बहुपति विवाह के उदाहरण के रूप में श्री कापडिया ने जिन छ: जनजातियों का उल्लेख किया है, उनमें आपने केवल दो जनजातियों को ही पूर्णतया बहुपति से विवाही स्वीकार किया है। इन दोनों जनजातियों के उदाहरण से बहुपति विवाह की प्रथा को सरलता से समझा जा सकता है-
(क) खस जनजाति के बाद बहुपति विवाह
बहुपति विवाह का विस्तार सम्पूर्ण खस जनजाति में नहीं है, बल्कि यह प्रथा केवल देहरादून के जौनसार बाकसार परगना और टेहरी के रवाई तथा जौनपुर परगनों में ही पायी जाती है। इस जनजाति में जब बड़ा भाई किसी स्त्री से विवाह करता है, तब उसकी पत्नी छोटे भाइयों की भी पत्नी मानी जाती है। यदि छोटे भाइयों की आयु बहुत कम होती है, तब युवा होने पर उन्हें उस स्त्री का पति होने का अधिकार मिल जाता है। यद्यपि 1848 में तैयार किये गये जौनसार बाबर के रीति-रिवाजों के अनुसार ( जिसे दस्तूरुत अम्ल कहा जाता है) किसी भी छोटे भाई को अपने लिए पृथक पत्नी रखने का अधिकार नहीं है, लेकिन व्यावहारिक रूप में यदि छोटे भाई की आयु बड़े भाई की आयु से बहुत कम हो तब उसे किसी अन्य स्त्री से भी विवाह करने की अनुमति दे दी जाती है, ऐसी स्थिति में भी उसका अपनी पत्नी पर पूर्ण अधिकार तभी तक रह सकता है, जब तक कि उसके बड़े भाइयों को किसी प्रकार की आपत्ति न हो आपत्ति होने की स्थिति में उस स्वी को भी सभी भाइयों की पत्नी के रूप में रहना आवश्यक है।
कापडिया का कथन है कि “यद्यपि विवाह के बाद स्वी सभी भाइयों की पत्नी होती है लेकिन मुख्य रूप से वह सबसे बड़े भाई की ही पत्नी होती है।” इस तथ्य को श्री कापडिया ने अनेक रीति-रिवाजों और पारिवारिक नियमों के आधार पर स्पष्ट किया है-
- सामान्यतया जब तक बड़ा भाई घर पर रहता है, तब तक अन्य भाइयों के लिए पत्नी से सम्बन्ध रखना प्रायः सम्भव नहीं होता।
- बड़े भाई से यौनिक सम्बन्ध स्थापित करने के लिए पत्नी द्वारा किसी प्रकार की भी उदासीनता दिखाना एक गम्भीर दुराचरण समझा जाता है और इसके लिए बड़ा भाई उसे तलाक दे सकता है। इसमें अन्य भाइयों की इच्छा का कुछ भी महत्व नहीं है।
- यदि कोई छोटा भाई किसी विशेष स्त्री से विवाह करना चाहता है (इसका कारण चाहे कुछ भी हो) तब उस स्त्री का विवाह संस्कार बड़े भाई के साथ ही होता है, यद्यपि बाद में वह स्त्री उस छोटे भाई को दी जा सकती है।
- यदि पत्नी को लेकर भाइयों के बीच किसी प्रकार का झगड़ा उत्पन्न हो जाय, तब बड़े भाई को ही यह अधिकार है कि वह विवाह को समाप्त करने का आदेश दे दे।
- परिवार की सम्पत्ति का बंटवारा बड़े भाई की इच्छा से ही हो सकता है। यदि कोई अपने हिस्से की मांग करने लगे, तब बड़े भाई को अधिकार है कि वह इस बंटवारे को स्वीकार न करे तथा पत्नी अथवा पत्नियों पर से भी उसके अधिकारों को समाप्त घोषित कर दे।
- पत्नी को सन्तान के भरण-पोषण तथा नियन्त्रण का दायित्व भी प्रमुख रूप से बड़े भाई का ही होता है। बड़े भाई के इन सभी अधिकारों से स्पष्ट होता है कि खस जनजाति बहुपति विवाही होते हुए भी ‘पितृसत्तात्मक व्यवस्था द्वारा प्रभावित है।
खस जनजाति में बच्चों के पितृत्व का निर्धारण सामाजिक रूप से होता है। यद्यपि सभी बच्चों पर प्रमुख अधिकार बड़े भाई का होता है लेकिन सामाजिक रूप से सबसे पहली सन्तान पर सबसे बड़े भाई का अधिकार होता है। दूसरी सन्तान पर उससे छोटे भाई का और इसी प्रकार इससे आगामी सन्तानों का अधिकार क्रम से अन्य भाइयों को मिलता जाता है। बच्चे अपनी मां के पतियों को किस नाम से सम्बोधित करेंगे, इसके लिए डॉ. मजूमदार ने इस जनजाति में प्रचलित सबसे बड़े भाई के लिए ‘बारी बाबा’ दूसरे भाई को ‘डॉगर बाबा’ और तीसरे भाई , ‘को ‘भेदी बाबा’ जैसे नामों का उल्लेख किया है।
(ख) टोडा जनजाति के मिश्रित बहुपति विवाह
नीलगिरि पर्वत की टोडा जनजाति बहुपति विवाह का एक प्रमुख उदाहरण है। इस जनजाति का मूल स्थान मालावार क्षेत्र माना जाता है। मालाबार क्षेत्र के नैयर लोगों में बहुपति विवाह की प्रथा एक लम्बे समय तक प्रचलित रही है और इसी कारण कुछ विद्वानों का विचार है कि टोडा जनजाति की यह विशेषता नैयर लोगों से ही प्राप्त की गयी मालूम होती है प्रो. रिवर्स के अध्ययन के आधार पर टोडा जनजाति में प्रचलित बहुपति विवाह की प्रथा को निम्नांकित रूप से स्पष्ट किया जा सकता है-
(1) सामान्यतया टोडा जनजाति में भ्रातृ बहुपति विवाह (fraternal polyandry ) की प्रथा पायी जाती है। यहां तक कि यदि किसी पुरुष के विवाह के बाद उसके किसी भाई का जन्म हो तब इतने छोटे भाई को भी उस स्त्री का पति मान लिया जाता है। लेकिन अनेक उदाहरण ऐसे भी हैं जिनमें स्त्री के पति आपस में भाई न होकर अनेक गोत्रों से सम्बन्धित थे। इस आधार पर रिवर्स का मत है कि आरम्भ में टोडा जनजाति में भ्रातृ बहुपतित्व का प्रचलन नहीं था। यह विशेषता बाद में ही विकसित हुई ।।
(2) इस जनजाति में पितृत्व का निर्धारण सांस्कृतिक रूप से होता है। पत्नी के गर्भवती होने पर कोई एक भाई ‘पुरसुतपिमि संस्कार’ पूरा करता है। इस संस्कार के अन्तर्गत पत्नी का कोई एक पति पत्नी को धनुष और बाण देकर बच्चे का दायित्व लेने की घोषणा करता है और इस प्रकार उस बच्चे का पिता स्वीकार कर लिया जाता है। जब तक दूसरा पति समय आने पर इस संस्कार को नहीं करता, पत्नी की समस्त सन्तानें उसी पति की मानी जाती रहती हैं जिसने यह संस्कार पहले पूरा किया था।
संविधान में ईसाई विवाह-विच्छेद से सम्बन्धित अधिनियमों की चर्चा कीजिए।
(3) यदि किसी स्त्री के सभी पति आपस में भाई-भाई नहीं होते और वे विभिन्न गांवों में रहते हैं, तब पत्नी एक निश्चित अवधि के लिए प्रत्येक पति के पास बारी-बारी से जाकर रहती है (यह अवधि सामान्यतया एक मास की होती है)। ऐसी स्थिति में जो पति भी ‘पुरसुतपिमि’ संस्कार पूरा करता है, बच्चे का गोत्र उसी के वंश से जोड़ दिया जाता है।
(4) टोडा लोगों में स्त्री का साहचर्य अपने पतियों तक ही सीमित नहीं होता बल्कि पतियों के अतिरिक्त उसके और भी प्रेमी हो सकते हैं। पत्नी की इस स्वतन्त्रता की उसके पति निन्दा नहीं कर सकते, क्योंकि ऐसा करने पर उन्हें नीची दृष्टि से देखा जाता है। टोडा जनजाति। के नियमों में ‘परस्त्रीगमन’ जैसा कोई शब्द नहीं है और न ही इस आधार पर स्त्री को तलाक दिया जा सकता है। विवाह से पहले ही यदि किसी स्त्री के कोई सन्तान हो, तब उसे प्रथम पति के द्वारा स्वीकार कर लिया जाता है।
(5) सामाजिक रूप से यद्यपि पितृत्व का अधिकार सबसे बड़े भाई को दिया जाता है, लेकिन फिर भी सामान्यतया सभी भाइयों अथवा पतियों को सन्तान का पिता माना जाता है। भ्रातृ बहुपति विवाह की स्थिति में यदि एक भाई अपने परिवार को छोड़कर चला जाय और अपना पृथक व्यवसाय करने लगे, तब उसका पत्नी और सन्तानों पर अधिकार समाप्त हो जाता है।
(6) प्रो0 रिवर्स के अनुसार टोडा जनजाति की एक वैवाहिक विशेषता पत्नी की मृत्यु के बाद पतियों के सामने विधुर जीवन की अनेक असमर्थताएं उत्पन्न होना है। यदि स्त्री के सभी पति आपस में भाई होते हैं तो सभी भाइयों को विधुरावस्था की स्थिति से बचाने के लिए कुछ भाइयों को ही विथुर घोषित किया जाता है, जबकि दूसरों को इससे छूट मिल जाती है।
(7) टोडा जनजाति के अध्ययन से स्पष्ट होता है कि सभी भाइयों द्वारा एक ही पत्नी रखने के उदाहरण बहुत कम मिलते हैं। साधारणतया प्रत्येक भाई की अब अपनी एक पत्नी होती है लेकिन परिवार में सभी भाइयों की पत्नियों से रिवर्स का मत है कि एक दिन टोडा जनजाति भी एकविवाही हो जायेगी।