असीरियन सभ्यता में स्त्रियों की स्थिति पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।

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असीरियन सभ्यता में स्त्रियों की स्थिति – असीरियनों ने अपनी स्त्रियों को बेबीलोनियन स्त्रियों की भाँति अधिकार नहीं दिये थे। उनसे सम्बन्धित नियम अत्यन्त कठोर थे। जैसे गर्भपात कराने, पति पर आक्रमण करने, भ्रूण हत्या करने आदि अपराधों में उन्हें मृत्यु दण्ड दिया जाता था। विवाह के पश्चात् कन्या अपने पिता के घर पर ही रहती थी जहाँ उसका पति उससे मिलने जाया करता था। विवाहित महिलाओं के लिये पर्दा में रहना जरूरी था। पर्दे की प्रथा के जन्मदाता असीरियन ही थे।

स्त्रियाँ पूर्णतया पुरूषों के अधीन एवं उनके नियंत्रण में ही होती थीं। पुरुष अपनी इच्छानुसार अपनी पत्नी का तलाक दे सकता था। पुरूष वर्ग एक से अधिक उपपत्नियाँ रखने को स्वतंत्र था। कुलीन वर्ग की महिलाओं को विशेषाधिकार थे तथा उन्हें गवर्नर जैसे उच्च पद के ऊपर भी नियुक्त किया जा सकता था। राजकुल की महिलाओं में शासन संचालन की योग्यता भी होती थी।

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शाल्मनेसर तृतीय के बाद सम्मुरामत नामक उसकी पत्नी ने शासन का संचालन किया था। श्रमिक वर्ग की महिलाओं को सरकार की ओर से कुछ सुविधा प्रदान की गयी थी। यदि इस वर्ग की किसी महिला का सैनिक पति मर जाता तथा उसके पास जीवन-यापन को कोई दूसरा स्रोत नहीं होता था तो सरकार उसके भरण-पोषण की व्यवस्था करवाती थी। समाज में वेश्यावृत्ति का प्रचलन था तथा इसे राज्य की ओर से प्रोत्साहन मिलता था। कन्याओं का क्रय-विक्रय भी होता था।

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