बहुल संस्कृतिवाद क्या है? इसके तत्वों का वर्णन कीजिए?

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बहुल संस्कृतिवाद

बहुल संस्कृतिवाद: बहुलवाद तथा बहुल संस्कृतिवाद की अवधारणा का आमतौर पर समान अर्थ में उपयोग कर लिया जाता है। यह सच है कि बहुल संस्कृतिवाद में बहुलवाद की अनेक विशेषताओं का समावेश है, लेकिन एक अवधारणा के रूप में बहुल संस्कृतिवाद का सम्बन्ध कुछ भिन्न दशाओं से है। यह अवधारणा एकल संस्कृतिवाद से उल्टी दशा को स्पष्ट करती है। एकल संस्कृतिवाद का सम्बन्ध अतीत के उन समाजों से था जिनमें किसी एक संस्कृति अथवा धर्म को ही सामाजिक संगठन के आधार के रूप में स्वीकार किया जाता था। उदाहरण के लिए, कुछ समय पहले तक अमेरिका में काली प्रजाति के जो नीम्रो बाहर से आकर बसते थे, उन्हें अमेरिकी संस्कृति के अनुसार ही अपने व्यवहारों और विचारों में परिवर्तन करना आवश्यक था। अमेरिका में जब मानवाधिकार आंदोलन ने जोर पकड़ा, तब नीग्रो लोगों को भी संविधान के द्वारा वे सभी अधिकार दे दिये गये जो गरे अमेरिकियों को मिले हुए थे। अमेरिका के संविधान द्वारा नीग्रो संस्कृति और व्यवहार के तरीकों को मान्यता दी गई। इसके फलस्वरूप अमेरिकी समाज को पहले जिस ‘घुलनशील पात्र’ के नाम से सम्बोधित किया जाता था, उसे बहुत से लेखक ‘सलाद के पात्र’ के नाम से सम्बोधित करने लगे। घुलनशील पात्र वह होता है

जिसमें सभी पदार्थ मिलकर एकरूप ले लेते हैं, जबकि सलाद की प्लेट में विभिन्न फलों, पत्तियों और वनस्पतियों का रंग-रूप एक-दूसरे से मित्र बने रहने के बाद भी उन्हें एक समग्रता के रूप में देखा जाता है। बहुल संस्कृतिवाद इस दूसरी दशा से सम्बन्धित है। दूसरे शब्दों में, बहुल संस्कृतिवाद का तात्पर्य एक-दूसरे से भिन्न संस्कृतियों वाले समूहों के बीच आत्मसात्करण होना अथवा एक सांस्कृतिक समुदाय के रूप में बदलना नहीं है बल्कि सभी सांस्कृतिक समूहों की पहचान बने रहने के बाद भी उन्हें एक सम्पूर्णता के रूप में देखना है।

अमेरिकन समाजशास्त्री कैलब रोसेडो ने लिखा है कि आज से कुछ समय पहले तक विश्व के अधिकांश समाज कृषक समाज थे जिन्हें समरूप समाज माना जाता था। जैसे-जैसे औद्योगीकरण में वृद्धि हुई, विभिन्न समाजों में विभिन्नता बढ़ने के बाद भी स्थानीय और क्षेत्रीय दृष्टिकोण की जगह एक वैश्विक दृष्टिकोण विकसित होना आरम्भ हुआ। 21वीं शताब्दी में व्यक्तियों से आशा की जाने लगी कि वे अतीत की तुलना में भविष्य को अधिक महत्व दें तथा एक विशेष राज्य अथवा समाज के बारे में परम्परागत दृष्टिकोण से हटकर उदार दृष्टिकोण विकसित किया जाये। इसके बाद भी जहाँ तक बहुल संस्कृतिवाद की अवधारणा का प्रश्न है इसकी विभिन्न प्रस्थिति और वर्ग के लोगों द्वारा चित्र-भित्र रूप से विवेचना की जाती रही हैं। सच यह है कि हम जिस प्रस्थिति में होते हैं, साधारणतया उसी से जुड़े हुए हितों के अनुसार सामाजिक वास्तविकताओं को देखना और समझना चाहते हैं। इसी का परिणाम है कि विभित्र देशों के अनेक राजनीतिक दल बहुल संस्कृतिवाद की अवधारणा को भ्रामक रूप से समझने के साथ की अक्सर इसका दुरुपयोग भी कर लेते हैं। उच्च प्रस्थिति से सम्बन्धित व्यक्ति भी साधारणतया इस अवधारणा का उपयोग इस तरह करना चाहते हैं जिससे उनके अधिकारों और सुविधाओं में किसी तरह की कमी न हो सके।

वास्तव में बहुत संस्कृतिवाद की अवधारणा भविष्य के उन्मेष से सम्बन्धित होने के कारण इसकी कोई सर्वसम्मत परिभाषा देना सम्भव नहीं हो सका है। इसके बाद भी इस अवधारणा की वास्तविक भावना को ध्यान में रखते हुए रोसेडो ने लिखा कि

“बहुल संस्कृतिवाद ऐसे विश्वासों और व्यवहारों की व्यवस्था है, जो समाज में विविध प्रकार के समूहों की विद्यमानता को मान्यता और सम्मान देती है, उनके सामाजिक सांस्कृतिक विभेदों को महत्वपूर्ण मानते हुए उन्हें स्वीकार करती है तथा विस्तृत सांस्कृतिक सन्दर्भ में उनके योगदान को प्रोत्साहन देने का प्रयत्न करती है।

तत्व:- उपर्युक्त परिभाषा से स्पष्ट होता है कि बहुल संस्कृतिवाद एक ऐसी व्यवस्था है जिसे समझने के लिए इसके चार मुख्य तत्वों को समझना जरूरी है। यह तत्व है-विश्वास तया व्यवहार, मान्यता तथा सम्मान, स्वीकारोक्ति तथा महत्व, प्रोत्साहन देना तथा सशक्त बनाना के अर्थ को समझना आवश्यक है।

  1. बहुल संस्कृतिवाद से सम्बन्धित पहला तत्व किसी समाज या सामाजिक व्यवस्था में उन लोगों को मान्यता मिलना है जिन्हें प्रजातीय कारणों, लिंग-भेद अथवा तरह-तरह के पूर्वाग्रहों के कारण उपेक्षित समझा जाता है।
  2. बहुत संस्कृतिवाद में एक-दूसरे से मित्र प्रकार समूहों को मान्यता और सम्मान देना भी आवश्यक है। सम्मान एक ऐसा व्यवहार है जिसके द्वारा हम सभी सांस्कृतिक समूहों के सामाजिक महत्व को समझते हुए उनसे शिष्टता का व्यवहार करते हैं तथा उनके हितों को सुरक्षित रखने का प्रयत्न करते हैं। इसका तात्पर्य है कि इस व्यवस्था में विभिन्न समूहों से उसी तरह का व्यवहार किया जाता है जिस तरह के व्यवहार की वे हमसे आशा करते हैं।
  3. एक-दूसरे से चित्र समूहों की सांस्कृतिक विशेषताओं तथा उनके योगदान को स्वीकार करना इस अवधारणा का तीसरा लक्षण है। विभिन्न समूहों की अधिकांश सांस्कृतिक विशेषताएँ समान रूप से महत्वपूर्ण होती हैं तथा उनके गुण व अवगुणों को देखे बिना उन्हें एक प्रतिमान के रूप में स्वीकार कर लेना आवश्यक है। स्वीकारोक्ति का सम्बन्ध विभिन्न सांस्कृतिक विशेषताओं के महत्व और उनकी उपयोगिता के आधार पर उन्हें स्वीकार करना है।
  4. बहुत संस्कृतिवाद का सम्बन्ध विभिन्न समूहों द्वारा समाज को दिये जाने वाले योगदान के प्रति उन्हें प्रोत्साहन देना और साथ ही उन्हें इस योग्य बनाना है कि वे एक विशेष समाज के लिए उपयोगी भूमिका निभा सकें। साधारणतया किसी समाज में हम जिन समूहों या समुदायों को बाहरी समुदाय के रूप में देखते हैं, उन्हें हम उनकी उपलब्धियों के बाद भी को प्रोत्साहन देना नहीं चाहते। समूहों को समर्थन के द्वारा शक्तिशाली बनाना है उदाहरण के लिए, भारतीय सामाजिक व्यवस्था में जब हम अपने से भिन्न धर्म, क्षेत्र तथा जाति के व्यक्ति को चुनाव में अपना समर्थन देकर उसकी शक्ति को बढ़ाते हैं तब हम इसे प्रोत्साहन की दशा कहते हैं। ऐसा प्रोत्साहन विभिन्न पुरस्कारों तथा आर्थिक अवसरों के रूप में भी देखा जा सकता है।

बहुत संस्कृतिवाद का एक विशेष रूप उस शिक्षा-व्यवस्था और धर्मनिरपेक्षता में भी देखा जा सकता है, जो सांस्कृतिक पूर्वाग्रहों के प्रभाव को कम करती है। हमारी अतीत की संस्कृति जिन लोगों को संदेह और अविश्वास से देखने की शिक्षा देती आई है, उससे अ हटकर विभिन्न समूहों को पराया न समझकर उन्हें अपने में से ही एक देखने का दृष्टिकोण बहुल संस्कृतिवाद से सम्बन्धित है। इस दृष्टिकोण से बहुल संस्कृतिवाद को अनेकता एकता की दशा कहना अधिक उचित है।

कार्कोट वंश के विषय में आप क्या जानते हैं?

स्पष्ट है कि, बहुल संस्कृतिवाद की अवधारणा पर आधारित एक बहुल सांस्कृतिक समाज वह है, जो धार्मिक, भाषायी, प्रजातीय, क्षेत्रीय, जातिगत तथा आर्थिक भिन्नताओं को मान्यता देता है। ऐसे समाज में धार्मिक कट्टरवादिता, कठमुल्लापन और विभिन्न तरह के पूर्वाग्रहों का कोई स्थान नहीं होता।

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