अरस्तू द्वारा दासता के समर्थन – दासता अपने विचार व्यक्त करते हुए अरस्तू ने कहा है कि “दास वह व्यक्ति है जो प्रकृति से अपना नहीं, किसी दूसरे का है, इसलिए उस पर मालिक उसी प्रकार शासन करता है, जैसे आत्मा शरीर पर और विवेक तृष्णा पर।” दास प्रथा को अरस्तू उचित बताता है। क्योंकि इससे मालिक लोग शारीरिक कार्यों से मुक्त रहकर जीवन को उच्च बनाने के लिए पर्याप्त समय पा सकते हैं। अरस्तू दो प्रकार के दास बताता है-
- प्राकृतिक दास
- कानूनी दास।
पुरुषार्थ क्या है? इसका सामाजिक जीवन में क्या महत्व है?
दास प्रथा की आलोचना में कहा जाता है कि ऐसी कोई कसौटी नहीं है जिसके आधार पर दास तथा स्वतंत्र का भेद स्पष्ट हो सके। उसका यह कहना भी अनुचित है कि कुछ लोग शासन करने के लिए पैदा होते है और शासित होने के लिए शारीरिक श्रम को हेय समझना तथा समाजवाद मे मजदूर दास नहीं वरन् अपने को मालिक सा साझीदार समझता है इसके अलावा वर्तमान समाज में दासता का विचार अमानवीय माना जाता है।