भारत में प्राथमिक शिक्षा के क्षेत्र में अपव्यय व अवरोधन की समस्या कोई नवीन समस्या नहीं है। सम्भवततः यह समस्या अनादिकाल से शिक्षा व्यवस्था के प्रारम्भ होने के साथ ही निरन्तर चली आ रही है। सन् 1929 में साइमन आयोग की शैक्षिक समिति हटांग समिति ने प्राथमिक शिक्षा के क्षेत्र में अपव्यय व अवरोधन की समस्या की तरफ ध्यान दिया तथा इससे होनेवाली क्षति का अनुमान लगाया। उन्होंने देखा कि प्राथमिक स्कूलों की एक आगामी कक्षा से दूसरे कक्षा में पहुँचने वाले छात्रों की संख्या कम होती जाती है। इस समिति ने सन् 1922-23 से लेकर सन् 1926-27 तक के आँकड़ों का विश्लेषण करने के आधार पर कहा कि सन् 1922-23 में प्राथमिक स्कूलों की कक्षा एक में प्रवेश लेने वाले प्रत्येक सौ छात्रों में से केवल 18 छात्र ही सन् 1926-27 में कक्षा पाँच उत्तीर्ण कर पाये। इसका अर्थ है कि शेष 82 छात्र या तो विभिन्न कक्षाओं के बीच स्कूल छोड़ गये अथवा विभिन्न कक्षाओं में अनुत्तीर्ण हो गये। हटांग समिति ने स्कूल छोड़ कर जाने वाले छात्रों की स्थिति को अपव्यय कहा तथा अनुतीर्ण हो जानेवाले छात्रों की स्थिति को अवरोधन या स्थिरता कहा अपव्यय व अवरोधन के कारण राष्ट्र का एक विशाल मानव श्रम बेकार जाता है। भारतवर्ष में आज भी प्राथमिक शिक्षा में अपव्यय व अवरोधन की मात्रा काफी अधिक है। भारत जैसे राष्ट्र के लिए, जो अनिवार्य व निःशुल्क प्राथमिक शिक्षा का सर्वव्यापीकरण करना चाह रहा है, यह स्थिति अत्यन्त चिन्ताजनक है।”
शिक्षा में अपव्यय का साधारण भाषा में अर्थ शिक्षा से वांछित अथवा अपेक्षित लाभ व प्रतिफल की प्राप्ति का न होना है। यदि बालक की शिक्षा पर व्यय किये गये धन तथा मानव श्रम के बावजूद बालक शिक्षा से लाभ नहीं उठा पाता है तो बालक की शिक्षा पर व्यय किये गये धन, समय व मानव श्रम को अपव्यय कहेंगे। प्राथमिक शिक्षा अपने आप में एक एकीकृत इकाई है तथा इस पूरी इकाई का ज्ञान प्राप्त करने पर ही बालक अपनी शिक्षा का लाभ उठा सकते हैं। यदि बालक इस इकाई के बीच में ही स्कूल जाना छोड़ देता है तो समय बीतने पर वह शीघ्र ही अर्जित आंशिक ज्ञान का विस्मरण कर देता है तथा कुछ समय उपरान्त वह अनपढ़ के समान हो जाता है। स्पष्ट है कि उस बालक की (अधूरी) शिक्षा पर किया गया व्यय व्यर्थ ही गया। हर्टोग समिति (1929) ने इसीलिए अपव्यय को परिभाषित करते हुए कहा कि “अपव्यय से हमारा अभिप्राय प्राथमिक शिक्षा को पूरी किये बिना ही बालकों को प्राथमिक स्कूल से हटा लेना है।” समिति का विचार था कि प्राथमिक शिक्षा से कोई लाभ नहीं हो सकता है यदि यह छात्रों को साक्षर नहीं बनाती है तथा साधारणतः बिना। प्राथमिक शिक्षा पूरी किये कोई बालक साक्षर नहीं बन सकता है। प्राथमिक शिक्षा पूरी किये बिना स्कूल छोड़ देने वाले बालकों से पुनः निरक्षरों में बदलने की प्रवृत्ति होती है, अतः उनकी शिक्षा पर व्यय किया गया धन व मानव श्रम व्यर्थ हो जाता है। परन्तु यदि भारतीय संविधान की धारा 21 क में स्वीकृत अनिवार्य शिक्षा की आयु सीमा (6 से 14 वर्ष) को स्वीकार किया जाये तो कह सकते हैं कि 14 वर्ष की आयु से पूर्व बालक का विद्यालय से हट जाना ही शैक्षिक अपव्यय है।
अपव्यय तथा अवरोधन की समस्या की भयंकरता का अनुमान इस तथ्य से लग सकता है कि अभी भी कक्षा में प्रवेश लेने वाले प्रत्येक 100 छात्रों में से 40 छात्र, लड़कों में से 35 लड़के जबकि लड़कियों में 55 लड़कियाँ कक्षा 5 उत्तीर्ण करने से पहले ही पढ़ाई छोड़ देती हैं। स्पष्ट है कि लड़कियों में अपव्यय की मात्रा लड़कों की अपेक्षा अधिक है। कक्षा 6 से 8 के बीच पढ़ाई छोड़ देने वाले छात्रों का प्रतिशत लगभग 25%, लड़कों में 22% तथा लड़कियों में 28% है। स्पष्ट है कि कक्षा 6 में आने के बाद भी लगभग 25% छात्र-छात्राएँ कक्षा 8 उत्तीर्ण करने के पूर्व ही पढ़ाई छोड़ देते हैं। इस प्रकार से कक्षा 8 उत्तीर्ण करने से पहले पढ़ाई छोड़ देनेवाले छात्र-छात्राओं का प्रतिशत 35% हो जाता है जो लड़कों के लिए 57% तथा लड़कियों के लिए 78% है। स्पष्टतः काफी बड़ी संख्या में छात्र-छात्रा अपनी प्राथमिक शिक्षा को अधूरा छोड़ देते हैं। यह भी स्पष्ट है कि लड़कों की तुलना में लड़कियों में अपव्यय की मात्रा अधिक है एवं निम्न प्राथमिक स्तर पर अपव्यय की मात्रा बहुत अधिक है जब कि उच्च प्राथमिक स्तर पर अपेक्षाकृत काफी कम है। प्राथमिक शिक्षा में अपव्यय की इस विशाल मात्रा के लिए अनेक शैक्षिक, आर्थिक, सामाजिक व स्वास्थ्य सम्बन्धी कारण तथा खराब प्रशासकीय परिस्थितियाँ उत्तरदायी ठहराई जा सकती हैं।
प्राथमिक स्कूलों से सम्बन्धित अनेक शैक्षिक परिस्थितियाँ अपव्यय के लिए प्रत्यक्ष रूप से उत्तरदायी हैं। प्राथमिक स्कूलों में प्रशिक्षित अध्यापकों की कमी, एक अध्यापकीय स्कूलों का होना, स्कूलों में दण्ड व्यवस्था का प्रचलित होना, स्कूल भवन व सहायक शिक्षण सामग्री आदि की कमी होना आदि कुछ ऐसे कारण हैं जिनकी वजह से छात्र अपनी पढ़ाई बीच में छोड़ जाते हैं। अतः यह आवश्यक है कि विद्यालय का वातावरण सरस व आकर्षक बनाया जाये जिससे वे छात्रों को अपनी ओर आकर्षित कर सकें। इसके साथ ही स्कूलों में प्रशिक्षित अध्यापकों को रखा जाये, सहायक शिक्षण सामग्री की उचित व्यवस्था की जाये तथा मनोविज्ञान के सिद्धान्तों के अनुरूप शिक्षा व्यवस्था की जानी चाहिए। परिवार की आर्थिक स्थिति भी शैक्षिक अपव्यय को प्रभावित करती है। निर्धन परिवारों के बच्चों को स्कूल शुल्क, पुस्तकें, गणवेश आदि के लिए आवश्यक धन उपलब्ध नहीं होने के कारण स्कूल छोड़ देने के लिए बाध्य होना पड़ता है। इसके साथ-साथ कुछ माता-पिता न केवल इतने निर्धन होते है कि वे अपने बच्चों को पढ़ा नहीं सकते हैं वरन वे उन्हें रोटी व कपड़ा देने में भी पूरी तरह से असमर्थ होते हैं। अभिभावकों की इस विपन्न परिस्थिति जिनके कारण ऐसे बच्चों को घर की आय में सहायता देने के लिए धनोपार्जन करना होता है, बीच में बालक का पढ़ाई छोड़ देना स्वाभाविक ही है इन आर्थिक कारणों से होने वाले अपव्यय को रोकने के लिए यह आवश्यक है कि निर्धन छात्रों के लिए शिक्षा, भोजन, वस्त्र, पुस्तकें लेखन सामग्री आदि की निःशुल्क व्यवस्था की जाये तथा फसल बोने या काटने के समय स्कूल बन्द रखे जायें। कामकाजी छात्रों के लिए प्रातःकालीन या रात्रिकालीन शिक्षा की व्यवस्था भी की जानी चाहिए।
अनेक सामाजिक व पारिवारिक कारणों से भी शिक्षा में अपव्यय होता है। बाल विवाह, अनुसूचित जाति के प्रति पारम्परिक दृष्टिकोण, सहशिक्षा के प्रति प्रतिकूल दृष्टिकोण, नारी शिक्षा की अवश, अभिभावकों का अशिक्षित होना, बच्चों का घर के कार्यों में माता-पिता को सहयोग देना, बच्चों की शैक्षिक प्रगति के प्रति उपेक्षा तथा समाज में शिक्षा को महत्व नहीं दिया जाना, कुछ ऐसे सामाजिक कारण हैं जो अपव्यय को बढ़ाते हैं। अपव्यय को कम करने के लिए केन्द्र व राज्य सरकारों तथा समाजसेवी संस्थाओं को इस दिशा में विशेष प्रयास करना चाहिए। बाल विवाह निषेध अधिनियम का सख्ती से पालन करना, रूढ़िवादिता व अस्पृश्यता को समाप्त करने के लिए जन आन्दोलन चलाना, अभिभावकों को शिक्षित करने के लिए प्रौढ़ शिक्षा की व्यवस्था करना तथा नारी शिक्षा का विकास करना जैसे कुछ कदम इसमें सहायक सिद्ध हो सकते हैं। बालकों का शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य भी शैक्षिक अपव्यय को बुरी तरह से प्रभावित करता है। लम्बी बीमारी, कुपोषण व अल्पपोषण तथा शारीरिक दुर्बलता के कारण अनेक बालक स्कूल जाना बन्द कर देते हैं। अपरिक भोजन मिलने के कारण भी बालकों के लिए स्कूल में लम्बे समय तक मानसिक व शारीरिक रूप से बैठना कठिन हो जाता है। अपरिपक्व मानसिक विकास भी अनेक छात्रों के स्कूल छोड़ने के कारण होता है। अपव्यय को रोकने के लिए यह वांछनीय प्रतीत होता है कि प्राथमिक स्कूलों का कार्यकाल 4 घण्टे प्रति दिवस से अधिक न हो, प्राथमिक स्कूलों में अल्पाहार की व्यवस्था हो तथा प्राथमिक स्कूलों में बालकों के स्वास्थ्य निरीक्षण की उचित व्यवस्था हो।
स्पष्ट शिक्षा नीति का अभाव प्राथमिक स्कूलों की अवैज्ञानिक ढंग से स्थापना, निरीक्षण कार्य की अप्रभावशीलता, प्राथमिक स्कूलों में आवश्यक सुविधाओं की कमी तथा अप्रशिक्षित अध्यापकों का होना आदि कुछ ऐसे प्रशासकीय कारण हैं जो शैक्षिक अपव्यय के लिए उत्तरदायी हैं। इन सभी कारणों को समाप्त करने के लिए राष्ट्रीय शिक्षा नीति को स्पष्ट बनाने, छात्रों के घर के यथासम्भव निकट स्कूल खोलने, निरीक्षण को प्रभावशाली बनाने, प्राथमिक स्कूलों को आवश्यक साधन उपलब्ध कराने तथा अप्रशिक्षित अध्यापक नियुक्त करने की तत्काल आवश्यकता है।
प्राथमिक कक्षाओं में छात्रों का अनुतीर्ण होना भी एक साधारण बात है। परन्तु शैक्षिक दृष्टि से यह एक गम्भीर समस्या है। किसी छात्र का किसी कक्षा में अनुत्तीर्ण होना, उस छात्र की शैक्षिक प्रगति में अवरोध का कार्य करता है जिसके कारण वह अपनी शैक्षिक यात्रा निर्धारित न्यूनतम समय में पूरी नहीं कर पाता है। परीक्षा में अनुत्तीर्ण होने के कारण बालक को एक ही कक्षा में एक से अधिक वर्षों तक रहना पड़ता है। छात्रों को इस प्रकार से एक ही कक्षा में दो या अधिक वर्षों तक बने रहना ही शैक्षिक अवरोध है, क्योंकि इससे बालकों की स्वाभाविक शैक्षिक गति में विघ्न पड़ता है। हग समति ने अपने प्रतिवेदन में लिखा है कि अवरोध से हमारा तात्पर्य बालक को एक ही कक्षा में एक वर्ष से अधिक रखने से है। अतः प्राथमिक शिक्षा को निर्धारित न्यनतम समय (निम्न प्राथमिक शिक्षा के लिए 5 वर्ष, उच्च प्राथमिक शिक्षा के लिए 3 वर्ष तथा सम्पूर्ण प्राथमिक शिक्षा के लिए 8 (वर्ष) से अधिक समय में पूरी करना ही अवरोधन की प्रक्रिया है। अवरोधन के कारण बालक में आत्महीनता की भावना विकसित हो जाती तथा वे पढ़ाई तक छोड़ देते हैं। हमारे देश की प्राथमिक शिक्षा में विद्यमान अवरोधन की मात्रा एक मोटा-सा अनुमान इस तथ्य से लग सकता है कि कक्षा एक से आठ तक प्रत्येक कक्षा में लगभग 4% से 12% तक छात्र अनुत्तीर्ण होते हैं। छोटी कक्षाओं में अनुत्तीर्ण होने वाले छात्रों का प्रतिशत अधिक होता है जो बड़ी कक्षाओं में उत्तरोत्तर कम होता जाता है। लड़कियाँ प्रायः लड़कों की तुलना में अधिक संख्या में अनुत्तीर्ण होती देखी गई है। ग्रामीण क्षेत्रों में अवरोधन का प्रतिशत शहरी क्षेत्रों की तुलना में लगभग सभी कक्षाओं में अधिक दृष्टिगोचर होता है। अनेक राज्यों में प्राथमिक कक्षाओं में किसी भी छात्र को अनुतीर्ण न करने की व्यवस्था के बावजूद भी अवरोधन की समस्या एक व्यापक समस्या के रूप में सामने आती है।
प्राथमिक कक्षाओं में छात्रों के अनुतीर्ण होने की प्रतिशत संख्या इतनी अधिक होने के लिए अनेक कारण उत्तरदायी हैं। इन कारणों को भी शैक्षिक, आर्थिक, सामाजिक, स्वास्थ्य सम्बन्धी व प्रशासकीय समूहों में बाँटा जा सकता है। अवरोधन के लिए जिम्मेदार शैक्षिक कारकों के अन्तर्गत अनुपयुक्त पाठ्यक्रम, कक्षा के छात्रों की आयु में विषमता होना, उपस्थिति से अनियमितता, अनुपयुक्त शिक्षण विधियाँ, सहायक सामग्री का अभाव, कक्षा में अधिक छात्रों का होना, दोषपूर्ण परीक्षा प्रणाली तथा स्कूल में वर्ष भर प्रवेश का खुला रहना प्रमुख है। अतः प्राथमिक स्तर पर अवरोधन की मात्रा को कम करने के लिए यह महत्वपूर्ण है कि छात्रों के मानसिक विकास के अनुरूप पाठ्यक्रम बनाया जाये, कक्षा में लगभग एक समान आयु के छात्रों को रखा जाये, छात्रों को प्रतिदिन स्कूल जाने के लिए प्रोत्साहित किया जाये, मनोवैज्ञानिक शिक्षण विधियों का प्रयोग किया जाये, आवश्यक सहायक सामग्री उपलब्ध कराई जाये, कक्षा में छात्रों की संख्या उचित हो, मूल्यांकन प्रणाली को लागू किया जाये तथा शैक्षिक वर्ष के प्रारम्भ में ही छात्रों को प्रवेश दिया जाये। निर्धनता के कारण छात्रों के पास घर पर अध्ययन करने के लिए पुस्तकें व अन्य अध्ययन सामग्री का न होना तथा घरेलू कार्यों के कारण पढ़ाई के लिए समय न मिल पाना, दो ऐसे प्रमुख आर्थिक कारण हैं जो बालकों की शैक्षिक प्रगति में बाधा पहुंचाकर अवरोधन को बढ़ाते हैं। इन कारणों को दूर करने के लिए छात्रों को पुस्तकें व अन्य अध्ययन सामग्री मुफ्त दी जानी चाहिए तथा छात्रों के माता-पिता को इस बात के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए कि वे घर पर अपने बच्चों को पढ़ाई के लिए पर्याप्त समय उपलब्ध करायें।
सामाजिक कारणों में अल्पसंख्यक वर्गों एवं जनजाति व अनुसूचित जाति के बच्चों तथा उनकी शिक्षा को हेय दृष्टि से देखा जाना प्रमुख है। इसके अतिरिक्त लड़कियों की शिक्षा को हीन दृष्टि से देखना तथा अभिभावकों का अशिक्षित होना तथा समाज में शिक्षा को महत्व न देना भी अवरोधन के लिए उत्तरदायी प्रमुख कारण है । इस सबके निराकरण के लिए जन आन्दोलन चलाने की आवश्यकता है कि जो समाज के दृष्टिकोण में परिवर्तन ला सके। ग्रामीण क्षेत्रों, वन प्रदेश, पहाड़ी आदि क्षेत्रों से आने वाले छात्रों के घर व स्कूल में अधिक दूरी होने के कारण उनका काफी समय घर से स्कूल आने में निकल जाता है तथा वे काफी थक जाते हैं। जिससे वे स्कूल में अपनी पढ़ाई मनोयोग से नहीं कर पाते हैं तथा उनके अनुत्तीर्ण होने की सम्भावना बढ़ जाती है। अतः प्राथमिक स्कूलों की स्थापना के लिए भौगोलिक स्थान का चयन वैज्ञानिक ढंग से होना चाहिए जिससे बालकों के लिए अपने घर के यथासम्भव पास स्कूल सुविधा उपलब्ध हो सके। राज्य की दोषपूर्ण शिक्षा नीति, उचित निरीक्षण का अभाव तथा परीक्षकों का परम्परागत दृष्टिकोण कि शत प्रतिशत छात्र उत्तीर्ण नहीं हो सकते हैं, जैसे प्रशासनिक कारक भी अवरोधन के लिए उत्तरदायी है। अवरोधन को कम करने के लिए राज्य को अपनी शिक्षा नीति में सुधार करना होगा तथा निरीक्षण कार्य को प्रभावशाली बनाना होगा जिससे प्राथमिक स्कूलों में शिक्षा का स्तर उन्नत हो सके। इसके साथ-साथ परीक्षकों के परम्परागत दृष्टिकोण में भी परिवर्तन लाना होगा। इसके लिए प्राथमिक शिक्षा के पाठ्यक्रम व मूल्यांकन में एकीकृत विचारधारा लागू की जा सकती है।
कोठारी आयोग (1964-66) ने प्रारम्भिक शिक्षा में अपव्यय व अवरोधन की समस्या का अध्ययन किया था। आयोग ने कक्षा में पंचमेल छात्रों का होना, स्कूलों में वर्षभर प्रवेश खुला रहना, उपस्थित में अनियमितता, बालकों के पास व स्कूलों में पर्याप्त शैक्षिक साधनों का अभाव, कक्षा में छात्रों की संख्या अधिक होना, बालकों के स्कूली जीवन की शुरुआत सुखद नहीं होना, प्रशिक्षित अध्यापको की कमी तथा दूषित परीक्षा प्रणाली को अपव्यय व अवरोधन के लिए उत्तरदायी ठहराते भारत हुए कहा कि अपव्यय व अवरोधन सिरदर्द व बुखार की तरह से अपने आप में कोई समस्या नहीं हैं वरन् ये शिक्षा प्रणाली के दोषों के लक्षण हैं।
- Top 10 Best Web Hosting Companies in India 2023
- InCar (2023) Hindi Movie Download Free 480p, 720p, 1080p, 4K
- Selfie Full Movie Free Download 480p, 720p, 1080p, 4K
- Bhediya Movie Download FilmyZilla 720p, 480p Watch Free
- Pathan Movie Download [4K, HD, 1080p 480p, 720p]
- Badhaai Do Movie Download Filmyzilla 480p, 720p, 1080, 4K HD, 300 MB Telegram Link
- 7Movierulz 2023 HD Movies Download & Watch Bollywood, Telugu, Hollywood, Kannada Movies Free Watch
- नारी और फैशन पर संक्षिप्त निबन्ध लिखिए।
- बेबीलोन के प्रारम्भिक समाज को समझाइये |