भारतवर्ष में प्रौढ़ शिक्षा का सामान्य अर्थ है- निरक्षण प्रौदों को प्रारम्भिक लेखन, पठन और अंकगणित की शिक्षा देना, जिसकी निर्धारित आयु 15 से 35 वर्ष तक मानी जाती है। व्यापक अर्थ में इसका उद्देश्य है- प्रत्येक व्यक्ति के लिए, सभी अवसरों पर और हर परिस्थितियों में शिक्षा की व्यवस्था करना।
अतएव सामान्य अर्थ में कहा जा सकता है कि प्रौढ़ शिक्षा की अर्थ-परिधि में प्रौढ़ों को दी जाने वाली सम्पूर्ण औपचारिक विशेषकर अनौपचारिक शिक्षा सम्मिलित है। इसमें प्रायः दो पहलू माने गये हैं- प्रीढ़ साक्षरता अर्थात् उनको शिक्षा, जिनको विद्यालय में कभी भी किसी प्रकार की कोई शिक्षा प्राप्त नहीं हुई है और दूसरा उन अल्प साक्षर प्रौढ़ों की शिक्षा, जिन्हें वह उनके बाद से जीवन में प्रदान की जाती है। वस्तुतः इनकी आवश्यकता निम्नलिखित कारणों से हो। सकती है
- वे निरक्षर प्रौढ़ों को जो किसी कारणवश विद्यालयीय शिक्षा नहीं प्राप्त कर सके हैं, उन्हें साक्षर बनाने हेतु।
- कुछ अल्प साक्षरों की आधारभूत आवश्यकता प्रदान करने हेतु ।
- वयस्क नागरिकों को विकास कार्यक्रमों में कुशलता एवं बुद्धिमत्ता से भाग लेने की शिक्षा हेतु।
- प्रदान की गयी शिक्षा का उद्देश्य हो।
- राजनीतिक चेतना, मनोरंजन जैसे विभिन्न साधनों को प्राप्त करने के लिए जागरूकता प्रदान करने हेतु।
प्रौढ़ शिक्षा के उद्देश्य
शाब्दिक अर्थ में यदि विचारगत करें, तो प्रौढ़ शिक्षा का अभिप्राय है- प्रौढ़ अथवा वयस्कों को शिक्षा प्रदान करना। वर्तमान समय में प्रौढ़ शिक्षा का यह आशय नहीं है। जहाँ तक एक और प्रौढ़ों, वयस्कों को आधारभूत साक्षरता ज्ञान प्रदान करती है, वहीं दूसरी ओर उन्हें अपने समाज एवं राष्ट्र के प्रति जागरूक बनाते हुए, अपने जीवन मूल्यों के सम्यक् आधार की शिक्षा देती है और वहीं गाँवों रहने वाले लोगों के रहन-सहन, खान-पान, रीति-रिवाओं को समयानुसार उप्रति तथा विकसित करने में सहयोग देती है।
इसका उद्देश्य ग्रामीण द्वारा अपनाये गये उद्योग धन्धों में ऐसा परिष्कार एवं परिमार्जन करना, जिससे उनकी उत्पादनशीलता बढ़ सके और बेचारे निरक्षर उन्नति के मार्ग पर अग्रसर हो सके।
कृषि व्यवसाय में लगे प्रौढ़ो की संख्या भारत जैसे देश में रहना स्वाभाविक एवं अपरिहार्य है। कृषकों द्वारा प्रयोग किये जाने वाले उन्नतशील बीज, संकर बीज, सिंचाई के आधुनिकतम संसाधनों का प्रयोग करने सम्बन्धी उपाय तथा कीटनाशक औषधियों के सही प्रयोग एवं पशु पालन सम्बन्धी उपायों की पूरी जानकारी देना आदि।
इतना ही नहीं, इसका उद्देश्य यह भी है कि वे अपने समाज के प्रचलित कुप्रथाओं में युग के अनुसार परिवर्तन ला सकें। इस प्रकार अपने जीवन के प्रत्येक पहलू का विकास गत्यात्मक दृष्टिकोण अपनाते हुए जीवन के हर क्षेत्र को गतिशील बना सकें।
प्रसिद्ध विचारक के.जी. सैयदेन ने तो यहाँ तक कहा है कि-“प्रौढ़ शिक्षा का उद्देश्य विभिन्न राष्ट्रों के सभी स्त्री-पुरुषों को परस्पर मिलाकर एक मैत्रीभाव उत्पन्न करना है।” कहने का आशय यह है कि इसकी आवश्यकता जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में जागरुकता लाने की है, प्रौढ़ों को कार्यात्मक दृष्टि से कुशल बनाने की है तथा आज के युग के अनुसार प्रगतिशील बनाने की है। संक्षेप में, प्रौढ़ शिक्षा के निम्नांकित उद्देश्य हैं
- साक्षरता को प्रोत्साहन देना।
- व्यावसायिक कुशलता में प्रवीण बनाना।।
- प्रौढ़ों को व्यापक कार्यात्मकता की शिक्षा देना।
- प्रौढ़ों में नवीन परिवर्तन की चेतना जाग्रत करना।
- प्रौढ़ो में नागरिकता के आवश्यक गुणों का विकास करना।
- प्रौढ़ों में समाज की संस्कृति के प्रति अनुराग भाव विकसित करने पर बल देना।
- प्रौढ़ों में सामाजिक चेतना का विकास करना।
- उनमें श्रेष्ठ मानवीय मूल्यों का विकास करना ।
- पारिवारिक जीवन में गुणात्मक सुधार लाना।
- पारिवारिक समस्याओं का निदान करने के लिए प्रौढ़ों में युक्तिसंगत कौशलों का विकास करना।
- उनमें सामाजिक बुराइयों के प्रति संवेदनशीलता जाग्रत करना।
- उन्हें पर्यावरण की समस्याओं के प्रति सतर्क या सचेष्ट करना।
- उन्हें जनसंख्या की समस्याओं के प्रति जागरुक बनाना एवं नियंत्रण सम्बन्धी उपाय बताना।
- प्रौढ़ो को स्वस्थ एवं अच्छे रहने के लिए सजग करना।
- उन्हें अपने देश के विकास के प्रति तथा राष्ट्रीय लक्ष्यों के प्रति जागरूक बनाना।।
- उनमें आशा एवं आत्म-निर्भरता एवं आत्मविश्वास की भावना को जाग्रत करना।
- प्रौढ़ो में वैज्ञानिक दृष्टिकोण के विकास को अपनाने पर बल देना।
- महिलाओं एवं कमजारे वर्ग का उत्थान करना।
- राष्ट्रीय संसाधनों की सुरक्षा एवं उनकी संवृद्धि के प्रति उन्हें सजग करना एवं इसकी रक्षा के लिए उपाय बताना।
- समाज सेवा और समाज हित के भावों का प्रौढ़ों में विकास करना।
- प्रौढ़ों को राष्ट्रीय एवं सामाजिक विकास की समस्याओं से अवगत कराना।
इन बिन्दुओं का अध्ययन कर हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि प्रौढ़ शिक्षा के उद्देश्यों को निर्धारित करने से भारत जैसे देश में विकास की गति का संचार प्रारम्भ करने में हम समर्थ हो सकते हैं।
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मोटे तौर पर यह साक्षरता (Litracy) कार्यात्मक साक्षरता (Functionality) तथा जागरूकता (Awareness) जैसे गुणों के विकास पर बल देती है। वस्तुतः इसका युगीन लक्ष्य तो यह है कि हम अपने भारतीय समाज की आधारभूत शिक्षा समुन्नत करें और उनमें यह प्रेरणा प्रदान करें कि वे अपने अन्दर निम्नांकित भाव समष्टि को समाहित करें
“भारत में समानता का अब नवयुग आया हैं
छल प्रपंच से पूर्ण मुक्ति का युग आया है।
कृषि का पूजन, उद्योगों का वन्दन करेंगे।
मात्र उदरपूर्ति की भर्त्सना करेंगे ॥
ऊसर भू को सींच सींच कर हरी करेंगे।
दलितों की सेवा करने में नहीं थकेंगे।
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