अरस्तू के राज्य का अर्थ – प्लेटो के समय यूनानी समाज में जो अराजकता व्याप्त थी, उसी के उन्मूलन के लिए उसने आदर्श राज्य व्यवस्था का प्रतिपादन किया था। प्लेटो के समय राज्य में कई बुराइयाँ उत्पन्न हो गयी थीं। शासन अयोग्य व्यक्तियों के हाथों में केन्द्रित था जो जनहित को भूलकर स्वहित को ध्यान में रखकर शासन संचालन करते थे। प्लेटो का विचार था कि इस दुर्व्यवस्था का मूल कारण श्रम विभाजन और विशेषीकरण के सिद्धान्त की अनुपस्थिति है। अतः आत्मा के गुणों के विभाजन के आधार पर समाज में श्रम विभाजन की प्रतिष्ठा करते हुए उसने स्वस्थ समाज की स्थापना के लिए यह प्रतिपादित किया है कि शासन संचालन का अधिकार सिर्फ विवेकयुक्त दार्शनिक शासकों को ही होना चाहिए, क्योंकि तभी आदर्श राज्य का निर्माण हो सकता है।
अरस्तू के राज्य का विकास
1. राज्य एक उत्तम और परिपूर्ण जीवन का संगठन है
अरस्तू का राज्य केवल निषेधात्मक राज्य नहीं है जो केवल अवांछित कार्यों की रोक करता है और जीवन की अरक्षा को दूर करता है। यह सक्रियता केवल भौतिकता नहीं है वह भौतिक समृद्धि के साथ जीवन के पूर्णत्व की उपलब्धि करना चाहता है। यह आन्तरिक साधन, मनुष्य का आत्मिक विकास है। सर्वोत्तम राज्य वह है जिसमें उत्तमोत्तम जीवन की सम्भावना है। राज्य का अस्तित्त्व केवल जीवन को सुलभ बनाने के लिए नहीं है बल्कि सुन्दर जीवन के निर्माण के लिए है।
2. जो राज्य नैतिक है वही सुखी है
अरस्तू इस पर विश्वास करते हैं कि जो राज्य नैतिक दृष्टि से सर्वोत्तम हैं वहीं मुखी है, उसी की उन्नति होती है और वही न्यायपूर्ण आचरण के योग्य है । उत्तमत्ता में ही आनन्द है। यह राज्य के लिए सभी प्रकार से सत्य है जिस प्रकार व्यक्ति के लिए। जो सही है वही सुखी है। व्यक्ति और राज्य के लिए सफलता और सही आचरण तब तक सम्भव नहीं है जब तक कि वह न्यायपूर्ण न हो।
3. सत्ता और सैनिक शक्ति राज्य की स्वतंत्रता और परमोत्तम जीवन के साधन हो सकते हैं पर साध्य नहीं
स्पार्टा, क्रीट, फारस, सापियन और केल्ट सभ्यताओं के लोग अरस्तू के अनुसार यद्यपि राज्य की सत्ता को दूसरे पर लादने व सैनिक शक्ति को उचित ह करने में राज्य को सर्वोपरि विकास मानते हैं पर राज्य का उद्देश्य सत्ता या शक्ति नहीं है। शक्ति उसके उद्देश्य का एक साधन और उद्देश्य है। सर्वोत्तम जीवन व परम सत्य की उपलब्धि ।
4. आदर्श राज्य मानव विकास की चरम सीमा है
अरस्तू के अनुसार राजनीतिक विकास मानव में ही निहित है। भौतिक संसार में राज्य व्यक्ति के विकास की सर्वोच्च सीमा है। व्यक्ति प्रकृति से ही एक राजनीतिक प्राणी है और राज्य एक प्राकृतिक संस्था है। यदि व्यक्ति को उपयुक्त वातावरण मिले तो अवश्य ही वह एक आदर्श राजनीतिक संस्था का निर्माण करेगा। राज्य का उद्देश्य परम सत्य की उपलब्धि है और व्यक्ति का उद्देश्य भी वही है, अतएव राज्य व्यक्ति के लिए इस सत्य का प्रतीक है। क्योंकि राज्य में न केवल एक व्यक्ति का हित है बल्कि पूरे समूह का हित है। राज्य के कल्याण में ही व्यक्ति का कल्याण निहित है या यों कहना चाहिए। कि दोनों का हित एक है। राज्य व्यक्ति के स्वभाव में ही निहित है।
5. राज्य अनेकता में एकता है
व्यक्ति, परिवार और गाँव राज्य के अंग हैं इसलिए राज्य के अध्ययन के लिए व्यक्ति, परिवार और गाँव का अध्ययन आवश्यक है। अरस्तू राज्य को सामूहिक हित के लिए सर्वाधिक महत्त्व तो देना चाहते हैं पर व्यक्ति की उपेक्षा करके नहीं। दोनों बातें परस्पर विरोधी अवश्य मालूम होती हैं पर कालव में यह अरस्तू के मध्यवर्गी मार्ग के अनुसरण की विशेषता है। वे न तो व्यक्तिगत हित को इतना अधिक महत्त्व देना चाहते हैं कि सामूहिक हित समाप्त हो जाये और न ही वे सामूहिक हित को इतनी अधिक एकरूपता देना चाहते हैं कि व्यक्ति का अपना अस्तित्त्व ही निरर्थक हो जाये। वे अनेकता में एकता के समर्थक हैं।
6. आदर्श राज्य में कानून की सम्प्रभुता है
अरस्तू के आदर्श राज्य में कानून की सम्प्रभुता है पर प्रत्येक कानून सम्प्रभुता की शक्ति प्राप्त नहीं कर सकता। केवल वहीं कानून प्रधान होगा जिसका निर्माण सही तरीके से हुआ हो। प्रत्येक राज्य में शासक, चाहे वह एक व्यक्ति हो, चाहे कुछ व्यक्ति हों, चाहे सामान्य जनता ही क्यों न हो, कानून की सर्वोपरिता होगी और संवैधानिक कानूनों का परिवर्तन उस समय की परम्परा के अनुसार विधान मण्डल तक नहीं कर सकते थे।
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