अनौपचारिक संगठनों में लैंगिक समाजीकरण का परिचय
- स्त्रियां घर की सभी जिम्मेदारियां निभाती हैं और पुरुष बाहर के काम करते हैं तथा परिवार के निर्णयों में सर्वाधिक भागीदारी पुरुष की होती है।
- लड़कों को ऊंची नजर से देखा जाता है और उनका समाजीकरण ‘कमाऊ पूत’ केरूप में किया जाता है।
- सामाजिक दृष्टि से निर्धारित की गई लिंग भूमिकाएं बालक और बालिकाओं को लोकोक्तियों, लोकगीतों और अन्य सांस्कृतिक रूपों के माध्यम से बताई जाती हैं। बालक इन गीतों को सुनते हुए अपनी भूमिकाओं को सीखते हैं।
- घर में महिलाओं की पिटाई को प्राकृतिक और परिवार का निजी मामला समझा जाता है, ताकि पुरुष लोग महिलाओं पर अपना नियंत्रण और प्रभुत्व बरकरार रख सकें।
- यदि एक बार इस प्रकार की रूढ़िवादी लिंग भूमिका संबंधी अभिवृत्ति का निर्माण हो जाता है, तो उसे बदल पाना बहुत ही कठिन हो जाता है। यही कारण है कि किशोरों को उनके परिपक्व होने से पूर्व तथा उनके द्वारा रूढ़िवादी लिंग भूमिकाओं की कठोर परिकल्पनाओं को अपनाना आरंभ करने से पूर्व ही गैर-रूढ़िवादी वातावरण उपलब्ध कराने की तत्काल आवश्यकता हो गई है। किशोरों के बीच उपर्युक्त लिंग-भूमिका विकास को उनका स्वस्थ शारीरिक, संवेदनशील और सामाजिक विकास एवं वृद्धि सुनिश्चित करने के लिए अनिवार्य माना जाता है।
- लिंग आधारित काम-काज का बँटवारा जन्म के साथ ही प्रारम्भ हो जाता है। लड़की लड़के को इसी आधार पर ढाला जाता है।
- लड़की मां बनकर लड़के को जन्म देती है। इस दृष्टि से वंश चलाने वाली लड़की होती है न कि लड़का फिर भी वंश चलाने के लिए लड़के की कामना की जाती है।
- लड़कियों को एक बोझ समझा जाता है परिवार के एक अस्थाई सदस्य के रूप में उनका समाजीकरण इस तरह से किया जाता है कि वे घरेलू काम-काज संभाल सकें और अपने घर को छोड़कर दूसरे घर में प्रौढ़ जीवन जीने के लिए तैयार रहें। विवाह के घेरे में महिला को सेक्स, परिवार नियोजन के तरीकों, बच्चों की संख्या आदि के बारे में कोई निर्णय करने का हक नहीं है।
- जेण्डर पर आधारित समाजीकरण (जिसमें जाति, वर्ग, धर्म आदि शामिल हैं) के जरिए परिवार में पितृसत्तात्मक विचारधारा को और अधिक पुख्ता किया जाता है, जिसमें स्त्रियां दोनों तरह की भूमिकाएं निभाती हैं एक तो वे दूसरों का समाजीकरण करती हैं और दूसरे इस तरह से उनके स्वयं का भी समाजीकरण होता है।
- बहुत से लोकगीत पुरुषों की वीरता के यशोगान व महिलाओं के त्याग की प्रशंसा करते हैं। परिधान-संहिता शारीरिक भाषा को प्रभावित करती है, अतः इन्हें सामाजिक दृष्टि से स्वीकृत लिंग भूमिकाओं के अनुरूप बनाया जाता है। उदाहरण के लिए, महिलाओं के वस्त्र पुरुषों की तुलना में उनकी गतिशीलता को कई गुना बाधित करते हैं। बालक इन निर्दिष्ट लिंग भूमिकाओं को स्वीकार कर लेते हैं, जो ‘पुरुष-महिला संबंधों’ पर उनकी समझ को एक नया रूप देता है और इस प्रकार विपरीत लिंग के प्रति तथा समस्त लैंगिक एवं प्रजनक स्वास्थ्य मुद्दों के प्रति उनकी अभिवृत्ति और व्यवहार को एक नई दिशा प्रदान करता है।
1885-1905 ई. के मध्य उदारवादियों के कार्यक्रम एवं कार्य पद्धति की विवेचना।
- ‘ग्रीन का स्वतंत्रता सम्बन्धी सिद्धान्त’ की विशेषताओं का उल्लेख कीजिये।
- ‘प्रतिनिधि सरकार’ पर मिला के विचारों का वर्णन कीजिए।
- ‘भारत प्रजातियों का दावण पात्र है।” इस कथन की व्याख्या कीजिए ?
- ‘शिक्षा में नूतन आयाम सामाजिक आर्थिक क्षेत्र में तेजी से हो रहे परिवर्तनों के लिए आवश्यक है।” विवेचना कीजिए।
- ‘शैक्षिक नवाचार शिक्षा में सुनियोजित सकारात्मक परिवर्तन का नाम है।” स्पष्ट कीजिये।
- ‘सबको शिक्षा सुलभ कराना’ पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।