औपचारिक और अनौपचारिक शिक्षा क्या है? दोनों में अन्तर स्पष्ट कीजिए।

औपचारिक व अनौपचारिक शिक्षा – पाठ्यक्रम के आधार पर शिक्षा के निम्न स्वरूप अथवा प्रकार है-

(1) औपचारिक शिक्षा (Formal Education)

औपचारिक शिक्षा, वह शिक्षा है जो विभिन्न औपचारिकताओं के साथ जानबूझ कर दी जाती है। यह शिक्षा एक निश्चित नियमानुसार क्रियाशील होती है तथा यह नियमित रूप से विधिवत प्रदान की जाती है। औपचारिक शिक्षा का स्थान और समय निश्चित होता है। इस शिक्षा की विषय-सामग्री भी निश्चित होती है। विद्यालय औपचारिक शिक्षा का प्रमुख स्थल है, जहाँ राजकीय शिक्षा विभाग अथवा किसी विद्वत परिषद द्वारा निर्धारित नियम या योजनानुसार किसी विशेष क्रम में शिक्षा प्रदान की जाती है। हेन्डरसन के अनुसार “जब बालक लोगों के कार्यों को देखता है, उनका अनुकरण करता है तथा उनमें भाग लेता है और जब उसको सचेत करके एवं जान-बूझकर पढ़ाया जाता है, तो यह औपचारिक रूप से शिक्षित होता है।”

(2) अनौपचारिक शिक्षा (Informal Education)

अनौपचारिक शिक्षा मुळ शिक्षा है अतः इसमें विद्यालय जैसे प्रतिबन्ध, शिक्षण-विधि, शिक्षक, परीक्षा, पाठ्यक्रम, समय तालिका, स्थान आदि नहीं होते हैं। जिन वस्तुओं से अनुभव प्राप्त किये जाते हैं ये शिक्षक तथा जो अनुभव लेते हैं, उन्हें शिक्षार्थी कहा जा सकता है। इस शिक्षा का कोई कार्यक्रम निश्चित नहीं होता।

अनौपचारिक शिक्षा में छात्र व्यावहारिक साधनों के माध्यम से शिक्षा ग्रहण करता है। उदाहरण के लिए साहचर्य यात्रा, गोष्ठी, आदि से व्यक्ति का ज्ञान बढ़ता है तथा उसे कई नयी बातों को सीखने का अवसर मिलता है। यह शिक्षा न तो किसी पूर्व योजना के और न किन्हीं नियमों के अनुसार दी जाती है। यह शिक्षा अपेक्षाकृत सरल होती है तथा आजीवन चलती रहती है। इस शिक्षा के प्रमुख साधन परिवार पड़ोस, मित्र- मण्डली, खेल समूह, समाज तथा वातावरण आदि है जिनसे व्यक्ति अचेतन रूप में कुछ न कुछ सीखता रहता है। इस शिक्षा का क्षेत्र पर्याप्त रूप से विस्तृत होता है।

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औपचारिक तथा अनौपचारिक शिक्षा में अन्तर

औपचारिक शिक्षानौपचारिक शिक्षा
परिमित, सीमित तथा विद्यालयी जीवन से बाँधी हुई।अपरिमित, असीमित तथा कामकाजी जिंदगी से गुँथी हुई।
प्रवेश तथा विकास के कुछ बिन्दु इसमें निहित होते हैं।प्रवेश तथा विकास के प्रतिबन्धों से मुक्त होती है।
नियुक्ति, नौकरी तथा पद प्रतिष्ठा की अभिप्रेरणाओं से अभिप्रेरित होती है।व्यक्तिगत विकास, आत्म-सुधार तथा मानवीय संभावनाओं के उन्नयन से अभिप्रेरित होती है।
ज्ञान की उपलब्धि के निवैयक्तिक लक्ष्यों की ओर उन्मुख करती है।व्यक्तिगत आवश्यकताओं, वातावरण, सामाजिक उद्देश्यों और पारम्परिक संबंधों को समझने और निर्वाह करने की प्रक्रिया है।
पूर्व निर्धारित पाठ्यक्रम, पाठ्य-पुस्तकों तथा शिक्षण विधियों से बँधी होती है।विविध प्रकार का लचीला शिक्षाक्रम अपनाती है।
शिक्षक द्वारा विद्यार्थियों पर थोपी जाती है।पारस्परिक भागीदारी की प्रक्रिया है।
आदेश तथा आज्ञाकारिता पर बल देती है। अतएव दमनात्मक है।खुले विचार, आत्म-सुधार और स्वावलंबन पर बल देती है।
यथास्थिति को बनाये रखती है और परिवर्तन तथा सुधार का प्रतिरोध करती है।परिवर्तन तथा सुधार का स्वागत करती है।
समसामयिक ढाँचे के भीतर ही कार्य करती है।सामाजिक परिवर्तनों के साथ चलती है।
व्यक्ति और समाज को किसी निश्चित अस्मिता के लिए तैयार करती है।व्यक्ति और समाज को निरंतर गतिशील अस्मिता की ओर ढकेलती है-निरन्तर अग्रसर होने तथा सुधारने तथा संपरिवर्तन की संभावनाओं से युक्त होती है।

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