भारत में परिवर्तन एवं रूपान्तरण
भारत में परिवर्तन एवं रूपान्तरण के प्रमुख उपागम समाजशास्त्रीयों ने इस प्रकार बताये हैं-
(1) एकीकृत उपागमः-
भारत में सामाजिक परिवर्तन तथा रूपान्तरण के अध्ययन हेतु ‘एकीकृत उपागम’ का सुझाव डॉ. योगेन्द्र सिंह ने दिया है। उनकी मान्यता है कि भारत में सामाजिक परिवर्तन अग्रलिखित रूपों में देखा जाना चाहिये-
- यहाँ यह पता लगाया जाना चाहिये कि सांस्कृतिक संरचना में क्या परिवर्तन आये अर्थात लघु परम्परा तथा दीर्घ परम्परा किस प्रकार परिवर्तित हुये हैं
- सामाजिक संरचना में होने वाले परिवर्तनों का अध्ययन किया जाना चाहिये अर्थात् यह पता लगाया जाना चाहिये कि सूक्ष्म संरचना एवं वृहद संरचना में कौन-कौन से परिवर्तन हुये हैं।
- सांस्कृतिक संरचना के स्तर पर विजातीय परिवर्तनों का पता लगाना जाना चाहिये। इसके लिये उन्होंने इस्लामीकरण एवं पश्चिमीकरण के प्रयासों को ज्ञात करने पर बल दिया है। उन्होंने यह ज्ञात करने का प्रयत्न किया है कि इनका लघु और दीर्घ परम्परा पर क्या प्रभाव पड़ा है।
- सामाजिक संरचना में लघु एवं वृहत् स्तर पर होने वाले परिवर्तनों का भी आपने विश्लेषण किया है। डॉ. योगेन्द्र सिंह के अनुसार सांस्कृतिक एवं सामाजिक संरचनाओं में आन्तरिक एवं बाह्य कारकों के द्वारा परिवर्तन होते है।
(2) सांस्कृतिक उपागम:-
सांस्कृतिक उपागम के अन्तर्गत संस्कृतिकरण, पश्चिमीकरण, लघु और दीर्घ परम्परायें, सार्वभौमीकरण और स्थानीयकरण तथा बहुध्रुवीय परम्परायें आती हैं। इन प्रक्रियाओं के माध्यम से भारतीय समाज में होने वाले प्रमुख परिवर्तनों को समझाने का प्रयत्न किया गया है।
(3) ज्ञानात्मक ऐतिहासिक उपागमः –
लुई ड्यूमा ने भारत में सामाजिक परिवर्तन के अध्ययन के लिये ज्ञानात्मक प्रस्तुत किया है। ऐतिहासिक उपागम को आपकी मान्यता है कि सामाजिक संरचना में परिवर्तन लाने के लिये पहले सांस्कृतिक या वैचारिक परिवर्तन लाना अनिवार्य है। इस प्रकार के परिवर्तन के बिना संरचना को परिवर्तित नहीं किया जा सकता है।
(4) संरचनात्मक उपागमः-
समाज का संरचनात्मक विश्लेषण करके परिवर्तन तथा रूपान्तरण का अध्ययन इस उपागम के अन्तर्गत किया जाता है। इस उपागम में भूमिकाओं, प्रस्थितियों, समूहों एवं लोगों की श्रेणियों का विश्लेषण किया जाता है। देश में स्वतंत्रता प्राप्ति के उपरान्त जमींदारी प्रथा को समाप्त किया गया तथा अनेक भूमि सुधार कार्य किये गये। इससे सामाजिक संरचना में अनेक परिवर्तन आये। आधुनिक शिक्षा ने भी संरचनात्मक परिवर्तन लाने में योग दिया है।
(5) उद्विकासीय उपागमः-
उद्विकास तथा उपागम के अध्ययन के प्रमुख स्रोत धार्मिक ग्रन्थ, महाकाव्य, पौराणिक साहित्य तथा मौखिक परम्परायें आदि रहे हैं। इस उपागम को काम में लेते हुए भारत में विवाह, परिवार, नातेदारी, जाति व्यवस्था, ग्रामीण समुदाय आदि का काल क्रमिक अध्ययन किया गया है।
(6) द्वान्द्वात्मक उपागमः-
सामाजिक परिवर्तन के लिए कार्ल मार्क्स ने ऐतिहासिक उपागम को काम में लाने की बात कही। मार्क्स द्वारा भारत में सामाजिक परिवर्तन के 5 चरण बताये हैं
सभ्यता की प्रमुख विशेषताऐं बताइये।
- (क) जनजातीय समुदाय भूमि और खेती अविभाजित सम्पत्ति के रूप में,
- (ख) जनजातीय समुदाय का विघटन एवं उनका पारिवारिक समुदायों में हस्तान्तरण सामुदायिक सम्पत्ति की समाप्ति,
- (ग) उत्तराधिकार के अधिकारों या नातेदारी के अंश के आधार पर भूमि में भागीदारी का निर्धारण-असमानता की स्थापना
- (घ) नातेदारी पर आधारित असमानता का सम्पत्ति अथवा कृषि स्वामित्व पर आधारित असमाता में बदलाव और
- (ङ) सामुदायिक भूमि का वितरण सम्बन्धी कार्यक्रम- प्रो. डी. पी. मुकर्जी, ए.आर. देसाई, राधा कमल मुकर्जी आदि ने भारत में सामाजिक परिवर्तन का अध्ययन मार्क्सवादी उपागम के आधार पर किया है।
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