Sociology

बाजार पर एक लेख लिखिए।।

बाजार– साधारणतया बाजार को एक ऐसे स्थान के रूप में देखा जाता है जहाँ वस्तुओं का क्रय-विक्रय होता है। वास्तव में आर्थिक व्यवस्था के अन्तर्गत बाजार भी एक संस्था है जो आर्थिक क्रियाओं में लगे हुए व्यक्तियों के सम्बन्धों को नियमित करती है। वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन, विनिमय, वितरण तथा उपभोग आदि सभी का सम्बन्ध प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से बाजार से है। विभिन्न आधारों पर अर्थशास्त्रियों ने बाजार के अनेक रूपों का उल्लेख किया है, जैसे-स्थायी तथा अस्थायी बाजार, स्थानीय, राष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय बाजार, पूर्ण तथा अपूर्ण बाजार। बाजार के इन सभी रूपों में एक संस्था के दृष्टिकोण से पूर्ण व अपूर्ण बाजार का वर्गीकरण सबसे अधिक महत्वपूर्ण है।

पूर्ण बाजार की मुख्य विशेषता क्रेताओं तथा विक्रेताओं के बीच खुली प्रतिस्पर्द्धा का होना है। खुली प्रतियोगिता के कारण वस्तुओं के गुण तथा उनकी पूर्ति के आधार पर उनकी कीमत का निर्धारण होता है। यहां कोई भी क्रेता अथवा – विक्रेता इतना शक्तिशाली नहीं होता कि वह अपनी इच्छा या सुविधा से बाजार को प्रभावित कर सके। दूसरी ओर, अपूर्ण बाजार वे हैं जिनमें एकाधिकारी प्रवृत्ति पायी जाती है। यह एकाधिकार क्रेता अथवा विक्रेता में से किसी भी एक पक्ष का हो सकता है।

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आर्थिक व्यवस्था की प्रकृति के अनुसार बाजार की विशेषताओं में भी भिन्नता देखने को मिलती है। एक पूंजीवादी अर्थव्यवस्था में उपनिवेशवादी बाजारों की खोज करके उत्पादक अधिक से अधिक लाभ प्राप्त करने का प्रयत्न करते हैं। इससे शोषण और एकाधिकार को प्रोत्साहन मिलता है। दूसरी ओर समाजवादी अर्थव्यवस्था में इस प्रकार के बाजार विकसित होते हैं जिनमें किसी प्रकार की प्रतिस्पर्द्धा अथवा एकाधिकार न हो।

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