अरस्तू को वैज्ञानिक विचारक के रूप में किन कारणों से माना जाता है?

अरस्तू को वैज्ञानिक विचारक के रूप से निम्न कारणों की वजह से जाना जाता है

अरस्तू ने एक शिष्य के रूप में प्लेटो से बहुत कुछ सीखा और बीस वर्ष तक उनके सान्निध्य में रहकर एथेन्स की विद्यापीठ में अपनी सेवाएँ अर्पित की। प्लेटो की तरह अरस्तू भी एक महान विचारक था जिसने अपने विचारों को इस जगत को यथार्थवाद के अनुकूल इस तार्किक ढंग से क्रमबद्ध रूप में रखा कि उन्हें पश्चिमी जगत का प्रथम वैज्ञानिक विचारक कहा जाने लगा।

प्रो० मैक्सी ने अरस्तू को प्रथम वैज्ञानिक विचारक कहा है। अरस्तू को प्रथम वैज्ञानिक विचारक निम्न कारणों से माना जाता है

1.उद्गम पद्धति का अनुसरण और आचार तथा राजनीति का पृथकत्व

अधिकतर विचारकों ने अरस्तू को उद्गम पद्धति के प्रणेता के रूप में स्वीकार किया है। इस पद्धति की विशेषता यह है कि इसमें विचारक जो कुछ देखता है या जिन ऐतिहासिक तथ्यों की खोज करता है उनका निष्पक्ष रूप में बिना अपनी किसी पूर्व धारणा के अध्ययन करता है और इस अध्ययन के फलस्वरूप जो कुछ भी निष्कर्ष निकले उसका प्रतिपादन वैज्ञानिकता है। अरस्तु ने 158 संविधानों का अध्ययन किया था, इस विशाल अध्ययन और खोज के बाद ही उन्होंने अपने सिद्धान्तों का निरूपण किया। जहाँ तक अरस्तू ने ऐसा किया है वहाँ तक उनकी वैज्ञानिकता में कोई संदेह नहीं किया जा सकता।

2. राज्य के पूर्ण सिद्धान्त का क्रमबद्ध निरूपण –

अरस्तू सबसे प्रथम पश्चिमी विचारक हैं जिन्होंने राज्य का सांगोपांग सिद्धान्त प्रस्तुत किया। राज्य के जन्म और उसके विकास से लेकर उसके स्वरूप, संविधान की रचना, सरकार का निर्माण, नागरिकता की व्याख्या और कानून की सम्प्रभुता, क्रान्ति आदि अनेक महत्त्वपूर्ण विषयों पर विस्तार से प्रकाश डाला है। आधुनिक राजनीतिक शास्त्रियों के लिए ये सभी विषय विशेष आकर्षक और चिन्तन की सामग्री हैं। इतना क्रमबद्ध विवेचन प्लेटो के दर्शन में भी नहीं मिलता।

3. स्वतंत्रता और सत्ता का समन्वय

स्वतंत्रता और सत्ता दोनों का समन्वय सबसे बड़ी राजनीतिक समस्या है।

4. कानून की सम्प्रभुता के सिद्धान्त का प्रतिपादन

अरस्तू ने कानून की सम्प्रभुता के बारे में एक सम्यक विचारक प्रस्तुत किया है। उन्होंने एक व्यक्ति, कुछ व्यक्ति और पूरी जनता के हाथ सत्ता देने के परिणाम पर अलग-अलग विचार करके व दोनों पक्षों के तर्कों को देखकर ही अपना निर्णय कानून की सम्प्रभुता के पक्ष में दिया।

5. सरकार के अंगों का निरूपण

अरस्तू ने सरकार के तीन अंगों- नीति निर्धारक, प्रशासकीय और न्यायिक का निरूपण किया है। ये अंग भले ही आधुनिक अंग विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के बिल्कुल अनुरूप न हों पर बहुत कुछ उनके समान ही हैं।

6. मध्यम मार्ग का अनुसरण

अरस्तू ने मध्यम मार्ग के अनुसरण पर सबसे अधिक जोर दिया। उन्हें विश्वास था कि विकास के रास्ते में सबसे बड़ा अवरोध असंतुलन है। चाहे वह राजनीतिक असंतुलन हो चाहे सामाजिक और चाहे आर्थिक। यह असंतुलन ‘अतियों’ के कारण पैदा होता है। पोलिटी का सिद्धान्त उनका एक मध्यम मार्ग है जिसके अनुसरण के द्वारा उन्होंने राजनीतिक और आर्थिक असंतुलन को हमेशा के लिए दूर करने का यत्न किया। इस प्रयत्न को एक वैज्ञानिक उपचार कहा जा सकता है।

7. संविधान का विस्तृत अध्ययन

संविधान की विस्तृत व्याख्या अरस्तू की. सबसे बड़ी देन है और जैसा कि प्रो० वार्कर ने स्वीकार किया है, योरोपियन राजनीतिक विचारधारा में अरस्तू के संविधानवाद का सबसे अधिक प्रभाव पड़ा है।

8. नागरिकता की व्याख्या

नागरिकता का विचार अरस्तू की एक मौलिक देन है जिसके लिए आधुनिक राजनीति अरस्तू को सदैव स्मरण करेगी।

प्लेटो और अरस्तू के राजनीतिक दर्शन में आधारभूत अन्तर

1. शैली में अंन्तर

प्लेटो उच्च कोटि का कलाकार है। उसकी शैली काव्यात्मक और उसका शब्द प्रयोग चमत्कारपूर्ण है, वह रूपकों और उपमाओं के रूप में सोचता है। अरस्तू शैली के सौन्दर्य की चिन्ता नहीं करता है। वह केवल शब्दों के अर्थ पर ध्यान देता है। उसने अपने विचारों को शब्द चमत्कार और काव्यात्मक रूपकों के ऊपर बलिदान नहीं किया है।

2. राजदर्शन में अन्तर

प्लेटो का राजदर्शन ‘सत्यम् शिवम् और सुन्दरम्’ पर आधारित होने के कारण अवास्तविक और अव्यावहारिक है। उसके विपरीत अरस्तू का राजदर्शन ठोस और प्राकृतिक तथ्यों पर आधारित होने के कारण वास्तविक और व्यावहारिक है। दोनों के राजदर्शन को आलंकारिक भाषा में व्यक्त करते हुए फ्रेडरिक पोलक ने लिखा है- “प्लेटो गुब्बारे में बैठकर नये प्रदेश में घूमता हुआ, कभी-कभी नीहारिका के आवरण को चीर कर किसी दृश्य को पूर्ण स्पष्टता से देखता है पर अरस्तू एक श्रमजीवी उपनिवेशवादी के समान उस क्षेत्र में जाता है और वह वहाँ पहुँचने के मार्ग का निर्माण करता है।”

3. विचारों में अन्तर

प्लेटो अपने विचारों में आदर्शवादी, कल्पनावादी और स्वप्नदर्शी है। वह उन्मुक्त रूप से कल्पना के जगत में विचरण करता है। उसके विपरीत, अरस्तू वास्तविक व्यावहारिक और यथार्थदर्शी है। वह कल्पना के जगत में विचरण न करके वास्तविक संसार की परिधि का परित्याग नहीं करता है।

4. समाज सम्बन्धी विचारों में अन्तर

प्लेटो क्रान्तिवादी और अतिवादी है। वह कल्पना को प्रधानता देने के कारण जिस राज्य को आदर्श मानता है, उसकी स्थापना करने के लिए किसी सामाजिक व्यवस्था या अनुभव को परिवर्तित करने में रंचमात्र भी संकोच नहीं

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करता। इस प्रकार प्लेटो और अरस्तू के राजनीतिक विचारों में पाई जाने वाली कुछ मुख्य असमानताओं के कारण मैक्सी ने प्लेटों को आदर्शवादियों, क्रान्तिकारियों, स्वप्नदर्शियों और कल्पनावादियों का पिता और अरस्तू को वैज्ञानिकों, यथार्थवादियों, उपयोगितावादियों और व्यवहारवादियों का जनक कहा है।

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