आसन किसे कहते हैं? आसन की संख्या कितनी है तथा दो प्रमुख आसनों की विवेचना कीजिए।

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आसन का अर्थ

आसन का अर्थ मुख्य रूप से आसन शारीरिक व्यायाम की वे क्रियायें हैं, जिससे स्वास्थ्य लाभ तथा रोग का नाश होता है। इसके बिना योग की अन्य क्रियायें सम्भव नहीं। शरीर को शोधन से दृढ़ता मिलती है। फलस्वरूप धारण ध्यान तथा समाधि की अवस्था प्राप्त होती है। ‘स्थिर सुखम् आसनम्’ जो स्थिरतापूर्वक किया जा सके वही आसन है। योगासनों के अभ्यास से शरीर शक्तिशाली और दृढ़ होता है, सांसारिक चिन्तायें दूर होकर विषय भोगों से अनाशक्ति हो जाती है। यह आध्यात्मिक लक्ष्य की प्राप्ति को पूर्ण साधन तो है ही, परन्तु भौतिक जीवन में मानव की सफलता के लिए सर्वोत्तम मार्ग है।

भगवान कृष्ण ने भी गीता में कहा है

सर्वभूतस्यमात्मनः सर्वभूतानि चात्मनि ।

ईक्षते योग युक्तात्मा सर्वत्र समदर्शनः ।।

योग युक्त पुरुष सभी पदार्थों में आत्मा का होना देखता है। इस प्रकार उसे संसार की यथार्थता का पूर्ण ज्ञान हो जाता है और समदर्शी हो जाता है। आसनों की संख्या बत्तीस होती है तथा विद्वानों ने इनमें से दो आसन श्रेष्ठ माने हैं सिद्धासन, पद्मासन। इन आसनों में भी सिद्धासन बहुत ही उपयोगी तथा सिद्धि प्रदान करने वाला बताया गया है। अगर इस आसन को साधनपूर्ण मन से करता है तो उसे किसी आसन की आवश्यकता नहीं पड़ती। इसका अभ्यास सिद्ध होने पर मोक्ष की प्राप्ति होती है।

सिद्धासन (Siddhasana)

विधि – एक सार भूमि पर आसन या दरी बिछाकर दोनों पैर आगे की ओर फैला लें, बायें पाँव की एड़ी गुदा और अण्डकोष के बीच के स्थान पर रखें। अब दाहिने पैर को मोड़ कर एड़ी पर जमा कर रख लें। दोनों पैरों के पंजों को विण्डली व जंघाओं के बीच छुपाकर रखें, दोनों पैरों के अंगूठे देखे नहीं। पीठ सीधी करके बैठें। ठोडी या झुकाव नीचे की ओर करें, दोनों हाथ पाँवों के घुटनों पर सीधे रखें। दृष्टि नासिका के अप्रभाग पर या दोनों के बीच आगे की ओर करें मेरूदण्ड सीधा रहे। ज्ञान मुद्रा लगा कर रोजाना अभ्यास बढ़ायें प्राणायाम और ध्यान के लिए इनका प्रयोग अवश्य करना चाहिए।

लाभ – (1) भ्रमध्य में देखने से ज्योति या प्रकाश का दर्शन होता है यह समदृष्टि है, जो त्राटक अभ्यासियों के लिए विशेष उपयोगी है। नासिका के अग्र भाग पर देखने से पंचतत्वों का दर्शन होता है। (2) अर्द्ध उन्मेष में देखने से साम्भवी और उन्मनी मुद्राओं की स्थिति होती है। मानसिक, शारीरिक तथा आध्यात्मिक उन्नति के लिए परम आवश्यक है।

अभौतिक संस्कृति को परिभाषित कीजिए।

पद्मासन (Padamasana)

विधि- दोनों पैरों को आगे करके दरी पर बैठ जायें। दोनों हाथों से दायें पैर की बायीं जांघ पर बायें पैर को दायीं जांघ पर प्रयत्न पूर्वक रखें। रीढ़ की हड्डी सीधी रहे। दोनों घुटने जमीन को स्पर्श करते रहें, जमीन से उठे नहीं। दोनों हाथों पर नीचे की ओर सरलता से तानते हुए घुटनों पर रख लें। दृष्टि नसिका के अग्र भाग पर लगावें अब पैरों की स्थिति को बदलें। वायु को सरलतापूर्वक फेफड़ों में आने-जाने दें।

लाभ –

  1. भजन, पूजा पाठ, स्वाध्याय मनन के लिए उपयोगी है।
  2. प्राणायाम अभ्यासी के लिए विशेष उपयोगी आसन है।
  3. चित्त स्थिर होता है।
  4. मन बाह्य वृत्तियों को छोड़कर आंतरिकता में रमने लगता है। बिना पद्मासन के प्राणायाम सिद्धि सम्भव नहीं।
  5. इस आसन के अभ्यास से कब्ज, बदहजमी तथा वायु-विकार दूर होता है। पाचन शक्ति बढ़ती है तथा जठराग्नि प्रदीप्त होती है।
  6. घुटनों, जंघाओं और पैरों में असीम शक्ति आती है।

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