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भारतीय राष्ट्रवाद के उदय में आर्थिक कारकों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।” स्पष्ट कीजिए।

भारतीय राष्ट्रवाद के उदय में आर्थिक कारक

भारतीय राष्ट्रवाद के उदय-भारत में राष्ट्रीयता की वृद्धि में आर्थिक कारणों का महत्वपूर्ण योगदान था। 1857 ईo के पश्चात भारत में राजनीतिक एकता के साथ-साथ आर्थिक एकता भी स्थापित हुई। अब सरकारी आर्थिक नीतियों का प्रभाव समस्त देश पर समान रूप से पड़ने लगां 19वीं शताब्दी के उत्तरा) में विरोधाभास स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ता है। एक तरफ गतिहीन अर्थव्यवस्था में, जैसे- व्यापार, संचार और परिवहन के साधनों में तेजी से विकास हो रहा था तो दूसरी तरफ कृषि की अवनति हो। रही थी। साथ ही, जमीन पर दबाव भी बढ़ता जा रहा था देहातों में लोगों की स्थिति बिगड़ने लगी। व्यापार की वृद्धि ने पूँजीवादी उत्पादन को बढ़ावा दिया।

विदेशी व्यापार की वृद्धि ने भारतीय अर्थव्यवस्था के औपनिवेशिक स्वरूप को और अधिक उभार दिया। इस व्यावस्था के अंतर्गत भारतीय जनता और भारतीय साधनों का सर्वाधिक शोषण आरंभ हुआ। अँगरेजी आर्थिक नीतियों से समाज का उच्च वर्ग ही लाभान्वित हुआ, यहाँ तक कि भारतीय पूँजीवाद वर्ग भी इस व्यवस्था से संतुष्ट नहीं हो सका। भारतीय पूँजीपति वर्ग देश के आर्थिक साधनों का समुचित विकास करना। चाहता था, परंतु शासक वर्ग की नीतियों के कारण ऐसा संभव नहीं था।

आत्म- अनुसूची सेवा के महत्त्व पर प्रकाश डालिए।

व्यापार की वृद्धि और उद्योगीकरण के फलस्वरूप जो समृद्धि आई, उसका लाभ सामान्य जनता, किसान, कारीगर और मजदूर को भी नहीं मिला। इसके विपरीत देशी उद्योगों के विनाश, धन के निष्कासन, मूल्यवृद्धि, अकाल, महामारी का घातक प्रभाव इसी वर्ग को झेलना पड़ा।

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