अरस्तू के शासन (दार्शनिक शासक) सम्बन्धी विचार- अरस्तू का मत है कि एक आदर्श व्यवस्था में शासन सर्वोत्तम व्यक्तियों के हाथों में रहना चाहिए। यदि किसी राज्य को प्लेटो के आदर्श राज्य का दार्शनिक शासक मिल सके तो राजतंत्र सर्वश्रेष्ठ शासन व्यवस्था है। लेकिन ऐसे दार्शनिक शासक का मिलना इस भूतल पर दुर्लभ है। इसी भाँति कुलीनतंत्र में भी शासन सत्ता योग्य व्यक्तियों के हाथों में रहती है। किन्तु इस प्रकार के योग्य शासक वर्ग भी व्यवहार में पाये नहीं जाते। राजतन्त्र और कुलीनतंत्र ये दोनों शासन प्रणालियाँ व्यावहारिक एवं क्रियात्मक रूप से नहीं पायी जातीं और इसीलिए ऐसी शासन व्यवस्था की खोज करना उपयुक्त है ।
जो आदर्शवाद के धरातल पर ही न टिकी हो बल्कि जो व्यावहारिक रूप में सामान्य व्यक्तियों द्वारा कार्यान्वित की जा सकती हो और किसी समाज की विद्यमान परिस्थितियों में सर्वोत्तम हो। चूंकि सम्पन्नता और विपन्नता दोनों ही का प्रचुरता में होना शुद्ध शासन के लिए हानिप्रद है। अतः अरस्तू मध्यम मार्ग अपनाता है। अरस्तू के शब्दों में “मध्यम मार्ग का अनुसरण करने वाला जीवन ही अनिवार्यतः श्रेष्ठ जीवन है और यह मध्यम मार्ग भी ऐसा है जिसको प्राप्त कर लेना प्रत्येक व्यक्ति के लिए सम्भव है।”
सामाजिक गतिशीलता के विषय में आप क्या जानते हैं?
उसके अनुसार सभी नगर राज्यों में तीन वर्ग पाये जाते हैं- अत्यधिक सम्पन्न, अत्यधिक निर्धन और इन दोनों के बीच का मध्यम मार्ग। अरस्तू मध्यम वर्ग की स्थिति को सर्वोत्तम मानता है क्योंकि “जो मनुष्य ऐसी स्थिति में होते हैं वे विवेक की आज्ञा का सरलतापूर्वक पालन करने वाले होते हैं।” इस तरह अरस्तू उसी शासन व्यवस्था को श्रेष्ठ मानता है जिसमें मध्य वर्ग का प्राधान्य हो ।