अनुवती सेवा के उद्देश्य
उपर्युक्त विवरण से जैसा कि स्पष्ट है, अनुवर्ती सेवा के मुख्य उद्देश्य छात्रों के व्यक्तिगत समायोजन तथा आनन्दप्रद व्यावसायिक अनुभवों के अर्जन में सहायता प्रदान करना है किन्तु यदि अनुवर्ती सेवा के उद्देश्यों को गहन चिन्तन के आधार पर निश्चित किया जाय तो निम्नलिखित उद्देश्य निष्कर्ष रूप में उपलब्ध होते हैं
- विभिन्न कक्षाओं, पाठ्य-विषयों एवं पाठ्य सहगामी क्रियाओं में छात्रों की प्रगति एवं स्तर निश्चित करना।
- सूचनाएँ प्राप्त करना जिनका उपयोग ऐसे छात्रों की सहायता करने में किया जा सकता है जो भविष्य के बारे में योजना का निर्माण करते है।
- कुछ छात्र अतिरिक्त समय में किसी जीविका में नियुक्ति प्राप्त कर लेते हैं। अनुवर्तीसेवा का यह भी उद्देश्य है कि इस बात का पता लगाया जाय कि छात्र उस जीविका में सन्तोषप्रद ढंग से कार्यरत है या नहीं ।
- विद्यालय त्यागने के बाद किसी जीविका में प्रवेश प्राप्त करने वाले छात्रों के जीविका स्तर एवं प्रगति को निश्चित करना। यदि कुछ वर्षों तक छात्रों का अनुगमन किया जाय तो छात्रों को उनके व्यावसायिक लक्ष्यों के सम्भावित परिवर्तन और सुधार के लिए सुझाव दिये जा सकते है
- इस सेवा का एक उद्देश्य उन छात्रों की प्रगति का पता लगाना भी है जो कॉलेज याव्यावसायिक प्रशिक्षण में अध्ययन करते है। इनसे प्राप्त सूचनाओं के आधार पर निर्देशन कार्यक्रम की सफलता का मूल्यांकन किया जा सकता है।
- अनुवर्ती अध्ययन से प्राप्त आंकड़ों के आधार पर स्कूल कार्यक्रम की कमियों को ज्ञात किया जा सकता है।
अनुवर्ती अध्ययन के प्रकार
विद्यालय छोड़ने वाले छात्रों को दो श्रेणियों में विभक्त किया जा सकता है एक तो ऐसे छात्र जो स्नातक होने से पूर्व विद्यालय छोड़ देते हैं और दूसरे वे जो अध्ययन की पूर्ण अवधि समाप्त करके विद्यालय छोड़ते हैं। दोनों श्रेणियों के छात्रों का अनुवर्ती अध्ययन शिक्षा का असंदिग्ध अंग है क्योंकि इस समीक्षा के आधार पर ही विद्यालय अपने पूर्व प्रयत्नों का मूल्यांकन कर पाता है और तात्कालिक छात्रों की योग्यताओं के अनुकूल शिक्षा प्रणाली एवं पाठन सामग्री के सम्बन्ध में नियोजन करने में सफल होता है।
(1) तत्परता अनुवर्ती अध्ययन किसी एक व्यक्ति पर नहीं छोड़ना चाहिए। यह देखागया है कि सामान्यतया प्रधानाध्यापक एवं अन्य अध्यापकरण इस कार्य के प्रति उदासीन दृष्टिकोण रखते है। इस सेवा को सफल बनाने के लिए आवश्यक है कि सभी में अनुवर्ती अध्ययन के लिए तत्परता पैदा की जाय। इस अध्ययन सेवा से प्रयोजन एवं मूल्यों से सहयोगियों को परिचित करना तत्परता उत्पन्न करने के लिए अति आवश्यक है।
(2) नेतृत्व अनुवर्ती अध्ययन में रूचि रखने वाले सहयोगियों की एक समिति बनानी चाहिए। इस समिति का नेतृत्व भार परामर्शदाता पर डालना चाहिए क्योंकि वह इस क्षेत्र का तकनीकी व्यक्ति होता है।
(3) नियोजन प्रक्रिया की जटिलता अनुवर्ती अध्ययन की उपयोगिता को प्रभावित करने वाले कारकों की जटिलता पर समिति तथा उसके प्रधान को विचार करना चाहिए। ये कारक जैसे प्रयोजन विधि, कर्मचारी एवं धन आदि हैं। ये कारक एक-दूसरे पर ऐसे आधारित है कि समिति को इन पर सावधानीपूर्वक विचार करना चाहिए। क्योंकि प्रभावशाली अनुवर्ती अध्ययन की प्रारम्भिक आवश्यकताएँ स्पष्ट लक्ष्य, भलीभाँति सोची हुई विधि, पर्याप्त कर्मचारी और पर्याप्त धन है।
(4) रीतियाँ- भूतपूर्व छात्रों के साथ सम्पर्क स्थापित करने की रीतियाँ ऐसी होनी चाहिए कि अधिक से अधिक संख्या में प्रत्युत्तर प्राप्त हो सके। कुछ दोष-पूर्ण विधियाँ निम्नलिखित हैं जिनसे प्रत्युत्तर बहुत कम प्राप्त होते हैं- (अ) लम्बी प्रश्नावली, (ब) ऐसे प्रश्न जो भूतपूर्व छात्रों से सम्बन्धित नहीं होते हैं, (स) ऐसे छात्रों से सम्पर्क न स्थापित करना जो प्रश्नावली वापस नहीं लौटाते, (द) प्रश्नावली के माध्यम से अधिकांश छात्रों से सम्पर्क करने की भावना
(5) अनुवर्ती क्रिया का आलेख- अनुवर्ती अध्ययन का निर्देशन करने वाले व्यक्ति के लिए यह सीखने की परिस्थिति होती है। इस कार्य को करते हुए सीखे जाने वाले नवीन अनुभव लिखने चाहिए ताकि भविष्य में इसके आधार पर इस सेवा में सुधार किये जा सकें।
(6) अनुवर्ती अध्ययन की निरन्तरता अनुवर्ती सेवा को प्रभावशाली बनाने के लिये आवश्यक है कि अनुवर्ती अध्ययन निरन्तर चलते रहें। भूतपूर्व छात्रों का एक बार ही अध्ययन करना पर्याप्त नहीं है बल्कि प्रति वर्ष यह अध्ययन होना चाहिए जिससे छात्रों की प्रतिक्रिया की प्रवृत्ति ज्ञात हो सके।
विद्यालय में अध्ययन कर रहे छात्रों के लिए अनुवर्ती सेवा
एक कक्षा से दूसरी कक्षा में या एक विद्यालय से दूसरे विद्यालय में जाने वाले छात्रों का निरन्तर अनुवर्ती अध्ययन करने पर विशेष बल दिया चाहिए क्योंकि छात्रों को जो शैक्षिक, वैयक्तिक या व्यावसायिक निर्देशन दिया जाता है उसके बारे में यह पता लगाना आवश्यक है कि वह छात्रों को उपयोगी सिद्ध हुआ या नहीं। अनुवर्ती सेवा प्रदान करते समय परामर्शदाता को निम्नलिखित पर अपनी दृष्टि रखनी चाहिए
- वर्तमान विद्यालय में नवीनीकरण की क्रियाएँ नवीन विद्यालय में अधिक से अधिक समायोजित होने में कहाँ तक छात्रों की तैयार करती है।
- छात्र अपनी योग्यता-स्तर के अनुसार किस सीमा तक वाचन करते हैं।
- अपनी वर्तमान परिस्थिति में छात्र अपने समायोजन में किस सीमा तक सफल हो सके हैं।
- छात्र किस सीमा तक परामर्श सेवा का उपयोग करते हैं।
- विद्यालय छोड़ने के छात्र से सम्बन्धित क्या कारण हैं।
- सामूहिक विधियाँ किस सीमा तक अपने लक्ष्यों की उपलब्धि में सफल हो रही है।
- उपबोध्य ने परामर्शदाता द्वारा दिये गये सुझायों पर कहाँ तक अमल किया है। इन छात्रों के अनुवर्ती अध्ययन के लिए भी यही विधि प्रयोग में लानी चाहिए जिसका वर्णन भूतपूर्व छात्रों की अनुवर्ती सेवा में किया गया है यह आवश्यक है कि समिति के समान सदस्यों में उत्साह हो और में सहयोग की भावना से हो।
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परामर्श और अन्य निर्देशन सेवाओं के लिए अनुवर्ती विधि
परामर्श प्रक्रिया की प्रभावशीलता का मापन करने के लिए अनुवर्ती विधि की आवश्यकता पड़ती है। छात्र परामर्शदाता की सहायता से अपने शैक्षिक, व्यावसायिक या समायोजन लक्ष्य निर्धारित करते हैं। किन्तु जीवन गतिशील है और छात्र अध्ययन करते समय अनेक अनुभव अर्जित करते है। परिणामस्वरूप अनेक नवीन पल (Variables) छात्रों द्वारा निश्चित लक्ष्यों की उपलब्धि को प्रभावित कर सकते हैं। अतः छात्रों को अपने पूर्व-निर्धारित लक्ष्यों पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता हो सकती है या उन लक्ष्यों की प्राप्ति की विधि में संशोधन की आवश्यकता हो सकती है। छात्रों की इन आवश्यकताओं का शान अनुवर्ती अध्ययन द्वारा ही सम्भव है।
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