भारत में विविधता – ‘भारतीय समाज की विविधताओं का सर्वप्रमुख कारण स्वयं भारतीय समाज की संरचना के अन्दर विद्यमान दशाएँ हैं। बहुत प्राचीन काल से ही भारत में विभिन्न धर्मों, संस्कृतियों तथा प्रजातीय समूहाँ का समावेश होता रहा। सामाजिक आधार पर यहाँ एक ऐसी सामाजिक संरचना विकसित नहीं हो सकी जिसमें ऐसे सभी समूहों के बीच एकीकरण हो सके। बहुसंख्यक हिन्दू धर्म के लोग भी विभिन्न जातियों, गोत्रों भाषायी समूहों तथा सम्प्रदायों में घंटे रहने के कारण अपने आपको एकीकृत समूह के रूप में विकसित नहीं कर सके। यहाँ की सामाजिक संरचना से सम्बन्धि असमानताएँ विभिन्न समूहों के बीच पारस्परिक अविश्वास और तनावों को बढ़ाती रहीं। वर्तमान समय में सामाजिक संरचना में होने वाले परिवर्तनों के फलस्वरूप बेरोजगारी तथा युवा सक्रियता में वृद्धि हुई जिसके फलस्वरूप समाज की विविधताओं में और अधिक वृद्धि होने लगी।
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परिस्थितिकीय कारणों में सबसे प्रमुख कारण ग्रामीण और नगरीय जीवन को असमानताएँ हैं। ग्रामीण चाहे किसी भी क्षेत्र, धर्म अथवा जाति के हो, उन्हें अपने विकास के उतने अवसर नहीं मिलते जितने नगरवासियों को प्राप्त होते हैं। भारत मे जनसंख्यात्मक विभेदों में भी इसीलिए वृद्धि हुई कि जनसंख्या वृद्धि पर प्रभावपूर्ण रोक लगाने के लिए कोई दीर्घकालीन नीति लागू नहीं की जा सक
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