भारतीय समाज में परिवर्तन के कारक
भारतीय समाज में परिवर्तन के कारकों का वर्णन निम्नवत है
(1) औद्योगीकरण एवं नगरीकरण
अंग्रेजी शासन की स्थापना के बाद से भारत में औद्योगीकरण व नगरीकरण की जो लहर आयी है उसके कारण भारतीय समाज में अनेकों परिवर्तन हुए है। औद्योगीकरण ने एक और बड़े पैमाने पर उत्पादन कार्य को आरम्भ करके इस देश में पूँजीवादी अर्थ व्यवस्था का श्रीगणेश किया है तो दूसरी ओर गन्दी बस्ती, औद्योगिक झगड़े व तनाव, श्रमिक संघ, बीमारी, बेकारी व गृह उद्योगों का विनाश आदि परिणाम व परिवर्तनों को भी उत्पन्न किया है। नगर व उद्योग-धन्धे अपने अनेक अपकर्षणों व प्रलोभनों द्वारा गाँव के लोगों को अपनी ओर खींचते हैं जिसके फलस्वरूप गाँव के घरेलू उद्योग व संयुक्त परिवार टूटता है और साथ ही गाँव का सम्पर्क नगरों से घनिष्ट हो जाने के कारण गाँव का जीवन प्रतिमान भी तेजी से परिवर्तित हो जाता है।
(2) मशीनीकरण
मशीनों के आविष्कार होने तथा शहरों के निकट सम्पर्क में आने एवं कृषि के सम्बन्ध में नवीनतम खोजों से धीरे-धीरे परिचित होने के फलस्वरूप भारतीय गाँवों में कृषि व्यवसाय का उत्तरोत्तर मशीनीकरण व आधुनिकीकरण होता जा रहा है, फलतः यह देश अनेक वर्षों तक खाद्यान्न आदि के विषय में विदेशों पर निर्भरशील रहने के बाद अब धीरे-धीरे आत्म-निर्भर की स्थिति पर पहुँच गया है। इस मशीनीकरण व आधुनिकीकरण के फलस्वरूप भारतीय किसानों की आर्थिक स्थिति में परिवर्तन हुआ है तथा उनका विचार, मूल्य, आदर्श व रहन-सहन भी बदला है।
(3) पाश्चात्य सभ्यता एवं संस्कृति
आधुनिक भारत में रहन-सहन, खान-पान, गीत, नृत्य, अभिवादन के ढंग, मकान बनाने के ढंग आदि में जो परिवर्तन हो गए हैं या हो रहे हैं वे सभी पाश्चात्य सभ्यता व संस्कृति से काफी प्रभावित हुए हैं। पाश्चात्य शिक्षा के माध्यम से हमारा सम्बन्ध दुनिया के अन्य समाज में हुआ है जिसके परिणामस्वरूप अनेकों परिवर्तन हुए। डॉ० एम० एन० श्रीनिवास का मत है कि भारत में अंग्रेजी शासन की स्थापना से लेकर अब तक इस समाज में पश्चिमीकरण की जो प्रक्रिया चल पड़ी है उसके फलस्वरूप भारतीय समाज में अनेक परिवर्तन हुए हैं और आज भी हो रहे हैं।
(4) राजनीतिक परिवर्तन
स्वतन्त्रतापूर्व भारतीय जनता में राजनीतिक चेतना का अत्यन्त अभाव था। अपने अधिकारों में सामाजिक कर्त्तव्यों में एवं समाज की विविध समस्याओं के सम्बन्ध में वे अधिक जागरूक नहीं थे। राजनीतिक पार्टियाँ अपने- अपने आदर्श उद्देश्यों के अनुसार अपने- अपने ढंग के प्रचार द्वारा जनता में राजनीतिक व सामाजिक जागृति लाने में सफल हुई है। इन्हीं राजनीतिक दलों के क्रिया कलापों व प्रचारों के फलस्वरूप अनेक महत्वपूर्ण परिवर्तन हुए हैं। चुनाव में अधिक दिलचस्पी, ग्रामीण जनता में एक विशेष राजनीतिक पार्टी को अच्छा मानने की प्रवृत्ति, युवा पीढ़ी के द्वारा देश के नेतृत्व में उत्तरोत्तर प्रवेश, महिलाओं का राजनीतिक व सामाजिक क्षेत्र में कार्य करना व नेतृत्व करना आदि महत्वपूर्ण परिवर्तन हुए।
(5) संस्कृतिकरण-
डॉ० एम० एन० श्रीनिवास ने भारतीय समाज में, विशेषकर व्यातीय संरचना में होने वाले अनेक परिवर्तनों का कारण संस्कृतिकरण माना है। संस्कृतिकरण की प्रक्रिया द्वारा निम्न जाति के लोगों की केवल जातीय स्थिति, प्रथाओं व आदतों में ही नहीं अपितु विचारों व मूल्यों में भी परितर्वन हो। जाते हैं। डॉ० श्रीनिवास के अनुसार आधुनिक भारत में संस्कृतिकरण की प्रक्रिया के द्वारा निम्न जातियों में अनेक उल्लेखनीय परिवर्तन होते जा रहे है जिसके फलस्वरूप एक और उनमें नए विचारों, मूल्यों व आदतों का जन्म हो रहा है और दूसरी और उनके मन से हीनता की भावना समाप्त हो रही है।
(6) महिला शिक्षा-
महिलाएँ भारतीय समाज को अत्यन्त पिछड़ी व रूढ़िवादी अंग रही हैं और उनका जीवन परिवार की चार दीवारों के अन्दर खाना बनाने, बच्चों को जन्म देने व पति एवं बच्चों की देख-रेख करते हुए ही बीत जाता था पर आज उन्हें शिक्षा प्राप्त करने की जो सुविधाएँ प्राप्त हो रही है, उसके कारण उनमें एक नवीन जागृति आ गयी है और वे अपने अधिकार व कर्तव्यों के सम्बन्ध में पहले से अब कहाँ ज्यादा जागरूक हो गयी है। महिला शिक्षा ने उनकी रूढ़िवादिता को बहुत कम कर दिया है, ये अब घर से बाहर निकलकर न केवल नौकरी करती है, अपितु महिला संघठनों को बनाती है, समाज-सेविका के रूप में कार्य करती है, राजनीति में भी खुलकर हिस्सा लेती है और कोर्ट में जाकर लव मैरिज करके जाति पाँति के भेदभाव को चुनौती देती हैं। ये सभी परिवर्तन महिला शिक्षा के द्वारा ही सम्भव हुए हैं।
(7) बढ़ती जनसंख्या
भारतीय समाज को सन् 1941 में जो जनसंख्या प्रायः 32 करोड़ थी वह 1971 में बढ़कर 55 करोड़ हो गई थी। सन् 1981 में यह जनसंख्या 68.53 करोड़ तक, तथा सन् 2011 में यह लगभग 121 करोड़ पहुँच गई है। जनसंख्या के इस विस्फोट के कारण ही पिछले पच्चीस वर्षो में राष्ट्रीय आय बढ़कर चौगुनी हो जाने पर भी प्रति व्यक्ति आय मूल्य वृद्धि को देखते हुए बहुत ही मामूली बढ़ी है। जनसंख्या वृद्धि के कारण ही सन् 1960 में श्रमिकों से सम्बन्धित जो उपभोक्ता मूल्य सूचकांक 100 था, वह फरवरी, 1980 में बढ़कर 378 हो गया। इसी जनसंख्या में विस्फोट के कारण देश में बेरोजगारी की संख्या प्रथम पंचवर्षीय योजना के अन्त में 80 लाख से बढ़कर छटी योजना के अन्त तक 386 लाख हो जाने का अनुमान है। सन् 1978 में प्रति 3000 व्यक्तियों पर एक डॉक्टर उपलब्ध है। इस प्रगति के बावजूद अस्पतालों में लम्बी कतारें देखने को मिलती है। अत्यधिक जनसंख्या के कारण ही इस देश में प्रति व्यक्ति दवाइयों पर केवल 4 रुपये खर्च किए जाते हैं, जबकि अमेरिका में 193, फ्रांस, में 167 रुपये और जापान में 117 रुपये खर्च किए जाते हैं इस देश में कपड़े के उत्पादन में भी वृद्धि हुई है. फिर भी लोग नंगे है। बढ़ती हुई जनसंख्या के कारण ही इस देश में मकानों की कमी है और औद्योगिक शहरों में सामान्य आदमी के लिए गन्दी बस्तियाँ, झोपड़े और फुटपाथ हो नसीब होते हैं। जनसंख्या में अत्यधिक वृद्धि के कारण हो इस देश में निर्धनता, बेरोजगारी, गम्भीर प्रकार के रोग भुखमरी आदि की समस्याएँ एक दयनीय स्थिति पर पहुँच गई है।
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