तथा ‘शस्त्र पूजा’ के रूप में भी मनाया। जाता है। क्षत्रिय अपने शस्त्रों की पूजा करते हैं। स्थगित कार्यों के शुभारम्भ के लिए दशहरा पर्व को शुभ माना जाता है। प्राचीनकाल में राजपूत इसी शुभ अवसर पर अपने शत्रुओं पर आक्रमण करने की ठानते थे। आज भी गाँवों में इस दिन बड़े-बड़े दंगल होते हैं जिसमें मल्ल विद्या एवं शस्त्रों का प्रदर्शन होता है। यह त्योहार प्रतिपदा से श्रीराम की लीलाओं के आरम्भ से लेकर भरत मिलाप तथा राजगद्दी के रूप में द्वादशी तक चलता है।
दशहरा मनाने की विधि
पूरे भारतवर्ष में यह त्योहार बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। इसके दस दिन पहले से नवरात्रों के दौरान भगवान राम के जीवन-चरित्र पर आधारित लीला का मंचन ‘रामलीला’ के द्वारा किया जाता है। दशहरा वाले दिन श्रीराम तथा रावण का ऐतिहासिक युद्ध होता है, जिसमें राक्षस रावण मारा जाता है। अन्त में किसी खुते मैदान में रावण, मेघनाद व कुम्भकर्ण के पुतले जलाए जाते हैं। इन पुतलों में आतिशबाजी भरकर आग लगाई जाती है। यह प्रदर्शन बच्चों का मनोरंजन करता है तो हम सभी को भी भगवान श्रीराम जी के आदर्शों का अनुसरण करने की प्रेरणा देकर जाता है। इस दिन पूरे देश में अनेक मेलों तथा रामलीलाओं का आयोजन किया जाता है। बच्चे, बढ़े, स्त्री, पुरुष सभी नए वस्त्र धारण कर इन मेलों का आनन्द लेते हैं, खाते-पीते हैं, झूले झूलते हैं, साथ ही राम जी की लीला का भी आनन्द लेते हैं। घरों में स्वादिष्ट व्यंजन बनाए जाते हैं।
बंगाल में दशहरा का पर्व ‘दुर्गा पूजा’ के रूप में मनाया जाता है। ये लोग प्रतिपदा से अष्टमी तक दुर्गा-पूजन करते हैं। यहाँ के लोगों में यह धारणा है कि इस दिन ही महाशक्ति दुर्गा ने कैलाश पर्वत को प्रस्थान किया था। अतः बंगाल में विजयदशमी वाले दिन दुर्गा माँ की प्रतिमा बनाकर गलियों बाजारों में झाँकियाँ निकाली जाती हैं और फिर उस प्रतिमा को गंगा में विसर्जित कर दिया जाता है। ऐसा भी माना जाता है कि रावण के विरुद्ध रामजी को विजयी बनाने में दुर्गा माँ ने बहुत सहायता की थी। इस त्योहार का सम्बन्ध शक्ति रूपिण । दुर्गा द्वारा महिषासुर नामक राक्षस के वध से भी जोड़ा जाता है। लोगों का मानना है कि सभी उस राक्षस के अत्याचारों से बहुत त्रस्त थे। देवताओं ने अपनी वेदना ब्रह्मा से कही तो ब्रह्मा जी ने दुर्गा रूपी शक्ति का निर्माण किया था। उसी दुर्गा माँ ने दसवें दिन महिषासुर का वध किया था।
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महाराष्ट्र के कुछ क्षेत्रों में यह त्योहार आज भी सीलंगन अर्थात् सीमोल्लंघन के रूप में मनाया जाता है। इसके पीछे यह मत है कि क्षत्रिय शासक सीमा का उल्लंघन करते थे। यहाँ शाम के समय लोग नव वस्त्रों में सज धजकर गाँव की सीमा पार ‘समी’ नामक एक वृक्ष के पत्तों के रूप में ‘सोना’ लूटकर गाँव लौटते हैं तथा उस पत्ते रूपी सोने का आपस में आदान-प्रदान करते हैं। वहीं ‘समी’ के वृक्ष को ऋषियों की तपस्या का तेज माना जाता है। राजस्थान में इस दिन राजा-महाराजाओं की सवारियाँ निकलती हैं, तथा उनके अस्त्र शस्त्र प्रदर्शित किए जाते हैं। गुजरात में इस पर्व के दिन नृत्य-संगीत आदि समारोहों के साथ देवताओं की पूजा की जाती है। पूरे देश में ‘कूल्लू’ (हिमाचल प्रदेश) का दशहरा बहुत प्रसिद्ध है।
दशहरा का महत्त्व
यह दिन हमारे समाज में बहुत शुभ माना जाता है। प्राचीन संस्कृति में विश्वास करने वाले लोग इसी दिन शुभ कार्य प्रारम्भ करते हैं, नया घर दुकान खरीदते हैं। प्राचीनकाल में राजपूत, मराठे इसी दिन शत्रु पर चढ़ाई करते थे। हिन्दू नारियाँ इस दिन घर की साफ-सफाई कर दशहरे का पूजन करती है और फिर अपने भाईयों के कानो में ‘नौरते’ लगाती है, जो भाई-बहिन का परस्पर स्नेह दर्शाता है। इसी शुभ दिन भगवान बुद्ध का भी जन्म हुआ था। जिस कारण इस पर्व का महत्त्व कई गुना बढ़ जाता है।
निष्कर्ष
विजयदशमी का पर्व हमारी भारतीय परम्परा, संस्कृति तथा गौरव का परिचायक है। यह त्योहार हमें प्रेरणा देता है कि अन्याय, दुराचार तथा अत्याचार को सहन करना भी पाप है। हमें भी भगवान राम की भाँति रावण जैसे राक्षसों का वध करना चाहिए। आज जो भी बुराईयाँ हमारे समाज में फैल रही है वे भी रावण की ही भाँति हमारा विनाश कर रही हैं इसलिए इन बुराइयों को मारकर ही हम भगवान राम के जीवन से प्रेरणा लेने की बात कह सकते हैं। विजयदशमी को मनाते समय हमें पाप-पुण्य, अच्छा-बुरा, नैतिक-अनैतिक जैसे माननीय एवं पाशविक प्रवृत्तियों का ज्ञान होता है। दशहरा का पर्व असत्य पर सत्य की विजय का सन्देशवाहक है। इस पर्व को पूरी निष्ठा तथा सत्यता से मनाए जाने में ही इसकी सार्थकता है।