भारतीय संविधान का स्वरूप – डॉ. अम्बेडकर ने संविधान निर्मात्री सभा में संविधान के स्वरूप को संघात्मक बताते हुए कहा था कि, “यह एक संघीय संविधान है। केन्द्र तथा राज्य दोनों का गठन संविधान द्वारा हुआ है एवं दोनों की शक्ति एवं प्राधिकार का स्रोत संविधान है।” यद्यपि व्यावहारिक आवश्यकताओं को देखते हुए केन्द्रीकरण का प्रयास किया गया है। परन्तु संघात्मक ढाँचा नष्ट नहीं होता है।
भारतीय संघात्मक व्यवस्था (The Indian Federal System)
भारतीय संविधान सभा की प्रकृति ही शायद समझौतावादी रही थी और भारत की विशेष परिस्थितियों व आदशों की आवश्यकताओं को पूर्ण करने के लिए उन्होंने विभिन्न विपरीत विचारधाराओं व प्रणालियों में भी ‘समझौता व समन्वय करके उन्हें अद्भुत व भारतीय बनाकर अपना लिया। भारतीय संघीय प्रणाली भी अपने प्रकार की नवीन संघीय प्रणाली है, जो संघात्मकता व एकात्मकता दोनों का ही मिश्रण है।
भारतीय संविधान की संघीय विशेषताएँ (Federal Features of Indian Constitution)
भारतीय संविधान के संघात्मक तत्व इस प्रकार हैं-
(1) लिखित तथा कठोर संविधान (Written and Inflixible Constitution)
संघात्मक संविधान लिखित तथा कठोर होता है। भारतीय संविधान में यह दोनों विशेषताएँ पूर्ण रूप से पाई जाती हैं।
(2) सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court)
संघात्मक शासन व्यवस्था में केन्द्र तथा राज्यों के विवादों का समाधान करने के लिए सर्वोच्च न्यायालय का होना अनिवार्य है। भारत के संविधान ने भी सर्वोच्च न्यायालय की स्थापना की है जो केन्द्र तथा राज्यों के पारस्परिक विवादों का समाधान करता और संविधान की रक्षा करता है।
(3) संविधान की सर्वोच्चता (Supremacy of the Constitution)
संघात्मक शासन व्यवस्था में केन्द्र सरकार तथा इकाइयों दोनों ही संविधान द्वारा निर्धारित क्षेत्रों में कार्य करती है। दोनों को संविधान से शक्ति प्राप्त होती है। कोई भी एक दूसरे के क्षेत्र अथवा शक्तियों का अतिक्रमण नहीं कर सकती।
(4) केन्द्र तथा राज्यों में शक्तियों का विभाजन (Distribution of Power between the Center and the States )
संघात्मक संविधान के अनुरूप भारत के संविधान में केन्द्र तथा राज्यों के बीच शक्तियों का स्पष्ट रूप से विभाजन किया गया है। शासन की विधियों को तीन सूचियों में बाँटा गया है- संघ सूची, राज्य सूची और समवर्ती सूची संघ सूची के विषयों पर संघ सरकार का अधिकार है, राज्य सूची के विषयों पर राज्यों की सरकार का अधिकार है और समवर्ती सूची के विषयों पर केन्द्र तथा राज्य दोनों का अधिकार है।
भारतीय संविधान के एकात्मक लक्षण (Unitary Features of the Indian Constitution)
भारतीय संविधान के एकात्मक लक्षण अग्र प्रकार हैं-
(1) शक्तिशाली केन्द्र (Strong Centre)
केन्द्र तथा राज्यों के मध्य शक्तियों के विभाजन द्वारा केन्द्र को अधिक शक्तिशाली बनाने का प्रयत्न किया गया है। संघ सूची में 97 विषय हैं। राज्य सूची में 66 और समवर्ती सूची में 47 विषय हैं। संघ सूची में महत्वपूर्ण और यापक विषय रखे गये हैं। समवर्ती सूची के विषयों पर भी केन्द्र को प्राथमिकता प्रदान की गई है। संकटकाल में राज्य सूची के विषयों पर भी केन्द्र कानून बना सकता है।
(2) एक ही न्याय व्यवस्था (Single Justice System)
पूरे देश में एक सी ही न्याय व्यवस्था है। भारत के समस्त न्यायालय सर्वोच्च न्यायालय के अधीन हैं। सम्पूर्ण देश के लिए फौजदारी तथा दीवानी की विधि समान है।
(3) इकहरी नागरिकता (Single Citizenship)
भारतीय संविधान में दोहरी नागरिकता के स्थान पर इकहरी नागरिकता की व्यवस्था की गई है। हमारे देश के सभी नागरिक भारतीय संघ के नागरिक माने जाते हैं।
(4) राष्ट्रपति राज्यपालों की नियुक्ति करता है (President appoints the Governers)
राज्य के राज्यपालों की नियुक्ति राष्ट्रपति करता है और राष्ट्रपति के प्रसाद पर्यन्त राज्यपाल अपने पद पर रहते हैं।
भारत में मूल अधिकार एवं नीति निदेशक तत्वों के मध्य सम्बन्ध तथा अन्तर की विवेचना कीजिए।
(S) संकटकाल में शासन का एकात्मक रूप (In Emergency it can be Transformed into Unitary Character)
संकटकाल में राष्ट्रपति देश का शासन अपने हाथ में ले सकता है। इससे राज्यों की स्वतन्त्रता समाप्त हो जाती है और संघ का एकारूप एकात्मक हो जाता है।
(6) केन्द्र तथा राज्यों के लिए एक ही संविधान (Single Constitution for the Centre and the states)
अमेरिका में राज्यों को अपना अलग संविधान बनाने का अधिकार है। परन्तु भारत में इस प्रकार का अधिकार राज्यों को नहीं है। केन्द्र तथा राज्यों का एक ही संविधान है।
(7) राज्य सूची पर केन्द्र का नियन्त्रण (Centre’s Control Over State List)
राज्य सभा यदि 2/3 बहुमत से किसी विषय को राष्ट्रीय महत्व का घोषित कर दे तो केन्द्रीय संसद को एक वर्ष तक उस विषय पर कानून बनाने का अधिकार प्राप्त होता है।
(3) नये राज्यों के निर्माण व सीमाओं में परिवर्तन करने का केन्द्रीय संसद का अधिकार (Union Parliament has a rights to create new States and change the boundries of existing States)
संसद को राज्य की सीमाओं में परिवर्तन, नये राज्यों का निर्माण तथा राज्यों के नाम परिवर्तन करने का अधिकार है।