औद्योगीकरण एवं नगरीकरण का संयुक्त परिवार पद्धति पर प्रभाव स्पष्ट कीजिए

औद्योगीकरण एवं नगरीकरण – भारत में औद्योगीकरण की प्रक्रिया का उन्नीसवीं शताब्दी के अन्तिम 25 वर्षों और 20 वीं शताब्दी के पूर्वार्ध में प्रारम्भ हुआ। नवीन उद्योगों के चारों और शहरों का विकास हुआ। औद्योगीकरण से पूर्व हमारे यहाँ (क) कृषि आधारित मुद्राविहीन अर्थव्यवस्था थी. (ख) प्रौद्योगिकी का ऐसा स्तर था जहां घेरलू इकाई भी आर्थिक आदान-प्रदान की इकाई थी, (ग) पिता-पुत्र तथा भाई-भाइयों के बीच पेशों में अन्तर नहीं होता था। (घ) ऐसी मूल्य व्यवस्था थी जहां बुजुगों की प्रभुता और परम्परओं की पवित्रता दोनों ही ‘विवेक’ के सिद्धान्त के विपरीत माने जाते थे। लेकिन औद्योगीकरण से हमारे समाज में और विशेष रूप से परिवार में आर्थिक, सामाजिक व सांस्कृतिक परिवर्तन आए। आर्थिक क्षेत्र में इसका परिणाम है काम में विशिष्टीकरण, व्यावसायिक गतिशीलता, अर्थव्यवस्था का मुद्रीकरण तथा नातेदारी व वसायिक सरंचना में बिखराव सामाजिक क्षेत्र में इसका परिणाम है-ग्रामीण क्षेत्रों से लोगों का शहरी क्षेत्रों में प्रब्रजन, शिक्षा का विस्तार और एक सुद्ध केन्द्रीय राजनैतिक संरचना सांस्कृतिक क्षेत्र में शहरीकरण से विश्वासों से धर्मनिरपेक्षता सम्भव हुई है।

पारिवारिक संगठन पर औद्योगीकरण के तीन महत्वपूर्ण प्रभाव पड़े है- प्रथम परिवार जो उत्पादन की प्रमुख इकाई था, अब उपभोक्ता इकाई में बदल गया है। एकीकृत आर्थिक उद्यम में परिवार के सभी सदस्यों के एक साथ काम करने के बजाय, परिवार के कुछ पुरुष सदस्य परिवार के लिए रोजी रोटी कमाने हेतु घर से बाहर जाते हैं। इसने न केवल संयुक्त परिवार के परम्परागत संरचना को बल्कि सदस्यों के बीच सम्बन्धों को भी प्रभावित किया है। दूसरे, फैक्ट्री रोजगार ने युवा व प्रौदों को अपने परिवारों पर सीधी निर्भरता से मुक्त कर दिया है। उनके पारिश्रमिक ने चूँकि उन्हें आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बना दिया है। अतः घर के मुखिया का प्रभुत्व और भी कम हो गया है। शहरों में कई मामलों में पुरुषों के साथ उनकी पत्नियों ने भी काम करना व धनार्जन शुरू कर दिया है। इसने एक सीमा तक अन्तः पारिवारिक सम्बन्धों को प्रभावित किया है। तीसरा, बच्चे अब आर्थिक परिसम्पत्ति न होकर दायित्व बन गए हैं। यद्यपि कुछ मामलों में बाल श्रम के उपयोग व दुरुपयोग बढ़ गए हैं, कानून बच्चों को काम की अनुमति नहीं देता। इसी के साथ शैक्षिक आवश्यकताएँ इतनी बढ़ गई है कि बच्चों को लम्बे समय तक अपने माता-पिता पर निर्भर रहना पड़ता है। शहरों में आवासीय व्यवस्था महंगी है और बालकों का रख-रखाव भी। इस प्रकार औद्योगीकरण के कारण घर और काम अलग-अलग हो गए हैं।

कुछ समाजशास्त्रियों ने औद्योगीकरण के कारण एकल परिवारों के उद्भव के सिद्धान्त को चुनौती दी है। यह चुनौती अनुभवजन्य अध्ययनों और विश्व के भिन्न-भिन्न भागों में परिवार व्यवस्था को विविधता पर तैयार किए गए दस्तावेजों पर आधारित है। एम० एस० ए० राष, एम० एस० गोरे तथा मिल्टन सिंगर जैसे विद्वानों के अध्ययनों ने यह बताया है कि संयुक्तता व्यापारी समुदाय में अधिक प्रचलित हैं और इसे अधिक अच्छा माना जाता है और कई एकल परिवार विस्तृत नातेदारो बन्धन बनाए रखते हैं। पश्चिमी औद्योगिकजगत में अनेक आधुनिक अनुसंधानकर्ताओं ने भी अवैयक्तिक विस्तृत जगत और परिवार के बीच नातेदारों को समर्थन भूमिका और उनके बीच संयोजक के कार्य पर बल दिया है। सामाजिक इतिहासकारों ने भी स्पष्ट किया है कि औद्योगीकरण से पूर्व भी यूरोप और अमेरिका में एक सांस्कृतिक प्रतिमान के रूप में एकल परिवार प्रचलित था। परन्तु यह उल्लेखनीय है कि नातेदारों की समर्थक भूमिका में अनिवार्यता का यह लक्षण नहीं है जो भारतीय एकल परिवार के दायित्वों में पाया जाता है। एकल परिवार के नवयुवक आज भी प्राथमिक नातेदारों (जैसे माता-पिता सहोदर) के प्रति अपने उत्तरदायित्व का निर्वाह करते हैं, यद्यपि वे अलग-अलग मकानों में रहते हैं।

इन सभी परिवर्तनों ने हमारे परिवार की व्यवस्था में परिवर्तन किया है। ग्रामीण क्षेत्रों से शहरी क्षेत्रों की ओर जनसंख्या की गतिशीलता से अधिकार शक्ति में कमी आई है, धर्मनिरपेक्षवाद ने ऐसी मूल्य व्यवस्था का विकास किया है जो व्यक्तिगत प्रेरणा और उत्तरदायित्व पर बल देती है। व्यक्ति अब प्रतिबन्धात्मक पारिवारिक नियंत्रण के बिना काम करता है। पहले जब व्यक्ति परिवार में काम करता था, और सभी सदस्य उसके काम में उसकी सहायता करते थे, तब परिवार के सदस्यों में अधिक घनिष्टता होती थी, लेकिन चूँकि अब यह परिवार से दूर उद्योग/आफिस में काम करता है। अतः सम्बन्धों की घनिष्टता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। परिवार के सम्बन्धों पर औद्योगीकरण का प्रभाव परिवार की आत्मनिर्भरता से तथा परिवार के प्रति रुचि में परिवर्तन से भी स्पष्ट होता है। इस प्रकार औद्योगीकरण ने एक नए प्रकार के सामाजिक और मनोवैज्ञानिक स्थिति में योगदान दिया है जिसमें संयुक्त परिवार का प्रभुतापूर्ण संगठन जो प्रारम्भ में था, अब कठिन हो गया है।

नगरीकरण का प्रभाव

नगरों का उदय एवं विकास के पीछे औद्योगीकरण की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। नगरीकरण न होने के साथ ही वहाँ रोजगार के अवसर अधिक मिलने की सम्भावनाओं ने भी जन्म लिया, इसी सोच का परिणाम था कि गाँवों में संयुक्त इकाई के रूप में रहने वाले परिवार के सदस्य नौकरी प्राप्त करने के लिए नगरों की ओर आकर्षित हुए। शिक्षा के विकास ने इस प्रवृत्ति को और अधिक प्रोत्साहित किया। अब संयुक्त परिवार के सदस्य खेतों में कृषि कार्य करने की अपेक्षा नगरों में आकर नौकरी करने को वरीयता देने लगे। नगरों में नौकरी मिलने के बाद आवागमन के साधन कम होने के कारण वे रोज अपने गाँव या परिवार में वापस नहीं आ पाते थे, फलस्वरूप वे नगरों में ही बसने लगे। इस प्रकार नगरीकरण के कारण संयुक्त परिवार में विघटन प्रारम्भ हुआ।

नगरों में अपने आवास बना लेने के बाद व्यक्ति अपने बीबी बच्चों को भी साथ रखने के लिए विवश हो गया क्योंकि गाँव में स्वयं से दूर इन्हें रखना अब मुमकिन नहीं था, बच्चों को उचित शिक्षा दिलाने का लक्ष्य भी इनमें शामिल था। फलस्वरूप अब जहाँ संयुक्त परिवार के मुखिया गाँव में रहने के लिए मजबूर थे वहीं उनके परिवार के सदस्य पुत्र, पुत्र- वधू व नाती शहर में रहने के लिए मजबूर हैं। इस प्रकार नगरीकरण ने संयुक्त परिवार का विघटन कर एकाकी परिवार पद्धति को बढ़ावा दिया।

नगरों में रहने के कारण बच्चों की परवरिश आधुनिक परिवेश में होने लगी। उन्हें समाज संस्कृति, नातेदारी आदि से दूर रखा गया जिसके परिणाम स्वरूप वे बड़ों का आदर सम्मान करना भूल गए। नगरों में भौतिकवादी सुख-सुविधाओं के प्रयोग ने बहु या स्त्रियों को सास-ससुर की सेवा करना उनकी इज्जत करना ही जैसे भुलवा दिया है। ज्यादातर स्त्रियाँ सास-ससुर की सेवा करने को एक दासता मानती है। इसीलिए वे अपने पति पर एकाकी परिवार के लिए दबाव बनाती है। इससे संयुक्त परिवार

चार्ल्स ग्राण्ट के शैक्षिक प्रयास को बताइये।

की परिभाषा ही बदल जाती है। इस प्रकार हम देखते हैं कि नगरीकरण ने एक ओर जहाँ नए सामाजिक मूल्यों, आदर्शों एवं विचारों से संयुक्त परिवार को प्रभावित किया वहीं दूसरी ओर आदर्श मूल्यों और विचारों, परम्पराओं एवं पर्दा जैसी कुप्रभावों पर भी गहरा प्रभाव छोड़ा नगरीकरण से व्यक्तिवादी विचार धारा का विकास हुआ जिसके कारण संयुक्त परिवार का विघटन असम्भावी है।

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