भारत में शिक्षा में संचार तकनीकी का उपयोग अभी प्रारम्भिक अवस्था में है— शिक्षा में संचार तकनीकी के अनुप्रयोग के लिए सर्वप्रथम 1986 में राष्ट्रीय शिक्षा नीति में पहल की गई, जिसमें लिखा गया है। आधुनिक संचार तकनीकी से यह सम्भव हो गया है कि पहले की दशाब्दियों में शिक्षा को जिन अवस्थाओं और क्रमों से गुजरना पड़ता था, उनमें कइयों को लांघकर आगे बढ़ा जाए। इस तकनीकी से देश और काल के बंधनों पर काबू पा सकना सम्भव हो गया है।” उपयुक्त शिक्षा नीति के क्रियान्वयन शिक्षा में संचार तकनीकी का अनुप्रयोग में देश में निम्नलिखित प्रयास किये गये –
- सन् 1991 में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने सूचना एवं पुस्तकालय नेटवर्क (Information and Library Network) (INFLIBNET) नाम की योजना सन् 1991 में प्रारम्भ की थी, जिसमें विश्वविद्यालयों के समकक्ष उच्च शिक्षा संस्थान राष्ट्रीय महत्व के संस्थान विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के सूचना केन्द्र, अनुसंधान और शोध संस्थान आदि को नेटवर्क के द्वारा आपस में जोड़ने का प्रयास किया गया। सूचना एवं पुस्तकालय नेटवर्क ने कम्प्यूटर और संचार तकनीकी का प्रयोग करके एक नेटवर्क तैयार किया है, जिसमें उपरोक्त, संस्थाओं से सम्बन्धित सूचनाएँ या आँकड़े संग्रहीत किए गए हैं तथा अपने संसाधनों का प्रयोग कर पूरे शैक्षिक जगत का एक केन्द्रीय डेटाबेस तैयार किया है।
- राष्ट्रीय शैक्षिक प्रशिक्षण एवं अनुसन्धान परिषद् नई दिल्ली ने विद्यालयी पाठ्यक्रम की रूपरेखा (School Curriculum Frame Work) तैयार की है, जिसमें संचार तकनीकी का पाठ्यक्रम में शामिल करने का प्रस्ताव दिया।
- राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद (National Council of Teacher Education NCTE) ने संचार तकनीकी से सम्बन्धित पाठ्यक्रम के लिए विभिन्न काम्पैक्ट डिस्क (CDs) का विकसित किया है। सम्पूर्ण भारत में शिक्षक प्रशिक्षकों को. बी.एड. तथा एम. एड. स्तर पर संचार तकनीकी साक्षरता प्रदान करने के लिए शिविरों का आयोजन किया जा रहा है शिक्षक शिक्षा संस्थाओं को अपने पाठ्यक्रम में संचार तकनीकी को आवश्यक विषय के रूप में महत्व देने पर बल दिया गया है।
- गोवा विश्वविद्यालय में सन् 2001 से दूरदर्शन सेटलाइट नेटवर्क, कम्प्यूटर नेटवर्क, ई-मेल, फैक्स तथा STD के माध्यम से प्रशासन, प्रबन्ध शिक्षण और मूल्यांकन के लिए अपने सम्बन्धित 25 महाविद्यालयों के साथ प्रयोगात्मक रूप में इंट्रानेट स्थापित किया है। साथ ही इलाहाबाद विश्वविद्यालय ने भी अलग से इसका विभाग खोल रखा है।
- इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय (IGNOU) अपने विभिन्न सार्टिफिकेट, डिप्लोमा और डिग्री कार्यक्रमों कार्यक्रमों को C- बैंड के माध्यम से टू-वे कम्यूनिकेशन के द्वारा सहायता प्रदान कर रहा है जो काफी प्रचलित हो रहा है।
- एम. एस. विश्वविद्यालय, बड़ौदा तथा ग्वालियर स्थित लक्ष्मीबाई राष्ट्रीय शारीरिक शिक्षा संस्थान अपने विभिन्न संकायों और विभागों को इंट्रानेट एव इंटरनेट सुविधाएँ उपलब्ध करा रहा है।
- देवी अहिल्या विश्वविद्यालय, इंदौर ग्रामीणों के लिए कम्प्यूटर साक्षरता योजना संचालित कर रहा है। इसके अतिरिक्त बैचलर ऑफ कम्प्यूटर एजूकेशन (B.C.ED) तथा मास्टर ऑफ कम्प्यूटर एजूकेशन (M.C. Ed.) कोर्स भी चलाए जा रहे हैं।
- रूहेलखण्ड विश्वविद्यालय बरेली में इन्स्टीट्यूट ऑफ एडवान्स्ड स्टडीज इन एजूकेशन (Institute of Advanced Studies in Education) में एक अच्छा विकसित वीडियो स्टूडियो, • बहु-माध्यम प्रयोगशाला तथा कम्प्यूटर प्रयोगशाला स्थापित की गई जो तथ्यों तथा सूचनाओं की प्राप्ति का एक महत्वपूर्ण स्रोत है।
- केन्द्र सरकार विद्यालयों एवं शिक्षण प्रशिक्षण संस्थाओं में कम्यूटर साक्षरता एवं | सूचना एवं संचार तकनीकी को समेकित रूप में सम्मिलित करने एवं उसका सार्वभौमीकरण करने पर विशेष ध्यान दे रही है।
- अहमदाबाद के स्पेस ऐप्लीकेशन केन्द्र ने 300 विद्यालयों में एक अध्ययन किया जिसके द्वारा इस कार्यक्रम में केन्द्रों की सहायता से सूचना एवं संचार तकनीकी कार्यक्रम छात्रों एवं शिक्षकों में अधिक उत्सुकता उत्पन्न करता है तथा उन्हें उत्साहित करने का दायित्व दिया गया है।
भारतीय शिक्षा आयोग पर ( हन्टर आयोग) का क्या प्रभाव पड़ा? व्याख्या कीजिए।
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