भारतीय इतिहास में पाल शासन के योगदान पर प्रकाश डालिए।

0
21

इतिहास में पाल शासन के योगदान

पाल राजाओ का शासन काल प्राचीन भारतीय इतिहास के उन राजवंशों में से एक है जिन्होंने सबसे लम्बे समय तक राज्य किया। चार सौ वर्षों के उनके दीर्घकालीन शासन में बंगाल का राजनैतिक तथा सांस्कृतिक दोनों ही दृष्टियों से अभूतपूर्व विकास हुआ। पाल नरेश बौद्ध मतानुयायी थे तथा उन लोगों ने उस समय बौद्ध धर्म को राजकीय प्रश्रय दिया जबकि उसका भारत से पतन हो रहा था। उन्होंने बिहार और बंगाल में अनेक चैत्य, बिहार एवं मूर्तियाँ बनवायी। परन्तु वे धर्मसहिष्णु शासक थे और उन्होंने ब्राह्मणों को भी दान दिया तथा मन्दिरों का निर्माण करवाया। पालवंशी शासकों ने शिक्षा और साहित्य के विकास को भी प्रोत्साहन प्रदान किया। सोमपुरी, उदन्तपुर तथा विक्रमशिला में शिक्षण संस्थाओं की स्थापना हुई। इनमें विक्रमशिला कालान्तर में एक ख्याति प्राप्त अन्तर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय बन गया इसकी स्थापना धर्मपाल ने की थी। पूर्वमध्यकाल के शिक्षा केन्द्रों में इसकी ख्याति सबसे अधिक थी।

यहाँ अनेक बौद्ध मन्दिर तथा बिहार थे। बारहवीं शताब्दी में यहाँ लगभग 3000 विद्यार्थी शिक्षा ग्रहण करते थे। बौद्ध धर्म तथा दर्शन के अतिरिक्त यहाँ व्याकरण, न्याय, तन्त्र आदि की भी शिक्षा दी जाती थी यहाँ विद्वानों की एक मण्डली थी जिसमें दीपंकर का नाम सर्वाधिक उल्लेखनीय है। उन्होंने तिब्बत में बौद्ध धर्म के प्रचार का कार्य किया। अन्य विद्वानों में रक्षित, विरोचन, ज्ञानपाद, ज्ञानश्री, रत्नवज्र, अभयंकर आदि के नाम उल्लेखनीय है।

गुर्जर प्रतिहार वंश के इतिहास के प्रमुख श्रोत कौन से हैं?

इस समय विक्रमाशिला ने नालन्दा विश्वविद्यालय का स्थान ग्रहण कर लिया था यहाँ विभिन्न देशों, विशेषकर तिब्बत के विद्यार्थी शिक्षा ग्रहण करने के लिए आते थे। उनके आवास तथा भोजन की व्यवस्था और विश्वविद्यालय का खर्च राजाओं तथा कुलीन नागरिकों द्वारा दिये गये दान से चलता था। बारहवीं शती तक इस शिक्षा केन्द्र की उन्नति होती रही। 1203 ई. में मुस्लिम आक्रान्ता बख्तियार खिलजी ने इसे ध्वस्त कर दिया।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here