भारतीय दर्शन में कर्म सिद्धान्त की व्याख्या कीजिए।

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भारतीय दर्शन में कर्म सिद्धान्त – कर्मचंद का सिद्धान्त भारतीय दर्शन का आधारभूत सिद्धान्त है। भारतीय विचारधारा में इसे ईश्वरवाद एवं आत्मवाद से भी अधिक महत्व प्राप्त है। ईश्वरवादी, अनीश्वरवादी, आत्मवादी, अनात्मवादी, वैदिक एवं अवैदिक, सभी विचारधाराएं कर्मवाद एवं पुनर्जन्म के सिद्धान्त में विश्वास करती हैं। केवल चार्वाक विचारधारा ही इसका अपवाद है। कर्मवाद के सिद्धान्त की पृष्ठभूमि में भारतीय दर्शन की यह मान्यता निहित है कि विश्व में एक शाश्वत नैतिक व्यवस्था है। इस व्यवस्था में किसी भी प्रकार का अपवाद या व्यवधान नहीं पाया जाता है। इस अलंघ्य नैतिक व्यवस्था को वेदों (ऋग्वेद) में ‘ऋत’ कहा जाता है। सूर्य और चन्द्रमा भी इस नियम के अधीन हैं। ग्रह नक्षत्रों की गति भी इस नियम से नियन्त्रित होती है। विश्व की अन्यान्य घटनाएं भी ऋत-व्यवस्था के अधीन हैं। यह सार्वभौम नैतिक व्यवस्था परवर्ती भारतीय दर्शन में कर्मवाद के रूप में सामने आती है।

कर्म के सिद्धांत की व्याख्या कीजिए।

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