भारत में विधि निर्माण प्रक्रिया का वर्णन कीजिए।

भारत में विधि निर्माण प्रक्रिया – भारतीय संसद का सबसे महत्वपूर्ण कार्य देश के लिए विधि निर्माण करना है। इसको संघ सूची, समवर्ती सूची तथा संकटकाल में राज्य सूची विषयों पर भी विधि निर्माण करने के अधिकार प्राप्त हैं। संविधान में विधि निर्माण की दो प्रक्रियाएं वर्णित हैं-

  1. सामान्य प्रक्रिया, जो वित्तीय बिल के अतिरिक्त सब विधेयकों पर लागू होता है।
  2. विशेष प्रक्रिया, जो वित्तीय सम्बन्धी विधेयकों पर लागू होती है।

सामान्य या साधारण विधेयकों को पारित करने की प्रक्रिया (Procedure of passing Ordinary Bills)

साधारण विधेयक किसी भी सदन में प्रस्तुत किये जा सकते हैं। ये विधेयक मंत्रियों द्वारा भी सदन में प्रस्तुत किये जा सकते हैं तथा संसद के निजी सदस्यों द्वारा भी। जिन विधेयकों को मन्त्रि-परिषद् की ओर से पेश किया जाता है, उनके लिए पहले नोटिस देने की आवश्यकता नहीं होती। ये सीधे सरकारी गजट में पेश कर दिये जाते हैं पर यदि कोई सदस्य विधेयक पेश करना चाहे तो उसे एक माह का नोटिस देना पड़ता है। इस नोटिस के साथ विधेयक की एक कॉपी और विधेयक के उद्देश्यों का भी विवरण होना चाहिए। किसी भी विधेयक को पास होने के लिए निम्नलिखित अवस्थाओं से होकर गुजरना पड़ता है-

(1) प्रथम वाचन (First Reading)

सदन का अध्यक्ष विधेयक को सदन में प्रस्तुत करने के लिए एक तिथि निर्धारित कर देता है। निश्चित तिथि को प्रस्तावक अध्यक्ष की अनुमति लेकर विधेयक को सदन के सम्मुख पड़ता है। यह प्रथम वाचन कहलाता है।

(2) द्वितीय वाचन (Second Reading)

प्रथम वाचन के पश्चात् निश्चित तिथि को विधेयक का द्वितीय वाचन होता है। इस वाचन में प्रस्तुतकर्ता यह निश्चित करता है कि कि प्रवर समिति को विचारार्थ सौंप दिया जाये या उसे जनमत जानने के लिए प्रसारित किया तत्काल ही सदन में उस पर विचार किया जाये।

(3) समिति अवस्था (Commitee Stage)

यदि सदन विधेयक को प्रवर समिति को सौंप देता है, तो प्रवर समिति विधयेक पर विचार करती है। इस समिति में विधेयक से सम्बन्धित मन्त्री अवश्य होता है। प्रवर समिति विधेयक की प्रत्येक धारा पर पूर्ण रूप से विचार करती है।

(4) रिपोर्ट अवस्था (Report Stage)

प्रवर समिति की रिपोर्ट को गजट में छाप दिया जाता है। प्रवर समिति की रिपोर्ट आ जाने पर विधेयक का प्रस्तुतकर्ता इनमें से एक प्रस्ताव सदन के सम्मुख पेश करता है-

  • समिति की रिपोर्ट को ध्यान में रखते हुए अब विधेयक पर सदन में विचार किया जाये।
  • विधेयक को पुनः प्रवर समिति के सम्मुख विचारार्थ भेज दिया जाये।
  • विधेयक को जनमत जानने के लिये पुनः प्रसारित किया जाये।

यदि प्रवर समिति द्वारा प्रस्तुत विधेयक को सदन विचारार्थ स्वीकार कर लेता है तो विधेयक की एक-एक धारा और खण्ड पर सदन में विचार विनिमय होता है। सदन में उत्तेजनात्मक बहस इसी समय होती है। प्रत्येक संशोधन पर बहस होती है, यदि संशोधन बहुमत द्वारा स्वीकार कर लिये जाते हैं, तो वे विधेयक का अंग बन जाते हैं।

(5) तृतीय वाचन (Third Reading)

यह विधेयक की सदन में अन्तिम अवस्था होती है। तृतीय वाचन में एक बार और सदन को यह अवसर मिलता है कि वह विधेयक के बारे में चर्चा कर सके। यह वाचन औपचारिक होता है। केवल विधेयक की भाषा और शब्दावली में सुधार के लिए कुछ संशोधन रखे जा सकते हैं। अन्त में विधेयक पर मतदान होता है। यदि विधेयक के पक्ष में बहुमत होता है तो विधेयक उस सदन में पारित समझा जाता है।

(6) विधेयक दूसरे सदन में (Bills in the Second Chamber)

तृतीय वाचन के पश्चात् विधेयक दूसरे सदन में भेज दिया जाता है। दूसरे सदन में पहले सदन की प्रक्रियाओं को दोहराया जाता है। दूसरे सदन द्वारा भी यदि विधेयक उसी रूप में पारित हो जाता है जिस रूप में प्रथम सदन ने पारित किया था तो वह राष्ट्रपति के पास स्वीकृति के लिये भेज दिया जाता है, परन्तु यदि दूसरा सदन विधेयक को उसी रूप में स्वीकार न करे अथवा संशोधनों सहित पहले वाले सदन को वापस भेज देता है तो उस सदन में विधेयक के संशोधनों पर पुनः विचार होता है। परन्तु यदि दूसरा सदन विधेयक में ऐसे संशोधन प्रस्तुत करता है कि जिनसे पहला सदन सहमत नहीं है अथवा दुसरा सदन विधेयक को 6 माह तक पारित नहीं करता तो दोनों सदनों में गतिरोध उत्पन्न हो जाता है। ऐसी स्थिति में राष्ट्रपति निश्चित तिथि को दोनों सदनों का संयुक्त अधिवेशन बुलाता है। इस अधिवेशन में बहुमत से निर्णय लिया जाता है।

(7) राष्ट्रपति की स्वीकृति (Assent of the President)

दोनों सदनों द्वारा पारित विधेयक राष्ट्रपति की स्वीकृति के लिये भेजा जाता है। राष्ट्रपति की स्वीकृति मिलने पर विधेयक कानून का रूप धारण करता है और सरकारी गजट में प्रकाशित कर दिया जाता है। राष्ट्रपति को अधिकार है कि यह विधेयक को पुनर्विचार के लिये संसद को लौटा दे, यदि संसद दोबारा विधेयक को पारित कर देती है तो राष्ट्रपति को इस पर हस्ताक्षर करने पड़ते हैं।

वित्तीय विधेयकों की प्रक्रिया (Procedure relating to the Financial Bills)

साधारणता आय-व्यय से सम्बन्धित सभी विधेयक, वित्तीय विधेयक कहे जा सकते हैं परन्तु संविधान में इस शब्द का प्रयोग पारिभाषिक अर्थ में किया गया है। अनुच्छेद 110 में वित्त विधेयक की परिभाषा की गयी है। इसके अनुसार यदि किसी विधेयक में निम्नलिखित विषयों में से सब अथवा किसी से सम्बन्ध रखने वाले उपबन्ध हों, तो वह वित्त विधेयक कहलायेगा-

  1. किसी कर का आरोपण, उत्पादन परिहार, बदलना या विनियमन ।
  2. सरकार द्वारा धन उधार लेने से सम्बन्धित विनियमन।
  3. भारत की संचित निधि अथवा आकस्मिक निधि की अभिरक्षा, ऐसी किसी निधि में धन डालना अथवा उसमें से निकालना।
  4. भारत की संचित निधि में से धन का विनियोग।
  5. किसी व्यय को भारत की संचित निधि पर भारित व्यय घोषित करना अथवा ऐसे किसी व्यय की राशि को बढ़ाना।
  6. भारत की संचित निधि के या भारत के लोक लेखे के माध्यम से धन प्राप्त करना, ऐसे धन की अभिरक्षा या निकासी करना या ऐसी किसी व्यय की राशि को बढ़ाना।
  7. उपर्युक्त विषयों में से किसी का आनुषंगिक कोई विषय ।

‘प्रतिनिधि सरकार’ पर मिला के विचारों का वर्णन कीजिए।

कोई विधेयक उपर्युक्त उपबन्धों के अधीन आता है अथवा नहीं, इस बात का निर्णय लोकसभा का अध्यक्ष करता है तथा इस सम्बन्ध में उसका निर्णय अन्तिम होता है। ऐसे विधेयक या प्रस्ताव राष्ट्रपति की सिफारिश के बिना प्रस्तावित नहीं किये जा सकते और न ही राज्यसभा में प्रस्तावित किये जा सकते हैं। ऐसे विधेयक जब लोकसभा में पारित हो जाते हैं, तो वे राज्यसभा के सामने उपस्थित किये जाते हैं। राज्यसभा या लोकसभा द्वारा स्वीकृत विधेयक को स्वीकार कर सकती है। या 14 दिन के भीतर विधेयक को अपनी सिफारिशों सहित लोकसभा को वापस भेज देती है। यदि लोकसभा राज्यसभा की सिफारिश स्वीकार न करे, तो विधेयक उस रूप में दोनों सदनों से पारित समझा जाता है, जिसमें वह लोकसभा द्वारा पारित हुआ था। यदि 14 दिन के भीतर राज्यसभा विधेयक लोकसभा को न लौटाये, तो इस अवधि की समाप्ति पर विधेयक दोनों सदनों में पारित समझा जाता है।

    Leave a Comment

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    Scroll to Top