भारतीय संविधान शैशवपूर्व परिचर्या
भारतीय संविधान शैशवपूर्व परिचर्या एवं शिक्षा संविधान की रचना के समय संविधान सभा द्वारा संविधान के अनुच्छेद 45 के माध्यम से निःशुल्क तथा अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा का दायित्व राज्य सरकार को सौंपा गया था। इस अनुच्छेद में कहा गया था कि “संविधान लागू होने के 10 वर्ष के अन्दर राज्य अपने क्षेत्र के सभी बालक बालिकाओं को 14 वर्ष की आयु होने तक निःशुल्क तथा अनिवार्य शिक्षा प्रदान करने का प्रयास करेगा।” इस समय से उस समय 14 वर्ष तक की आयु के सभी बालक-बालिकाओं को अनिवार्य तथा निःशुल्क शिक्षा देने की संवैधानिक व्यवस्था की गई थी। वस्तुतः उस समय संविधान के अनुच्छेद 45 में किया गया यह संकल्प प्रजातान्त्रिक व्यवस्था वाले राष्ट्र के भावी कर्णधारों को साक्षर बनाने एवं सार्थक जीवन जीने के लिए परम आवश्यक कौशल अर्जित करने की दिशा में राज्य के कर्तव्य को रेखांकित करता था।
परन्तु वर्ष 2002 में हुए छियालीसवें संविधान संशोधन में इसमें प्रावधानित निःशुल्क व अनिवार्य शिक्षा को बदलकर शैशवपूर्व परिचर्या तथा शिक्षा से प्रतिस्थापित करते हुए इसे मात्र छ वर्ष की आयु के बालक-बालिकाओं तक सीमित कर दिया गया एवं एक नया अनुच्छेद 21 ‘क’ जोड़कर प्रारम्भिक शिक्षा को नागरिकों का एक मूल अधिकार बना दिया गया। संविधान संशोधन के उपरान्त अनुच्छेद 45 में कहा गया है कि “राज्य सभी बालक-बालिकाओं के लिए उनकी आयु छह वर्ष होने तक शैशवपूर्व परिचर्या तथा शिक्षा की व्यवस्था करने का प्रयास करेगा।” स्पष्ट है कि अब राज्य का यह उत्तरदायित्व छह वर्ष की आयु तक के बालक-बालिकाओं की परिचर्या व शिक्षा तक सीमित हो गया है एवं छह से चौहद वर्ष की आयु के बालक-बालिकाओं को प्रारम्भिक शिक्षा मूल अधिकार के रूप में राज्य के द्वारा बनाई गई विधि के अनुरूप ढंग से प्राप्त हो सकेगी।
किण्डरगार्टन पद्धति पर प्रकाश डालिए।
शिशु देखभाल तक शिक्षा
छह वर्ष से कम आयु वर्ग के बच्चों के सर्वतोमुखी तथा सन्तुलित विकास के महत्व तथा आवश्यकता को स्वीकार करते हुए समिति ने शिशु देखभाल तथा शिक्षा के सम्बन्ध में निम्न संस्तुतियाँ की
- सन्तुलित मानवीय विकास को बढ़ावा देने के साधन के रूप में शिशु देखभाल तथा शिक्षा प्रत्येक बच्चे का जन्मसिद्ध अधिकार है। अतः चौदह वर्ष की आयु पूरी होने तक सब बच्चों को एक निश्चित कालावधि में निःशुल्क तथा अनिवार्य शिक्षा प्रदान करने के संवैधानिक निवेश ( अनुच्छेद 45 ) का क्षेत्र बढ़ा देना चाहिए ताकि इसमें शिशु देखभाल तथा शिक्षा भी शामिल हो सके।
- शिशु देखभाल तथा शिक्षा कार्यक्रम को शिक्षा के सभी क्षेत्रों में जैसे स्त्री शिक्षा, अनुसूचित जाति व जनजाति की शिक्षा, प्रारम्भिक शिक्षा, व्यावसायिक शिक्षा, विषयवस्तु व प्रक्रिया, अध्यापक प्रशिक्षण, उच्च शिक्षा आदि में उचित स्थान मिलना चाहिए।
- शिशु देखभाल तथा शिक्षा को न्यूनतम आवश्यकता कार्यक्रम में शामिल करना चाहिए।
- जहाँ सम्भव हो, शिशु देखभाल केन्द्रों तथा शिशु शिक्षा केन्द्रों को प्राथमिक स्कूलों में जोड़ना चाहिए।
- शिशु देखभाल एवं शिक्षा के क्षेत्र में नवाचारी तथा प्रयोगात्मक मॉडलों को प्रोत्साहन देना चाहिए।
- शिशुओं की देखभाल तथा शिक्षा से सम्बन्धित समस्याओं के बारे में सार्वजनिक जानकारी के लिए संचार माध्यमों का उपयोग करना चाहिए।
- शिशु देखभाल तथा शिक्षा के लिए अध्यापक प्रशिक्षण की पूरी जिम्मेदारी केन्द्र तथा राज्यों के शिक्षा विभागों को सम्मानी चाहिए।
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- नारी और फैशन पर संक्षिप्त निबन्ध लिखिए।