यूनीसेफ (UNICEF) द्वारा प्रस्तावित कारगर युक्तियाँ
‘भारत में ‘स्त्री-शिक्षा’ को उचित दिशा देने तथा उसका विकास करने की दृष्टि से यूनिसेफ (UNICEF) द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट (1992) ‘लड़कियों की शिक्षा को कैसे बढ़ावा दें’? (How to Promote Girls Education) में उल्लेखित नौ कारगर युक्तियों का प्रयोग किया जा सकता है, जिन्होंने विश्व भर के विकासशील देशों में अनुकूल परिणाम दिए हैं। इन युक्तियों की संक्षिप्त सूची निम्न प्रकार हिं
प्रस्तावित उपाय
(1) स्कूलों को समुदाय के निकट लाएँ
जब स्कूल समुदाय के पास होते हैं तो लड़कियों की सुरक्षा और सामाजिक प्रतिष्ठा को कम खतरा होता है, बच्चे दूरी को आसानी से तय कर सकते हैं। माँ-बाप अपनी बेटियों को निकट के स्कूल में भेजने में कतराते नहीं। निश्चय ही बालिकाओं का पंजीकरण बढ़ सकता है।
(2) उपयुक्त सांस्कृतिक सुविधाएँ प्रदान करें
सांस्कृतिक अपेक्षाओं की पूर्ति होनी चाहिए। जिन समुदायों में माता-पिता को अपनी बेटी की सुरक्षा, लज्जा और लड़कों से मिलने जुलने का डर रहता है, वहाँ इस बात पर ध्यान देना आवश्यक है। कुछ समुदाय तो बालक बालिकाओं का अलग-अलग होना आवश्यक मानते हैं। यदि सम्भव नहीं तो एक ही स्कूल मे अलग-अलग सुविधाओं की अपेक्षा करते हैं, विकासशील देशों में मेज कुर्सी से ज्यादा अभिभावक को अलग सुविधाओं व बन्द शौचालयों की अधिक चिन्ता रहती है। यदि इन सुविधाओं पर ध्यान दिया जाय तो नामांकन बढ़ सकता है।
(3) बालिकाओं के लिए अलग स्कूल खोलें
उन देशों में जहाँ अभी भी लड़के लड़की में भेद किया जाता है वहाँ लड़कियों के लिए शिक्षा प्राप्त करने का एक ही तरीका है कि. लड़कियों के स्कूल अलग हों।
शिक्षिकाओं की नियुक्ति को बढ़ावा दें
कक्षा में शिक्षिका का होना कई तरह से लड़कियों की शिक्षा में लाभ पहुँचाता है। शिक्षिकाओं की उपस्थिति से माता-पिता को अपनी बेटियों की नैतिकता और सुरक्षा की चिन्ता कम होती है और स्कूलों में लड़कियाँ अधिक संख्या में उपस्थित होती है।
(1) सम्भावित शिक्षकों की संख्या बढ़ाएँ-
चूँकि बहुत कम स्त्रियों पढ़ाने की योग्यता रखती हैं इसलिए शिक्षकों की संख्या बढ़ाने के लिए उन्हीं योग्यता प्राप्त स्त्रियों में से चुनाव करना होगा। स्थान विशेष से विशेषकर देहाती क्षेत्रों में वहीं की स्त्रियों को शिक्षिका के रूप में भर्ती करना होगा जो स्त्रियों को पढ़ा सकती हैं, उन्हें उम्र की छूट दे कर शिक्षिकाओं की संख्या को बढ़ाया जा सकता है।
(2) शिक्षिकाओं के लिए प्रलोभन आकर्षण की व्यवस्था
बाहर आने जाने पर सांस्कृतिक बन्धन, आवास की कमी या फिर पारिवारिक जिम्मेदारियों के कारण जो स्त्रियाँ शिक्षिका बनने का विचार नहीं रखती हैं उनके लिए प्रलोभन आकर्षण के कार्यक्रम शुरू किए जा सकते हैं। ये आकर्षण आर्थिक हो सकते हैं। शिक्षकों को निःशुल्क प्रशिक्षण या वजीफे दिए जाएँ। शिक्षिकाओं के लिए विशेष आवास की व्यवस्था की जाए। उनके छोटे बच्चों के लिए • ‘क्रेच’ खोले जा सकते हैं।
(3) प्रशिक्षण स्थानीय हो-
देहाती क्षेत्रों में समुदायों के निकट ही प्रशिक्षण केन्द्र खोले जाएं, इससे स्त्रियों को पढ़ाने के कार्य के प्रति आकर्षित किया जा सकता है।
3. माता-पिता के खर्चों को घटाइए
अधिकांश माता-पिता लड़कियों की शिक्षा को कम महत्व देते हैं तथा उनकी स्कूली शिक्षा का खर्च उठाने में अपने आपको असमर्थ पाते हैं। अतः माता-पिता को ऐसे आकर्षण दिए जायें कि वे अपनी बेटियों को स्कूल भेजें।
(1) छात्रवृत्तियों की व्यवस्था
प्रत्यक्ष, अप्रत्यक्ष और आवासीय खर्चों को कम करने का सबसे प्रभावशाली साधन हैं। छात्रवृत्ति से ट्यूशन, पाठ्य-पुस्तकों, यूनीफार्म और आवास की व्यवस्था के खर्च निकल आते है।
(2) यूनीफार्म और पाठ्य
पुस्तकों की व्यवस्था गरीब या अभावग्रस्त परिवारों में माँ-बाप बच्चों के लिए पाठ्य-पुस्तकें यूनीफार्म, जूते और दूसरी बुनियादी वस्तुएँ नहीं खरीद पाते। यदि इनकी व्यवस्था लड़कियों की शिक्षा के लिए कर दी जाय तो अभिभावक उन्हें अवश्य स्कूल भेजेंगे।
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(3) लड़कियों के श्रम के आवसरिक खर्चों की व्यवस्था की जाए-
विकासशील देशों में लड़कियों का घरेलू कामकाज में योगदान अधिक रहता है। लड़कियों घर के काम तथा खतों में काम करके अपनी माताओं को सहायता देती है। परिवारों के अस्तित्व के लिए भी लड़कियों को ही प्रायः मजदूरी करनी पड़ती है।
लड़कियों की स्कूली शिक्षा के आवसरिक खर्चों को कम करने के लिए शिक्षा कार्यक्रम ऐसे साधन प्रदान करें ताकि लड़कियों को यह श्रम करने की जरूरत न पड़े।
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