भारतीय संस्कृति पर हिन्द-यवन आक्रमण के प्रभाव की विवेचना कीजिए।

हिन्द-यवन आक्रमण का भारतीय संस्कृति पर क्या प्रभाव पड़ा इसको लेकर विद्वान में मतभेद है। स्मिय, टार्न आदि विद्वानों का मानना है कि हिन्द यवन आक्रमण का कोई स्थायी प्रभाव नहीं पड़ा लेकिन यह मत तर्कसंगत नहीं है। हिन्द यवन आक्रमण का भारतीय संस्कृति पर प्रभाव पड़ा, यही नहीं भारतीय संस्कृति का भी प्रभाव उन पर पड़ा अर्थात् दोनों की सभ्यता एवं संस्कृति प्रभावित हुई। हिन्द-यवन कुछ समय तक भारत में रहने के बाद भारतीय समाज के अभिन्न अंग बन गए। उन्हें सर्वज्ञ यवन कहकर सम्मानित किया गया। भारतीय संस्कृति के निम्न पक्षों पर हिन्द-ययन संस्कृति का प्रभाव दिखायी पड़ता है

भाषा पर प्रभाव

टार्न का मत है कि भारतीयों और यूनानियों ने एक दूसरे की भाषा के शब्द ग्रहण कर लिए। भारतीयों ने यूनानियों से ही सम्भवतः कलम, पुस्तक, सुरंग (खान), केन्द्र, कोण, कैम्प (खेमा), होरा (घण्टा) आदि शब्द ग्रहण किए। इसी प्रकार यूनानियों ने भारतीयों से मर्कट, वैदूर्य, श्रृंगवेर, पिप्पसि, कर्पाश, शर्करा आदि शब्द लिए। इस विद्वान के अनुसार भारतीयों ने सम्भवतः यूनानी भाषा भी सीख ली थी और सम्भवतः मिलिन्दपन्हों और युगपुराण के लेखक यूनानी भाषा जानते थे। पाणिनि जिस यवनानी लिपि का उल्लेख करता है वह यूनानी प्रभाव के कारण ही थी।

साहित्य पर प्रभाव

अनेक विद्वान संस्कृत के सुखान्त नाटकों पर यूनानी नाटकों का प्रभाव स्वीकार करते हैं। संस्कृत नाटकों में यवनिका शब्द भी यूनानियों के सम्पर्क से ही आया संस्कृत साहित्य के यूनानी सुखान्त नाटकों के निकटतम शूद्रक की मृच्छकटिकम है।

ज्योतिष पर प्रभाव

यूनानी ज्ञान से भारतीय सबसे अधिक ज्योतिष के क्षेत्र में लाभान्वित हुए। सप्ताह का सात दिनों में विभाजन, कैलेंडर का ज्ञान, ग्रहों का नामकरण यूनान के आधार पर ही किया गया। ग्रहों की गतिविधियों के आधार पर भविष्यवाणी करने की प्रथा भी यूनानी फलित ज्योतिष से प्रभावित थी। भारतीयों ने स्पष्ट रूप में ज्योतिष के क्षेत्र में यूनानियों के प्रभाव को स्वीकार किया है। गार्गीसंहिता और बृहत्संहिता में यह बात स्पष्ट रूप से स्वीकार की गई है कि ” यद्यपि यवन बर्बर और म्लेच्छ है, तथापि ज्योतिष के अपने ज्ञान के कारण वे प्राचीन ऋषियों की भाँति श्रद्धा के पात्र है।” वाराहमिहिर की पंचसिद्धांतिका में ज्योतिष के के पाँच सिद्धान्तों में दो के नामों (रोमक, पौलश) पर यूनानी प्रभाव लक्षित होता है। पौलश सिद्धान्त के आधार पर भारतीय त्रिकोणमिति (ग्रीक) त्रिगोनोमेत्री) का विकास हुआ अनेक ज्योतिषपरक यूनानी शब्दों का संस्कृत में प्रयोग आरम्भ हुआ। भारतीय ज्योतिष के राशिचक्र के संस्कृत नाम ग्रीक मूल या अनूदित है, जैसे क्रिय (क्रियोस, मेष) तारि (सौरस, वृषभ), लेब (लियो, सिंह) इत्यादि।

चिकित्साशास्त्र पर प्रभाव

चिकित्सा शास्त्र के क्षेत्र में भी भारतीय यूनानियों के ऋणी है। फोगल के अनुसार, चरक संहिता में वैद्य के आचार के विषय में जो नियम बनाए गए थे, वे यूनानी चिकित्साशास्त्र [टीज के नियमों से मिलता-जुलता है। लेकिन यह मत पूर्णतः प्रामाणिक नहीं है।

स्थापत्य कला पर प्रभाव

कला में यूनानी प्रभाव दृष्टिगत होता है दुर्भाग्य से उस समय की वास्तुकला के उदाहरण आज अधिक संख्या में उपलब्ध नहीं होते। तक्षशिला में प्राप्त एक मन्दिर तथा कुछ अन्य भवनों पर यूनानी वास्तुकला का प्रभाव माना जा सकता है।

मूर्ति कला पर प्रभाव

वास्तुकला की अपेक्षा स्थापत्य कला के क्षेत्र में यूनानी प्रभाव अधिक स्पष्ट है। हेलेनिस्टिक कला ने गान्धार मूर्तिकला या प्रीक बौद्धशैली को भी प्रभावित किया। इस प्रभाव के अन्तर्गत भारतवर्ष में जिस कला का उदय हुआ यह गान्धार करना कहलाती है। कभी-कभी इसे इण्डो-यूनानी कला भी कहते हैं। इसमें विषय तो भारतीय है, परन्तु शैली यूनानी है। बुद्ध की मूर्तियाँ यूनानी देवता अपोलो के मुख से मिलती-जुलती बनाई गई। इस कला का पूर्ण विकास शक कुषाण काल में हुआ।

यन्त्र कला पर प्रभाव

यवन चिकित्सकों एवं इंजीनियरों की भारत में पर्याप्त प्रतिष्ठा थी। व्यूह-रचना के विशेषज्ञ तथा युद्ध-मशीनों के निर्माता के रूप में उनको सम्मान से देखा जाता था। वृहत्कथामंजरी में बवनों को दक्ष शिल्पी माना गया है। लड़ाकू चालत घोड़ों के निर्माता के रूप मैं भी उनका उल्लेख हुआ ।

मुद्रा निर्माण पर प्रभाव

इंडो-ग्रीक सम्पर्क ने भारतीय मुद्रा प्रणाली को महत्वपूर्ण ढंग से प्रभावित किया। उनके आगमन के पूर्व भारत में आहत सिक्के चलते थे, जिन पर राजा का चित्र या अभिलेख नहीं होता था और जो मुद्राएँ बेडौल और लेख विहीन होती थी। यूनानियों ने भारत आगमन के साथ ही वैसे सिक्के, खुदवाए, जिन पर राजा की आकृति खुदी रहती थी तथा वे सुडौल, कलात्मक और अभिलेख-युक्त होने लगी। यूनानियों ने ही सबसे पहले सोने के सिक्के चलाए। उसके पहले चाँदी और ताँबे के सिक्के चलते थे। यूनानी सिक्कों से प्रभावित होकर अन्य भारतीय शासकों ने भी आकृति और अभिलेखयुक्त सिक्के चलाए तथा सोने के सिक्के भी बलवाए। कुषाण-शासक कनिष्क ने हिन्द यूनानी और रोमन सिक्कों के आधार पर अपने सिक्के चलाए। चाँदी के सिक्के भी अब पहले की अपेक्षा अधिक अच्छे बनने लगे। यूनानी प्रभाव के अन्तर्गत वे भारतीयों ने यूनानियों से साँचे में ढालकर मुद्राएँ बनाने की कला सीखी। कुणिन्दों और औदुम्बरों की मुद्राएँ यूनानी नरेश अपालोडोटस की मुद्राओं से मिलती जुलती है। यूनानी शब्द द्रम्म भी भारतीय भाषा में ग्रहण कर लिया गया।

धर्म पर प्रभाव

हिन्द यवनों का प्रभाव भारतीय धर्म पर भी पड़ा। अनेक यूनानी शासकों ने बौद्ध धर्म अपनाकर उसका मध्य एशिया में प्रसार किया। यवन शासक मिनाण्डर बौद्ध धर्म से प्रभावित होकर उसे स्वीकार कर चुका था। एक यूनानी पदाधिकारी मेरिड्रक थियोडोरस ने इस धर्म से प्रभावित होकर स्थानघाटी तक बौद्धधर्म को पहुंचाया उसने स्वातपाटी (उदयान) में बौद्धधर्म का प्रसार किया। बुद्ध के अवशेषों की पूजा वहाँ भी आरम्भ हुई थियोडोरस ने जनकल्याण के लिए एक तालाब खुदवाया हेलियोडोरस भागवत धर्म से प्रभावित था। उसने बेसनगर में गरुड़ध्वज की स्थापना की।

इटली में पुनर्जागरण पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।

इसके अतिरिक्त भारत और यूनान में व्यापारिक सम्पर्क भी बढ़े। यवन सम्पर्क के कारण भारतीय व्यापार का विकास हुआ। पेरिप्लस आफ दी एरिब्रीयन सी का रचयिता एक यूनानी ही था जो भारत का विदेशों के साथ व्यापारिक सम्बन्ध प्रमाणित करता है। इस प्रकार, इंडो-ग्रीक आक्रमण के परिणामस्वरूप भारतीय और यूनानी एक-दूसरे के और निकट आए। यवन भी भारतीय सभ्यता और संस्कृति से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सके।

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