अन्तर्राष्ट्रीय सद्भावना की शिक्षा के पाँच सिद्धान्त निम्न है
- हमें अपने बालकों में स्वतन्त्र विचार करने की प्रवृत्ति उत्पन्न करनी चाहिए। छात्रों में आलोचनात्मक दृष्टिकोण का विकास किया जाये जिससे ये किसी कथन को परख सकें और अच्छाई-बुराई का निर्णन कर सकें।
- छात्रों को इस बात के लिए प्रेरित करना कि वे अपने ज्ञान को कार्यरूप में परिणत कर सकें। छात्र प्रायः जानते हैं कि सभी व्यक्तियों से प्रेम करना चाहिए किन्तु वे अपने ज्ञान को व्यवहार में नहीं उतारते हैं।
- बालकों में संकीर्ण राष्ट्रीयता की भावना न भरी जाये। संकीर्ण राष्ट्रीयता से क्या हानियां हो सकती है, इसकी ओर संकेत किया जा चुका है। छात्रों में देश भक्ति की भावना भरी जाये किन्तु देश भक्ति को व्यापक अर्थ में लें और छात्रों को यह बोध हो जाये कि वर्तमान युग मैं अपने देश का संसार से अलग होकर अस्तित्व सम्भव नहीं है। में
- मानवों के अन्योन्याश्रित सम्बन्ध को स्पष्ट करना चाहिए। छात्र यह जाने कि संसार रहने वाले सभी व्यक्ति किसी न किसी अर्थ में अन्य व्यक्तियों के सहयोग पर निर्भर है।
- मानवता में विश्वास उत्पन्न किया जाये। छात्र यह विचार कर सकें कि मानव सृष्टि का सुन्दरतम प्राणी है और वह मूलरूप से अच्छाई एवं शान्ति पसन्द करता है।
- छात्रों में सामूहिक उत्तरदायित्व की भावना उत्पन्न की जाये।
विद्यालयों में जेण्डर पहचान एवं समाजीकरण पर एक निबन्ध लिखिये।
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