अतिरिक्त मूल्य के सिद्धान्त पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।

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अतिरिक्त मूल्य के सिद्धान्त – पूँजीपतियों द्वारा श्रमिकों के शोषण करने की विधि को मार्क्स ने अतिरिक्त मूल्य के सिद्धान्त के आधार पर समझाया है। आपने पूँजीवादी शोषण की ठठरी को सामने लाकर खड़ा कर दिया और यह बताया कि अतिरिक्त मूल्य वास्तव में कहाँ उत्पन्न होता है। मार्क्स के अनुसार अतिरिक्त मूल्य वहीं पैदा होता है जहाँ पूँजीवादी वर्ग मजदूरों के श्रम का वह भाग हड़प जाता है। जिसके लिए उसे किसी प्रकार की मजदूरी देने की जरूरत नहीं पड़ती। अतिरिक्त मूल्य है क्या? मजदूर के श्रम से पैदा हुए मूल्य और उस श्रम का वह भाग मजदूर को मिलने वाले मूल्य (अर्थात् मजदूर और उसके परिवार के लिए आवश्यक जीवन के साधनों का मूल्य) के बीच का अन्तर ही अतिरिक्त मूल्य है।

फ्रांस के पांचवें गणतंत्र में राष्ट्रपति की निर्वाचन पद्धति का उल्लेख कीजिए।

दूसरे शब्दों में, श्रमिक अपने श्रम से वास्तव में जितना मूल्य पैदा करता है पूँजीपति उसे उसके बदले में उतना मूल्य न देकर उससे कहीं कम मूल्य वेतन के रूप में देता है। और इस प्रकार श्रमिक द्वारा पैदा किए हुए मूल्य का अधिकतर भाग पूँजीपतियों के पास ही रह जाता है। यही अतिरिक्त मूल्य है जिसे कि पूँजीपति धोखे और अन्याय से अपने अधिकार में रख लेते हैं। एक उदाहरण द्वारा इसे और भी स्पष्ट रूप में समझा जा सकता है।

मान लीजिए, एक श्रमिक कारखाने में आठ घंटे काम करता है और उस दौरान में वह अस्सी रुपए के मूल्य की वस्तुएँ बनाता है, परन्तु उसे अपने उस श्रम के बदले में केवल बीस रुपए वेतन या मजदूरी के रूप में मिलते हैं। इस प्रकार अपने वेतन के लिए वह श्रमिक केवल दो घंटे काम करता है और छह घंटे पूंजीपति के मुनाफे के लिए। इन छह घंटों के मूल्य को ही अतिरिक्त मूल्य कहते हैं जोकि श्रमिक की गाढ़ी कमाई का फल होता है और जिसे कि पूँजीपति श्रमिकों से छीनकर स्वयं हड़प कर जाते हैं।

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