भारत मे आर्थिक जीवन में हो रहे परिवर्तन की विवेचना कीजिए।

भारत मे आर्थिक जीवन में हो रहे परिवर्तन

वर्तमान समय में आर्थिक जीवन में निम्नलिखित परिवर्तन हुए जैसे

1. पूंजीवाद का विकास

पहले इस देश में कृषि अर्थव्यवस्था प्रमुख थी, पर अब अनेक प्रकार के प्रौद्योगिकीय परिवर्तनों के फलस्वरूप देश में पूँजीवाद का विकास हुआ है। आज आर्थिक उत्पादन -गृह-उद्यागों में नहीं अपितु बड़े-बड़े मिल और कारखानों में मशीनों द्वारा बड़े पैमाने पर होता है। इसके लिए काफी धन की आवश्यकता होती है और इस कारण आर्थिक उत्पादन के साधनों पर उन्हीं का अधिकार हो गया।

2. ग्राम उद्योगों का ह्रास

भारत में औद्योगीकरण के फलस्वरूप ग्रामीण उद्योगों का बुरी तरह हास हुआ है क्योंकि इस देश में ग्रामों के कुटीर उद्योगों और शहरों के बड़े-बड़े उद्योगों के बीच न तो कोई समन्वय है और न ही किसी प्रकार का श्रम विभाजन फलतः बड़े पैमाने में मशीन द्वारा जिन सस्ती चीजों का उत्पादन होता है उनसे प्रतियोगिता करना ग्रामीण उद्योगों में बनी चीजों के लिए सम्भव नही होता है। इससे ग्रामीण उद्योगों का निरन्तर हास ही होता जा रहा है। यद्यपि सरकारी प्रयत्न ग्राम उद्योगों को प्रोत्साहित करने की दिशा में ही है।

3. जीवन-स्तर में परिवर्तन-

भारतीय समाज के आर्थिक जीवन के एक महत्वपूर्ण परिवर्तन, भारत के जीवन स्तर से सम्बन्धित है। आज इस परिवर्तन से सम्भवतः कोई भी भारतवासी अछूता नहीं है। आज मोटरसाइकिल, रेडियों पक्के मकान, सोफासेट ग्रामों तक देखने को मिलते है जो कि पहले बड़े-बड़े शहरों में देखने को मिलते थे। स्कूटर व साइकिल तो आज आम चीज हो गई है। पहनने ओढ़ने के दृष्टिकोण एवं खाने-पीने के सम्बन्ध में भी काफी परिवर्तन आते जा रहे हैं। वास्तव में यह सभी उच्च जीवन-स्तर के ही परिचायक है।

4. आय में वृद्धि –

आज प्रति व्यक्ति औसत आय पहले से कहीं अधिक बढ़ गई है। चालू मूल्यों के आधार पर प्रति व्यक्ति आय सन् 1960-61 में 305 रु० थी जो सन् 1993-94 में बढ़कर अनुमानतः 6,929 रु० हो गई। यदि भारतीय कृषक की आय को ही लिया जाए तो देखा जाएगा कि उसकी में भी महत्वपूर्ण वृद्धि हुई है। इसका कारण मुख्यतः विज्ञान की देन है। कृषि के वैज्ञानिक तरीकों ने उसके कृषि उत्पादन को बढ़ा दिया है। अब वह थोड़े समय में अधिक उत्पादन कर सकता है और बचे हुए समय को किसी अन्य धन्धे में लगा देता है। कृषि उद्योग, व्यापार और वाणिज्य के क्षेत्र में देश जैसे-जैसे प्रगति करता जा रहा है यहाँ के लोगों की आय में भी वैसे-वैसे वृद्धि हो रही है। .

5. औद्योगीकरण-

आज औद्योगीकरण के कारण जहाँ औद्योगीकरण के एक और देश का उत्पादन बढ़ा है तथा बड़े पैमाने पर उत्पादन होने लगा है और देश की आय बढ़ी है तो दूसरी ओर अनेक समस्याओं ने भी जन्म लिया है। आज इसके कारण ही निवास-स्थानों की कमी तथा गन्दी बस्तियों का विकास हुआ है। इन गन्दी बस्तियों में रहने वालों का केवल स्वास्थ्य ही नहीं बिगड़ता बल्कि नैतिक पतन भी होता है और साथ ही उनमें अन्य अपराधी आदतें भी पनपती रहती हैं।

बहुलवाद की अवधारणा भारत के संदर्भ में स्पष्ट कीजिए।

6.महंगाई व बेरोजगारी में वृद्धि

भारतीय आर्थिक जीवन में आज निर्धनता एवं बेरोजगारी में वृद्धि हो रही हैं। यह ठीक है कि औसतन प्रति व्यक्ति आय बढ़ी है, परन्तु यह भी ठीक है कि असामान्य रूप से बढ़ती हुई मंहगाई ने आम जनता की कमर तोड़ दी है। सन् 1949 की तुलना में अब प्राय: सभी आवश्यक चीजों की कीमतें लगभग 20 गुणा ज्यादा हो गई है साथ ही बेरोजगारी ने भी भयंकर रूप धारण किया है। आज शिक्षित लोगों में बेकारी अत्यधिक बढ़ रही है। वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसन्धान वि परिषद् द्वारा जारी किए गए आँकड़ों के अनुसार सन् 1988 के अन्त में हर 5 शिक्षित भारतीयों में एक बेरोजगार था। इस समय इस देश में कुल 8 करोड़ लोग बेरोजगार है और यह संख्या 21 वीं सदी में प्रवेश करते 14 करोड़ से भी अधिक हो जाने की आशा है।

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